tag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post8648637712098595370..comments2024-01-30T07:21:35.553-05:00Comments on बात-बेबात: अच्छा रचनाकार अच्छा आलोचक हो सकता है.: प्रेम जनमेजय Subhash Raihttp://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-3314185763351203982010-08-27T02:29:07.640-04:002010-08-27T02:29:07.640-04:00संत होकर देखने की बात हो जाये तो बहुत बड़ी बात है,...संत होकर देखने की बात हो जाये तो बहुत बड़ी बात है, पर जैसे हम नित-निरंतर स्वयं को साफ सुथरा और सुन्दर बनाये रखने का प्रयत्न करते रहते हैं, रोजाना बार-बार आईने के सामने खड़े होकर हर दाग-धब्बे को सफाई से हटाते-मिटाते जाते हैं, वही नजरिया अपनी कृतियों के साथ भी रखें तब भी सुधार की काफी सम्भावना बढ़ जाती है. ऐसे सुधार को संभवतः आलोचना से कुछ अलग करके भी समझा जा सकता है.Madan Mohan 'Arvind'https://www.blogger.com/profile/01174037323908245493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-42574085566633487142010-08-25T00:34:21.750-04:002010-08-25T00:34:21.750-04:00प्रेम जी की, डॉ. सुभाष राय से चैट के दौरान जो सार्...प्रेम जी की, डॉ. सुभाष राय से चैट के दौरान जो सार्थक बिंदु उभर कर आए, हर रचनाकार को उन्हें आत्मसात करना चाहिए. लेकिन जैसा प्रेम जी ने खुद कहा कि यही काम नहीं हो रहा है (मैं प्रेम जी के शब्द नहीं उठा रहा हूँ). रचनाकारों का एक बड़ा टोला आत्म प्रशंसा में ही लीन है और उसे किसी भी आलोचक/समीक्षक की आवश्यकता ही नहीं है. <br />यही कारण है लेखन में निरंतर गिरावट आ रही है.सर्वत एम०https://www.blogger.com/profile/15168187397740783566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-17848796506859405772010-08-23T14:34:07.447-04:002010-08-23T14:34:07.447-04:00sukhad sanyog hai. jab aapse baat hui to aalochana...sukhad sanyog hai. jab aapse baat hui to aalochanaapar bhi kuchh baaten hui. aur ab premji ke vichaar dekha to khshi hui.. aakhir main premji ka anuj hoo. unse hi seekha hai bahut kuchhgirish pankajhttps://www.blogger.com/profile/16180473746296374936noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-43819450269265336982010-08-20T16:56:55.820-04:002010-08-20T16:56:55.820-04:00संत वही है जो खुद में स्थित होकर खुद को देख सकता ह...संत वही है जो खुद में स्थित होकर खुद को देख सकता है. एक अच्छे लेखक में यह तत्व होना ही चाहिये !<br />सार्थक चिंतन ....बहुत ही भड़िया और सत्य बात कही आपने !<br />आभार आपका <br />सादर <br />http://kavyamanjusha.blogspot.com/रानीविशालhttps://www.blogger.com/profile/15749142711338297531noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-91095818662528802752010-08-20T01:35:03.455-04:002010-08-20T01:35:03.455-04:00सच ही है रचनाकार को आलोचक अवश्य होना चाहिये ।ऐसी ब...सच ही है रचनाकार को आलोचक अवश्य होना चाहिये ।ऐसी बाते सार्वजनिक की जानी चाहिये।बीनशर्माnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-71588004615099992642010-08-20T01:02:12.151-04:002010-08-20T01:02:12.151-04:00बिलकुल ठीक कहा प्रेम भाई ने। मै उनकी बात से सहमत ह...बिलकुल ठीक कहा प्रेम भाई ने। मै उनकी बात से सहमत हूँ। अपनी रचनाओं की आलोचना खुद करना बहुत मुश्किल काम है, मगर जो यह काम कर पाता है, वही सही मायने में सफ़ल रचनाकार है, और इसके लिये उसका अपनी रचना से अलग होना लाज़मी है। एक ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिये धन्यवाद।सुनीता शानूhttps://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-39984104384527505272010-08-19T22:12:07.935-04:002010-08-19T22:12:07.935-04:00भाई सुभाष राय जी ,आप को बधाई देने के लिए फिर सेआया...भाई सुभाष राय जी ,आप को बधाई देने के लिए फिर सेआया हूँ /सहज रूप में ही सही बातें सामने आती हैं./आप जैसे गंभीर रचनाकार गंभीर प्रश्नों को सामने ला सकते हैं /सहज प्रयास को साधुवाद.सुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-4188206570092662042010-08-19T15:25:02.889-04:002010-08-19T15:25:02.889-04:00इस दृष्टिकोण से भी सोचना
