मंगलवार, 25 मई 2010

हां, राठौर की सजा बढ़ गयी

समाज में अपराधियों की कमी नहीं है लेकिन लोग शांति से जीना चाहते हैं। कोई नहीं चाहता कि उसका ऐसे लोगों से पाला पड़े, जिन्होंने अपराध को अपनी जीवन-शैली के रूप में स्वीकार कर लिया है। अपराधी जब केवल अपराधी होता है, तब उससे मुकाबला करना आसान हो जाता है। क्योंकि तब पूरा समाज इस मुहिम में साथ खड़ा नजर आता है। भौतिक रूप से भले कोई सामने न आये लेकिन जब भी कोई आदमी समाज के दुश्मनों से जूझता है तो लोग भीतर ही भीतर उसके लिए प्रार्थना तो करते ही हैं।

दिन पर दिन भीरु होते समाज में अभी इतनी जान बाकी है तो भला समझिये। पुलिस, प्रशासन भी देर-सबेर ऐसी मुहिम का साथ देता ही है। परंतु अगर वह अपराधी सरकारी तंत्र में हो, पुलिस में हो, प्रशासन में हो तो बहुत मुश्किल हो जाती है। कोई साथ नहीं आना चाहता, कोई पहल नहीं करना चाहता। कौन अपनी जान सांसत में डाले? और ऐसा अपराधी अपने पद, अपनी हैसियत, अपने रसूख का इस तरह इस्तेमाल करता है कि सीधे उसकी संलिप्तता उजागर होती ही नहीं। एसपीएस राठौर ने यही किया।

अभी कुछ ही महीने पहले रुचिका का मामला जब सुर्खियों में आया था तो कितनी सारी कहानियां मीडिया में उछलीं थीं। इन कहानियों ने राठौर को एक क्रूर खलनायक के रुप में सबके दिमाग में ठूस दिया था। किस तरह उसने रुचिका के भाई को उत्पीड़ित कराया, किस तरह उसने रुचिका को आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया, किस तरह उसने पूरे परिवार को सड़क पर ला खड़ा किया, उन्हें मकान बेचकर भाग जाने को मजबूर कर दिया।

मीडिया की पक्षधरता ने आखिरकार पूरी व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया था। केंद्र सरकार तक हिल गयी और उसे कई महत्वपूर्ण फैसले करने पड़े। राठौर को मिले पदक छीन लिये गये। सीबीआई अदालत के निर्णय के बाद बाहर निकलते हुए उसके चेहरे पर जो विजय दर्प की मुस्कान उभरी थी, उसने कितना बवाल कराया था, सबको याद है। तब सभी यही अंदाज लगा रहे थे कि इस खलनायक को बड़ी सजा जरूर मिलेगी, कम से कम उम्र कैद तो होगी ही। परंतु तब भी उसकी वकील पत्नी जिस तरह के दावे ठोंक रही थी, वह अनायास नहीं था।

वह जानती थी कि उसके पति ने जो भी कराया है, उसके बहुत कम सबूत छोड़े हैं। अब जब सत्र अदालत ने राठौर को सजा सुनायी है तो इस सचाई को समझना कठिन नहीं रह गया है। कुल 18 महीने कैद की सजा। फिर भी यह सीबीआई अदालत द्वारा सुनाई गयी सजा की तीनगुनी है। यह समझा जाना चाहिए कि उसकी सजा बढ़ा दी गयी है। हालांकि अभी राठौर को आगे अपील करने का पूरा अवसर है लेकिन अगर उसे डेढ़ साल भी कैद काटनी पड़ी तो यह उस जैसे सुविधाभोगी आदमी के लिए एक दुस्वप्न की तरह होगी।

असल में ऐसे सफेदपोश अपराधियों की सजा समाज को खुद निश्चित करनी चाहिए। लोग ऐसे लोगों का संपूर्ण बहिष्कार कर सकते हैं। समाज से अलगाव की यंत्रणा बहुत कठिन होती है और यह किसी भी कैद से कई गुना भयानक होती है। राठौर को जेल की रोटी कब तोड़नी पड़ेगी, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन समाज तो उसकी सजा तुरंत शुरू कर सकता है। अभी से, आज ही से।

3 टिप्‍पणियां:

  1. very nice sir

    राठौर : कर्मों की फल तो मिलना ही था

    http://mydunali.blogspot.com/

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  2. अगर उसे डेढ़ साल भी कैद काटनी पड़ी तो यह उस जैसे सुविधाभोगी आदमी के लिए एक दुस्वप्न की तरह होगी। आपकी बात सही है सर। पर फिर भी लगता है कि कहीं न कहीं यह सजा कम है। उम्रकैद नहीं तो सजा के साल ही बढ़ जाते। हां सर, एक बात और लगती है कि क्या वास्वत में राठौर गुनहगार है। एक अदालत चूक सकती है पर दूसरी अदालत से भी मात्र १८ महीने की सजा। अमूमन एेसा होता नहीं है कि एक अदालत से कोई मुजरिम छूट जाए वह दूसरी से भी कम सजा ही पाए। मीडिया ने जिन मामलों को भी उठाया उनमें कड़ी सजा हुई है। ज्यादा दूर न जाएं तो मनु शर्मा को भी निचली अदालत ने छोड़ दिया था पर जब मीडिया ने मामला उठाया तो फिर सुनवाई शुरू हुई और खास बात यह कि इतना पैसा होते हुए भी मनु शर्मा बच नहीं पाया। मजे की बात यह रही कि राम जेठमलानी जैसे अधिवक्ता को भी मुंह की खानी पड़ी।

    मीडिया और समाज को दूसरे कोण से भी सोचना चाहिए। हो सकता है राठौर ने एेसा किया ही न हो। इस पर भी तो बात की जा सकती है। शायद।

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  3. किस समाज की बात कर रहे हैं राय साहब, आज जिसके पास पैसा है, रसूख है; ताकत है, समाज भी उसी का है। लेकिन बुरे व्यक्तियों और बुराइयों से लड्ना तो होगा ही, और उसके लिये हिम्मत भी जुटानी ही होगी।

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