




उत्तमा की रचना श्रृंखला, कामायनी की एक पेंटिंग मैंने पिछली बार लगायी थी। बहुत से लोग जानना चाहते थे कि ऐसी नग्नता क्या कला में आवश्यक है? यह असहज नहीं लगता, जानबूझकर ज्यादा दर्शक जुटाने या विवाद बढ़ाकर चर्चा में आने के लिये तो कलाकार ऐसा नहीं करते। इन प्रश्नों पर मैंने कामायनी की रचनाकार से ही जानना चाहा कि वास्तव में सच क्या है? यहां कामायनी श्रृंखला की कुछ और रचनायें और उत्तमा के विचार भी दिये जा रहे हैं। आप इस बहस को आगे बढ़ाने के लिये आमंत्रित हैं।
कला में न्यूडिटी और हम: उत्तमा
स्टूडेंट लाइफ में जब मैं न्यूड फिगर बनाती थी, तब अपने ही घर में मुझे लगता था कि सभी अच्छा महसूस नहीं कर रहे। पढ़ाई के दौरान ही मैंने न्यूड पेंटिंग बनानी शुरू कर दी थीं। बीएफए द्वितीय वर्ष में मेरी ऐसी पहली पेंटिंग में युवती को एक अजगर ने जकड़ रखा था। हर मामले में मेरा हौसला बढ़ाने वाली मम्मी ने ही पूछ लिया कि तुम्हारी ऐसी पेंटिंग्स का तुम्हारे छोटे भाइयों पर कैसा असर पड़ेगा।लोग तुम्हारे बारे में कैसा सोचेंगे। ग्वालियर में एक प्रदर्शनी के दौरान कुछ लोगों ने मेरी पेंटिंग्स का जमकर विरोध किया। मैं बहुत डर गई थी। न्यूड पेंटिंग किए जाने की वजहें हैं। हर आर्टिस्ट के लिए यह जरूरी है कि वह शरीर के हर अंग की बनावट को जाने। फ्रंट, बैक, साइड पोश्चर, बैठे, खड़े और लेटे की पोजीशन की डीप स्टडी किए बिना फिगरेटिव पेंटिंग की
कल्पना मेरी समझ से परे है। एनाटॉमी स्टडी करने के लिए स्टूडेंट्स को किताबों का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि न्यूड मॉडल उपलब्ध नहीं हो पाते। हर सीखने वाले के साथ ऐसा ही होता है। यह किताबें छिपाकर रखनी पड़ती हैं।
जयशंकर प्रसाद की कामायनी पर पेंटिंग करने का फैसला मैंने जितनी आसानी से ले लिया, पुस्तक पढ़ने के बाद उतनी ही देरी हुई। मुझे लगा, जैसे मेरे भीतर का कलाकार कुछ करना चाहता है। प्रलय के दौरान मनु और श्रद्धा का प्रेम प्रेरक लगा। कामायनी पढ़ी, लगा प्रसाद ने विवादों से बचने का कहीं रास्ता तो नहीं तलाशा है। मनु और श्रद्धा को न्यूड बता पाने से हिचके क्यों वो? बताइये प्रलय के पश्चात कहां से आ गए वस्त्र? श्रद्धा और मनु को कैनवस पर उतारा तो मुझे लगा कि कपड़ों के बिना दोनों पात्रों को ज्यादा बेहतर अभिव्यक्त किया जा सकता है। पेपर पर स्केच बनाना शुरू किया। एक साथ छह कैनवस पर काम करना शुरू किया। विषय की संवेदना और भाव-भंगिमा को चित्र में उतारने में मुझे खूब मेहनत करनी पड़ी।
कला में न्यूडिटी पर चर्चा जितनी दिलचस्प है, उतनी ही गंभीर। सामाजिक सरोकारों की ही तरह न्यूड रचना भी एक रोचक विषय है। कलाकार प्रकृति की हर रचना को अपनी नजर से देखता और उसका चित्रांकन करता है। मानव शरीर भी प्रकृति की ही एक कृति है। यह कला का विषय क्यों नहीं हो सकता ? आब्जेक्ट न्यूड हो या कपड़ों में, आर्टिस्ट के लिए महज एक आब्जेक्ट है। प्रसव के समय छटपटाती स्त्री को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका डॉक्टर पुरुष है या स्त्री। अर्द्धनग्न अवस्था में उसे तमाम लोग देखते हैं, यह नए सृजन के लिए होता है इसलिये उसमें कहीं अश्लीलता नहीं मानी जाती। लेकिन जब यही सृजन एक आर्टिस्ट करता है तो विवाद शुरू हो जाता है। कोई समझना नहीं चाहता की कैनवस पर कब, क्या और कैसे पेंट करना है, यह आर्टिस्टिक मूड डिसाइड करता है। कैनवस सामने आने पर कलाकार सोच-समझकर काम नहीं करता, वो तो होने लगता है। कला दिल से निकलती है न कि दिमाग से।
