रविवार, 26 जून 2011

हरि अनंत हरि कथा अनंता

 हरि अनंत, हरि कथा अनंता। इस देश में जो हरि के गुन गाता है, बाबा कहलाता है, जो हरिमय हो जाता है, बापू कहलाता है। हमारे यहां न तो बाबाओं की कमी है, न ही बापुओं की। । राम देव बाबा, जयगुरुदेव बाबा, पायलट बाबा, ड्राइवर बाबा, आशाराम बापू, तमाशाराम बापू। एक ऐसा भी शख्स इस देश में हुआ, जो एक साथ महात्मा भी था, बाबा भी और बापू भी। बापू केवल अपने बच्चों का नहीं, पूरे देश का। वह था गांधी बाबा। हमारे देश में किसी न किसी बहाने इस बाबा की चर्चा होती ही रहती है। भ्रष्टाचार जितना बढ़ रहा है, रघुपति राघव राजाराम का पारायण भी उतना ही बढ़ रहा है। बलात्कार, अपहरण, लूट की घटनाएं बढ़ेंगी तो गांधी का नाम लेने वाले भी बढ़ेगे। यह गांधी का देश है। यहां हर बुराई को ढंकने के लिए गांधी को चादर की तरह तान दिया जाता है। सचाई यह भी है कि गांधी का नाम ज्यादा लिया जा रहा हो तो समझो कोई बड़ा घपला, घोटाला होने वाला है, बड़ी विपदा आने वाली है।

बाबा की बतकही का मौका मिला है तो लगे हाथ  एक और बाबा की चर्चा कर दूं। नागार्जुन बाबा। उनकी जन्मशती मनायी जा रही है। इसलिए उन पर, उनकी कविता पर बात हो रही है। उन्हीं की एक कविता है, गांधी के तीन बंदर। वैसे तो यह पूरी कविता ही उल्लेखनीय है लेकिन मेरी पसंद की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं..ज्ञानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बंदर बापू के। बापू के भी ताऊ निकले तीनों बंदर बापू के। गुरुओं के भी गुरू बने हैं तीनों बंदर बापू के। बापू को ही बना रहे हैं तीनों बंदर बापू के। बापू को उनके तीनों बंदर क्या बना रहे हैं? नागार्जुन बाबा ने गोल कर दिया। सोचा होगा, लोग समझदार हो गये हैं। पढ़ेंगे तो समझ ही जायेंगे। बाबा ने ये कविता बहुत पहले लिखी थी। अब तो गांधी के तीनों बंदर और भी चालाक और शातिर हो गये है। गांधी ने अपने जीवन में तमाम तरह के प्रयोग किये थे। उनके बंदर भी प्रयोगधर्मा हैं। गुरु ने सत्य के साथ प्रयोग किया, उनके बंदर असत्य के साथ प्रयोग कर रहे हैं। सफेद हो या केसरिया या किसी भी रंग की, मत पूछो, टोपी के पीछे क्या है। गांधी के बंदरों ने उनकी जीवनी बार-बार पढ़ी है। अपने जिन प्रयोगों के बारे में गांधी ने खुलकर नहीं लिखा मगर भूले-भटके अपनी चिट्ठियों में यदा-कदा जिक्र किया, बंदरों ने चोरी-चुपके उनका भी स्वाद चखा है। आखिर वे गांधी के बंदर हैं, कोई ऐरे-गैरे नहीं।

 गांधी ने पहले लंगोटी पहनी फिर प्रयोग शुरू किये। उनके बंदरों को पता है कि इसका उल्टा भी हो सकता है। अगर गांधी की तरह प्रयोग शुरू किया तो केवल लंगोटी ही बच जायेगी। असत्य के बिना सत्य का अस्तित्व नहीं। सत्य की चर्चा इसीलिए होती है, क्योंकि असत्य की सत्ता कायम है। कई बार सत्य की सत्ता की स्थापना अर्धसत्य या असत्य की ताकत से होती है। नागार्जुन बाबा की मानो तो गांधी के बंदर बड़े ज्ञानी हैं। उन्हें वाल्मीकि की कथा भी मालूम है। राम, राम नहीं आता तो मरा, मरा कहो। असत्य के साथ प्रयोग करो, सत्य का संधान अपने आप संभव हो जायेगा। जीवन में सुख हो, समृद्धि हो, ऐश्वर्य हो, यही तो चाहिए। क्या यह सत्य से मिलेगा? त्याग तो तभी संभव होगा, जब त्यागने लायक कुछ हो। इसलिए पहले अपना घर ठीक करो। छल से, कपट से, गबन से, अपहरण से, जैसे भी हो सके। बड़ी-बड़ी योजनाएं डकारनी हैं, यहां वन जी, टू जी क्या कई हंड्रेड जी लाइन में खड़े हैं।

मौका मिला नहीं कि कोयले की खदान तक निगल जायेंगे, जनता का करोड़ों रूपया अपने घर की सजावट में लगा देंगे, बचा तो रोज एक नया जूता पहनने का अरमान भी तो पूरा होना चाहिए। कीमती 365 जोड़ी तो होने ही चाहिए। प्रयोग वे अच्छे हैं जो गांधी को याद रखने लायक बनाये। खुद गांधी बनने से क्या मिलेगा। जीतेजी सत्य का नरक भोगें तो मरने के बाद कुछ चौराहों पर मूर्तियां लगने से क्या मिलने वाला। ऐसा बनो यार कि जीतेजी मूर्तियां तन जायें, उधर से गुजरो तो लगे कि तुम्हारी भी कोई सत्ता है। अहिंसा भी क्या देगी। किसी को दुखी न करें तो सुखी कैसे हो पायेंगे। जमीनें कब्जानी हैं, आलीशान घर बनाने हैं, बड़ी गाड़ियां खरीदनी हैं और कुछ स्विस बैंक में भी तो होना चाहिए। यह सब दूसरों को पीड़ित किये बिना आखिर कैसे संभव है। इसलिए गांधी के बंदर हिंसा को एक नयी प्रयोगभूमि की तरह स्वीकार कर चुके हैं। भूल जाइए कि गांधी की कांग्रेस में ही उनके बंदर मिलेंगे। गांधी की कांग्रेस भी अब रही कहां। बापू के बंदर बापू के ताऊ बन गये हैं। वे अब हर जगह हैं। उनका ब्रांड सर्वदलीय है, वे सर्वसमाज में व्याप्त हैं। जिधर जाइयेगा, उधर पाइयेगा। वे गांधी को तो बना ही रहे, सबको उल्लू बना रहे हैं, खूब खा रहे हैं और गा रहे हैं, रघुपति राघव राजाराम, सबको सन्मति दे भगवान।        

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज के हालात में तो बस इतना ही कहा सकता है.. सबको सन्मति दे भगवान.

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  2. भ्रष्‍टाचार और नेता कथा इज आलसो अनंता है सुभाष भाई

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  3. आज कितनों को देश की चिंता है सुभाष जी!
    ये आलेख पढ़कर डा. राहत इंदौरी का एक शेर याद आ रहा है-
    खून से लथपथ पड़े हुए हैं संसद के गलियारों में
    गांधी जी के तीनों बंदर, मैं भी देखूं तू भी देख.

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