शुक्रवार, 14 मई 2010

डरना क्यों

जो डरता है
वह पल-पल मरता है

बहुत डरावनी है मौत
बताकर कभी नहीं आती
चलने का न्योता नहीं देती
ताकि आदमी मन बना सके
घर वालों को समझा सके
और कोई बहुत जरूरी
काम हो तो निपटा सके

इसीलिए  हर कोई
डरता है मौत से
सब कुछ जल्दी-जल्दी
कर लेना चाहता है
धन-संपदा से
घर भर लेना चाहता है
संपदा आ जाती है
तो उसकी सुरक्षा के लिए
परेशान रहने लगता है
यह जानते हुए कि
ले नहीं जायेगा
अगले जीवन के लिए
एक भी सिक्का

असफलता भी डराती है
कोई हार को गले
नहीं लगाना चाहता
कोई पीछे नहीं रहना चाहता
दुनिया की चूहा दौड़ में
आशंका रहती है
कछुआ पता नहीं
आगे निकल पाए या नहीं

अब आप समझ सकते हैं
कि लोगों को नींद
क्यों रात भर नहीं आती

सारा डर इसलिए है कि
हमने अपना काम भुला दिया है
केवल कर्म का अधिकार मिला है
आदमी को
बस वह कर्म ही नहीं करता
दिन-रात परिणाम की
चिंता में मगन रहता है

इसिलिये हर वक्त
डरता रहता है

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छी सोच कास लोग इस बात को समझ पाते /

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  2. sahi kaha geeta me likha tha karm karo fal ki chinta mat karo...par aaj fal ko dhyaan me rakhkar karm kiye jaate hain...aur jyaadatar to bina karm kiye hi fal ki ichcha karte hain...sundar kavita

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  3. यही तो , आज हर कोई कर्म करने से पहले फल की प्राप्ति के बडे - बडे सपने संजोता है और किसी अनिष्ट की आशंका में डूबकर कर्म के मायने ही भूल बैठता है । नतीजतन वह डर के आगोश में खुद - ब - खुद समाता चला जाता है ।
    वाकई सुभाष जी आपने अच्छी कविता कही है डर पर ।

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  4. हमको वीरेन्द्र हमदम की पंक्तियां अच्छी लगीं॥..आचार्य प्रवर हजारीप्रसाद द्विवेदी का वक्तव्य भी। आपको एक बार फिर धन्यवाद इत्नी अच्छी समग्री प्रस्तुत करने के लिये।

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