ज़रूरी है........ प्रभाव...इस दृष्टिकोण से भी सोचना <br />ज़रूरी है........ प्रभावी आलेख डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-19996456346806928632010-08-19T14:11:51.503-04:002010-08-19T14:11:51.503-04:00बहुत अच्छा सर, करीब चार साल पहले जब देहरादून में थ...बहुत अच्छा सर, करीब चार साल पहले जब देहरादून में था तब व्यंग यात्रा की एक प्रति मिल गई थी। तभी पढ़ी थी। प्रेम जी का नाम तभी से याद सा हो गया। <br />उनके बारे में ज्यादा कुछ तो नहीं जानता था, आज आपके ब्लॉग के माध्यम से बहुत कम शब्दों में बहुत महत्वपूर्ण सूत्र मिल गया। एक रचनाकार के लिए यह बहुत जरूरी गुण है। शुक्रिया आपका।पंकज मिश्राhttps://www.blogger.com/profile/05619749578471029423noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-17781586277736746712010-08-19T12:29:12.352-04:002010-08-19T12:29:12.352-04:00प्रेम जी ने जो कहा वह बिलकुल उचित है। हम तो बचपन स...प्रेम जी ने जो कहा वह बिलकुल उचित है। हम तो बचपन से यही सुनते आए हैं कि अच्छा लिखने का एक मंत्र यही है कि जो लिखो उसे कुछ नहीं तो महीने भर के लिए भूल जाओ। महीने भर बाद निकालकर उसे पढ़ो। लेकिन इस तरह जैसे वह तुमने नहीं किसी और ने लिखा है। यानी कि एक आलोचक की तरह। निर्मम आलोचक की तरह।<br />हां अब यह बात अलग है कि अब समय बदल गया है। इतना इंतजार कौन करे। फिर भी यह तो किया ही जा सकता है कि कम से कम राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-76318099632119779452010-08-19T12:24:06.712-04:002010-08-19T12:24:06.712-04:00पर बड़ा मुश्किल है रचना से स्वयं को अलग कर पाना.पर बड़ा मुश्किल है रचना से स्वयं को अलग कर पाना.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-10873430041975375082010-08-19T10:41:16.650-04:002010-08-19T10:41:16.650-04:00प्रेम जनमेजय जी ने ठीक कहा है अविनाश जी.रचनाकार अप...प्रेम जनमेजय जी ने ठीक कहा है अविनाश जी.रचनाकार अपना आलोचक हो सकता है./.जिस प्रकार आदमी अपने आप को सबसे अधिक जानता है ,अपनी कमजोरिओं और शक्तिओं के साथ,ठीक उसी प्रकार वह अपनी कला और अपने साहित्य को बहुत अच्छी तरह जानता है/.बहुत कम साहित्यकार होते हैं जो जानने के साथ मानते भी हैं.और वेही अपने प्रखर आलोचक भी होते हैं / इसी लिए वे वडे रचनाकार होते हैं /अच्छा हो कि हम उन छोटे यानी कि तुच्छ सुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-22258226605131103092010-08-19T07:53:04.414-04:002010-08-19T07:53:04.414-04:00बहुतै खूब!!!बहुतै खूब!!!गीतिका वेदिकाhttps://www.blogger.com/profile/07650828201361340844noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-30255896226403761132010-08-19T07:38:47.736-04:002010-08-19T07:38:47.736-04:00सुभाष भाई, इतने प्रेम माहौल में, प्रेम भाई से चल र...सुभाष भाई, इतने प्रेम माहौल में, प्रेम भाई से चल रही बातचीत को आपने डिस्टर्ब न करने के नाम पर डिस्टर्ब ही तो कर दिया। खैर ... ऐसे व्यवधान तो जिंदगी और साहित्य दोनों का हिस्सा हैं, इन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स में घोटालों की तरह का हिस्सा नहीं समझा जाना चाहिए। इनका जिक्र इसलिए प्रासंगिक है कि आजकल यही सुर्खियों में है, इसी पर देश की साख है, जिसे राख होने से रोकने के लिए, काले मन वाले नेता अविनाशhttps://www.blogger.com/profile/12528740302165333781noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-1580386398053078832010-08-19T06:59:45.444-04:002010-08-19T06:59:45.444-04:00यदि रचनाकार रचना से भिन्न नहीं होगा तो वह अपना उचि...यदि रचनाकार रचना से भिन्न नहीं होगा तो वह अपना उचित मूल्यांकन नहीं कर पायेगा. वह अपने से सीख नहीं पायेगा. और यदि सम्पादक रचना को नहीं रचनाकार को पसंद करेगा तो वह सम्पादन दृष्टि से न्याय नहीं कर पायेगा. <br /><br />-मनन करने एवं सीखने योग्य बात.<br /><br />आभार इस बातचीत को यहाँ रखने का.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3190217504726480595.post-83444447471931925932010-08-19T06:47:33.743-04:002010-08-19T06:47:33.743-04:00बडी अच्छी जानकारी मिली आज तो………………इस निगाह से भी स...बडी अच्छी जानकारी मिली आज तो………………इस निगाह से भी सोचना जरूरी है।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.com