स्टूडेंट लाइफ में जब मैं न्यूड फिगर बनाती थी, तब अपने ही घर में मुझे लगता था कि सभी अच्छा महसूस नहीं कर रहे। पढ़ाई के दौरान ही मैंने न्यूड पेंटिंग बनानी शुरू कर दी थीं। बीएफए द्वितीय वर्ष में मेरी ऐसी पहली पेंटिंग में युवती को एक अजगर ने जकड़ रखा था। हर मामले में मेरा हौसला बढ़ाने वाली मम्मी ने ही पूछ लिया कि तुम्हारी ऐसी पेंटिंग्स का तुम्हारे छोटे भाइयों पर कैसा असर पड़ेगा।लोग तुम्हारे बारे में कैसा सोचेंगे। ग्वालियर में एक प्रदर्शनी के दौरान कुछ लोगों ने मेरी पेंटिंग्स का जमकर विरोध किया। मैं बहुत डर गई थी। न्यूड पेंटिंग किए जाने की वजहें हैं। हर आर्टिस्ट के लिए यह जरूरी है कि वह शरीर के हर अंग की बनावट को जाने। फ्रंट, बैक, साइड पोश्चर, बैठे, खड़े और लेटे की पोजीशन की डीप स्टडी किए बिना फिगरेटिव पेंटिंग की
कल्पना मेरी समझ से परे है। एनाटॉमी स्टडी करने के लिए स्टूडेंट्स को किताबों का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि न्यूड मॉडल उपलब्ध नहीं हो पाते। हर सीखने वाले के साथ ऐसा ही होता है। यह किताबें छिपाकर रखनी पड़ती हैं।
जयशंकर प्रसाद की कामायनी पर पेंटिंग करने का फैसला मैंने जितनी आसानी से ले लिया, पुस्तक पढ़ने के बाद उतनी ही देरी हुई। मुझे लगा, जैसे मेरे भीतर का कलाकार कुछ करना चाहता है। प्रलय के दौरान मनु और श्रद्धा का प्रेम प्रेरक लगा। कामायनी पढ़ी, लगा प्रसाद ने विवादों से बचने का कहीं रास्ता तो नहीं तलाशा है। मनु और श्रद्धा को न्यूड बता पाने से हिचके क्यों वो? बताइये प्रलय के पश्चात कहां से आ गए वस्त्र? श्रद्धा और मनु को कैनवस पर उतारा तो मुझे लगा कि कपड़ों के बिना दोनों पात्रों को ज्यादा बेहतर अभिव्यक्त किया जा सकता है। पेपर पर स्केच बनाना शुरू किया। एक साथ छह कैनवस पर काम करना शुरू किया। विषय की संवेदना और भाव-भंगिमा को चित्र में उतारने में मुझे खूब मेहनत करनी पड़ी।
प्रसाद कहते हैं, मनु विचारों में लीन थे कि तभी किसी ने आकर पूछा कि इस जनहीन प्रदेश को अपनी रूप-छटा से आलोकित करने वाले तुम कौन हो? मनु ने दृष्टि उठाई तो देखा कि दीर्घ आकार की एक विलक्षण सौंदर्य संपन्न बालिका उनके सामने खड़ी है। नीले रोओं वाली भेड़ों के चिकने चर्म खंडों से ढंका उसका अर्द्धनग्न शरीर ऐसा लगता था कि जैसे काले बादलों के वन में बिजली के फूल खिल उठे हों और उसकी मुस्कान तो इतनी मधुर थी कि मनु देखते ही रह गए। चुनौती सामने थी, प्रलय के कारण भावशून्य हुए मनु के रूप में मुझे मन दिखाना था और श्रद्धा के रूप में दिल। रहस्य, स्वप्न, आशाएं, कर्म, काम, वासना, आनंद, लज्जा, ईर्ष्या और चिंता के भावों का चित्रण करना सचमुच चुनौतीपूर्ण था। समस्याएं भी कम नहीं। हमारे यहां न्यूड पेंटिंग्स जितनी भी बन जाएं लेकिन बिकती नहीं।
कामायनी बनाते समय मैंने तो सोचा ही नहीं था कि यह बेचने के लिए बना रही हूं, कुछ बिक गईं तो बात अलग है। भारतीय बाजार में न्यूडिटी नहीं बिकती। चुनौतियां हैं और परेशानियां भी, माहौल भी बिल्कुल अनुकूल नहीं, फिर भी हमारे कलाकार इस तरह का काम कर रहे हैं। शायद उन्हें कला पर पहरे के यह दिन और बेवजह
आलोचनाएं करने वाले लोगों के दिल बदलने की उम्मीद है। मैं तो अपनी रिसर्च स्कालर्स और अन्य छात्राओं को सीख देने से नहीं हिचकती कि जो मन आए वो बनाओ। किसी से डरने की जरूरत नहीं। हम कलाकार हैं, दिल की बात ही तो सुनेंगे।
असिस्टेंट प्रोफेसर, चित्रकला विभाग, दृश्य कला संकाय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी
आलोचनाएं करने वाले लोगों के दिल बदलने की उम्मीद है। मैं तो अपनी रिसर्च स्कालर्स और अन्य छात्राओं को सीख देने से नहीं हिचकती कि जो मन आए वो बनाओ। किसी से डरने की जरूरत नहीं। हम कलाकार हैं, दिल की बात ही तो सुनेंगे।
असिस्टेंट प्रोफेसर, चित्रकला विभाग, दृश्य कला संकाय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी