tag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post9011234867196820513..comments2024-01-30T07:21:35.553-05:00Comments on बात-बेबात: साहित्य का देह-विमर्श Subhash Raihttp://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-58438761757534021382010-08-05T04:18:22.630-04:002010-08-05T04:18:22.630-04:00अपने महत्त्व पूर्ण मुद्दा उठाया है, खेमेबाजी जोरों...अपने महत्त्व पूर्ण मुद्दा उठाया है, खेमेबाजी जोरों पर है, चरित्र हनन की प्रवृत्ति भी पनप रही है. राजनीतिज्ञ और अन्य स्वार्थी तत्व इसका लाभ उठा रहे हैं.Madan Mohan 'Arvind'https://www.blogger.com/profile/01174037323908245493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-3350506291963314312010-08-04T21:55:14.454-04:002010-08-04T21:55:14.454-04:00..शब्द नैतिक या अनैतिक कहां होते हैं, उनके प्रयोग .....शब्द नैतिक या अनैतिक कहां होते हैं, उनके प्रयोग के संदर्भ नैतिक या अनैतिक होते हैं। एक ही शब्द एक खास परिवेश में सहज अभिव्यक्ति के नाम पर अपने समूचे भदेसपन के साथ स्वस्थ मन से स्वीकार किया जाता है जबकि वही शब्द दूसरे संदर्भ में गाली लगने लगता है।यह तर्क साहित्य के नाम पर गालियां और नंगपन परोसने का आधार भी मुहैया कराता है।..<br />..एक संतुलित पोस्ट.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-11206607308569276412010-08-04T12:20:44.882-04:002010-08-04T12:20:44.882-04:00प्रिय भाई सुभाष जी की संतुलित प्रतिक्रिया सहज ही ल...प्रिय भाई सुभाष जी की संतुलित प्रतिक्रिया सहज ही लिखी गई प्रतीत होती है। यही साहित्य का धर्म भी है। सुभाष भाई का रचनाकार सहज ही अपनी बात कह जाता है। यह रचे हुए को, साहित्य बनाता है, अर्थात् जो समाज के हित के लिए रचा जा रहा है। अनर्गल से समाज को बचाया तभी जा सकेगा, जब उसे पहचाना जाएगा और जब सामने नहीं आएगा तो फिर कैसे चीन्हेंगे। इसलिए यह सब होना-घटना तय है। इस घटने के बाद सब संभल जाएं, बात तो अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-57501731108588720072010-08-04T10:05:51.366-04:002010-08-04T10:05:51.366-04:00सुभाष भाई मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि वी...सुभाष भाई मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि वीएनरायजी मेरे भी प्रिय रहे हैं। केवल संबंधों के कारण नहीं,वरन उनके लिखे हुए के कारण भी। <br />पर यह समय ऐसा है कि हमें अपना कर्त्तव्य निभाना ही होगा। भले ही हमारा कोई प्रिय हमारे सामने क्यों न हो। उन्होंने जो कहा है और जो छपा है उसकी व्याख्या तरह तरह से हो रही है और हो भी सकती है। लेकिन जो पहली ही नजर में सामने आता है वह तो यही दर्शाता है कि राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-90227905531799002942010-08-04T09:26:15.331-04:002010-08-04T09:26:15.331-04:00देह विमर्श को तो देर सवेर इंगित साहित्य के प्रायोज...देह विमर्श को तो देर सवेर इंगित साहित्य के प्रायोजित विवेचन का मुद्दा बनना ही था यद्यपि यह कोई नया विषय नहीं है ...<br />नारी लेखन में देह दो तरीके से प्रस्तुत होती है -एक में तो उसे मक्का मदीना जैसा मुकद्दस मुकाम फोकस किया जाता है और दूसरी ओर उन्मुक्त जीवन शैली , यौन स्वातन्त्र्य के नाम पर बिस्तर बिस्तर बिछा दिया जाता है -दोनों ही प्रवृत्तियाँ संभवतः अतिवादिता की शिकार है .....नारी या पुरुष Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com