tag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post4016612185748577713..comments2024-01-30T07:21:35.553-05:00Comments on बात-बेबात: सरकार और सरोकार नहीं बाजार बदल रहा है स्त्री को Subhash Raihttp://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-37855971516934780412011-10-24T06:29:37.320-04:002011-10-24T06:29:37.320-04:00बहुत से कड़ुवे सच बताए हैं आपने।
लेख अच्छा है व अच...बहुत से कड़ुवे सच बताए हैं आपने।<br />लेख अच्छा है व अच्छा लग रहा था किन्तु जब कोई दर्पण दिखाने लगे और दर्पण में कुछ सराहने लायक भी न दिखे तो कठिन हो जाता है। अब पति के घर में........... बहुत सी नौकरी न करने वाली गृहणियों के लिए कहा जा सकता है, सो मेरे लिए भी। अतः पढ़ा, स्त्रियों के पक्ष में आपने लिखा अतः आभार।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-27418081841550339002011-10-22T01:18:14.202-04:002011-10-22T01:18:14.202-04:00यह आलेख मुझे बहुत अच्छा लगा. कोई भी संवेदनशील मनुष...यह आलेख मुझे बहुत अच्छा लगा. कोई भी संवेदनशील मनुष्य औरतों की स्थिति को शिद्दत से महसूस कर सकता है, अगर वो ऐसा करना चाहे. मैंने भी बचपन में गाँवों में 'सवर्ण' औरतों की ऐसी दुर्गति देखी है. और उससे सी भी ज्यादा बुरी स्थिति के बारे में पिताजी से सुना था, जिन्होंने तमाम परम्पराओं के दुराग्रहों को सिरे से नकारते हुए अपनी पत्नी को अपने साथ शहर ले जाने का साहसिक कदम उठाया था. क्योंकि वे नहीं muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-60506954562340364352011-10-19T13:55:10.114-04:002011-10-19T13:55:10.114-04:00गहन चिंतन से उपजा बेबाक विश्लेषण। सच को मन ही मन स...गहन चिंतन से उपजा बेबाक विश्लेषण। सच को मन ही मन स्वीकारना एक बात है, अभिव्यक्ति का साहस जुटाना अलग।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-10398643384723106792011-10-19T13:44:49.645-04:002011-10-19T13:44:49.645-04:00सामाजिक यथार्थ को प्रकट कर रहे इस आलेख के लिए बधाई...सामाजिक यथार्थ को प्रकट कर रहे इस आलेख के लिए बधाई!दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-68700730696990070432011-10-19T13:43:03.010-04:002011-10-19T13:43:03.010-04:00समाज में संपत्ति उत्पन्न करने वाले श्रम से विलगाव ...समाज में संपत्ति उत्पन्न करने वाले श्रम से विलगाव ने ही नारी को पुरुष के अधीन किया था। संपत्ति उत्पन्न करने वाला श्रम ही उसे मुक्ति प्रदान कर सकता है। एकनिष्ठ परिवार आज तक परिवार का सब से विकसित रूप है। लेकिन उस में भी नारी को समान अधिकार नहीं प्राप्त हैं। वे तो उसे शायद तभी प्राप्त हो सकेंगे जब य़ह एकनिष्ठ परिवार समाज की आर्थिक इकाई न रह जाए।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-85740790271270324242011-10-19T06:05:56.468-04:002011-10-19T06:05:56.468-04:00बढ़िया विश्लेषण किये हैं। शानदार पोस्ट।बढ़िया विश्लेषण किये हैं। शानदार पोस्ट।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-56643451602462095222011-10-19T06:04:54.946-04:002011-10-19T06:04:54.946-04:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-9703705463798166382011-10-16T23:20:07.837-04:002011-10-16T23:20:07.837-04:00एक बिलकुल नई दृष्टि से विश्लेषण ।एक बिलकुल नई दृष्टि से विश्लेषण ।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.com