tag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post3732161239480006515..comments2024-01-30T07:21:35.553-05:00Comments on बात-बेबात: बदलाव की ताकत नहीं तो साहित्य नहीं Subhash Raihttp://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-30071368027273802202010-04-23T23:59:34.428-04:002010-04-23T23:59:34.428-04:00निश्चित रूप से तरल जी के कथन से सहमत हुआ जा सकता ह...निश्चित रूप से तरल जी के कथन से सहमत हुआ जा सकता है। परन्तु हिन्दी का भविश्य क्या है इस पर भी विचार करे!विनोद शुक्लnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-130585595321366052010-04-22T14:53:45.504-04:002010-04-22T14:53:45.504-04:00वाह राय साहिब ! साहित्य के स्वरुप, दायित्व और उसक...वाह राय साहिब ! साहित्य के स्वरुप, दायित्व और उसकी पहचान पर बहुत ही समीचीन राय व्यक्त की है आपने। सी एस लेविस का कथन कि 'साहित्य हमारे रेगिस्तान हो चुके दिलों को सींचता है'तो अपने आप में बीज वाक्य है ही आपका अपना मंतव्य कि 'साहित्य में सत्य के प्रति अकाट्य दृढ़ता, सबके कल्याण का भाव और एक सुंदर दुनियां के निर्माण की इच्छा होनी चाहिए' साहित्य के स्वरुप और उसकी भूमिका पर निश्चितडॉ.त्रिमोहन तरलhttps://www.blogger.com/profile/05559939505612385680noreply@blogger.com