सोमवार, 28 जून 2010

व्यर्थ वार्ताओं से क्या लाभ

भारत व्यर्थ के आशावाद में उलझा हुआ है। हिंदुस्तान के नेता यहां जिस तीखे अंदाज में बोलते हैं, पाकिस्तान की जमीन पर पहुंचते ही उनकी आवाज ठंडी हो जाती है। पता नहीं कौन सा अपनापन उमड़ आता है, किस तरह का दया भाव पैदा हो जाता है कि वे नरम पड़ जाते हैं। गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि मुंबई हमले की जांच को लेकर पाकिस्तान की मंशा पर भारत को कतई संदेह नहीं है परंतु परिणाम तो आना चाहिए। शायद उन्हें यह भय सताता रहता है कि ज्यादा सख्त हुए तो बातचीत टूट जायेगी। क्या बातचीत जारी रखने की जिम्मेदारी केवल भारत की है? पाकिस्तान चाहे जितना ऐंठता रहे, हम उसकी मनौवल करते रहेंगे, यह कौन सी बात है?

उसकी मंशा सही होती तो सीमाओं पर गोलियां नहीं चलतीं, कोई आतंकवादी सीमा पार करके भारत में घुसने का साहस नहीं कर पाता। पिछले दिनों पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादियों ने सभा की और खुलेआम भारत के खिलाफ जंग का एलान किया। अगर पाकिस्तान की मंशा ठीक होती तो उन बदमाशों की हिम्मत इस तरह आसमान नहीं छूती। जिस हाफिज सईद को भारत मुंबई हमले का सरगना सूत्रधार समझता है, वह पाकिस्तान के शहरों में घूम-घूमकर भारत के खिलाफ आग उगलता रहता है, क्या इससे लगता है कि पाकिस्तान के इरादे ठीक हैं। फिर किस आधार पर चिदंबरम यह कह रहे हैं कि उसकी मंशा पर भारत को संदेह नहीं है? वह तो एक पाकिस्तानी आतंकवादी जिंदा हमारे कब्जे में है और तमाम ऐसे अकाट्य सुबूत हैं, जिनके कारण पाकिस्तान को आंख में धूल झोंकने का मौका नहीं मिल पा रहा है अन्यथा वह कब का इस पूरे मामले से हाथ खींच चुका होता। एक पाकिस्तानी मंत्री दोषियों को दंडित करने में हो रहे विलंब के बारे में कहता है कि घटना किसी और देश में हुई है, कार्रवाई किसी और देश में होनी हैं, सूचनाएं मिलने में विलंब होता है।

कितनी भौंड़ी बात है। भारत एक दर्जन डोजियर उसे सौंप चुका है। उसने जो भी जानकारी जब चाही, उसे दी गयी। उसकी ओर से हर डोजियर के बाद यही कहा गया कि इसमें कोई खास सुबूत नहीं दिये गये, यह सूचनाएं मात्र हैं। यहां तक कि इन्हीं चिदंबरम साहब को आजिज आकर कहना पड़ा कि पाकिस्तान की दिक्कत यह है कि वह कोई कार्रवाई नहीं करना चाहता। लेकिन आज की सरकार में लौहपुरुष की तरह देखे जाने वाले चिदंबरम का हृदय परिवर्तन समझ में नहीं आता। जो सचाई है, उसे बयान करने में क्या कठिनाई है? चाहे वह दिल्ली हो या इस्लामाबाद, सच तो बदल नहीं जाता। पाकिस्तान को साफ-साफ कहा जाना चाहिए कि वह जानबूझकर इस मामले में न्याय तक पहुंचने में देरी कर रहा है और यह बात भारत को कतई स्वीकार नहीं है। हमें यह भी सोचना चाहिए कि इस तरह की व्यर्थ वार्ताओं से क्या लाभ है?

6 टिप्‍पणियां:

  1. हमें यह भी सोचना चाहिए कि इस तरह की व्यर्थ वार्ताओं से क्या लाभ है? ...sahi kaha apne uncle ji.

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    'पाखी की दुनिया' में 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' जरुर देखें !

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  2. i am fully agreed with You. after every dialogue there was a "Dhokha".
    after Bajpayee Lahore visit Kargil
    after Musharf Agra Visit many terrorist attack

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  3. बात तो सही है, लेकिन चिदम्बरम साहब को आप लौहपुरुष कैसे कह रहे हैं समझ से परे है। मैं तो कहता हूं अब लौहपुरुष का जमाना चला गया। देश में एक ही लौहपुरुष हुआ, उसके बाद और कोई नहीं।
    अपने घर में तो कुत्ता भी शेर हो जाता है, कहावत बहुत पुरानी है पर क्या करें रिपीट करनी पड़ती है। एक बात और जो मैं समझ नहीं पा रहा हूं, जब भी बातचीत शुरू होती है तो भारत सीमापार आतंक की बात करता है और पाकिस्तान कश्मीर की। भारत को कश्मीर की बात पसंद नहीं तो पाकिस्तान को आतंकी अड्डों के बारे में। फिर कहा जाता है कि इन दोनों मुद्दों को छोड़कर बात की जाएगी। अरे भाई जब तक आतंक नहीं रुकेगा तब तक काहे की बात और सबसे बड़ी बात क्यों बात। सब ड्रामा है साहब ड्रामा।

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  4. Pankaj, main nahee unke log unko lauhpurush kee tarh bayan karte hain par yah lauhpurush to mom se bhi gaya gujara nagata hai kabhi-kabhi.

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  5. नेता होना इतना सरल भी नहीं है जनाब।

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