वीरेन्द्र सेंगर की कलम से
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की राजनीतिक और भावुक अदाओं ने विपक्ष की गरमी को पानी-पानी कर दिया। वह भी बगैर किसी ठोस आश्वासन के। कांग्रेस के इस ‘संकट मोचक’ ने बड़ी चतुराई से महंगाई का ठीकरा राज्य सरकारों के सिर फोड़ दिया और विपक्ष को ही उल्टे कटघरे में खड़ा कर दिया। बुधवार को लोकसभा में महंगाई पर हुई बहस का जवाब देते हुए उन्होंने सबसे ज्यादा सवाल भाजपा को लेकर उठाए। बोले कि यदि केरोसिन में उनकी सरकार ने तीन रुपये प्रति लीटर दाम बढ़ाए हैं, तो अटल की सरकार ने दाम सात रुपये प्रति लीटर बढ़ा दिए थे। यदि केरोसिन के दाम बढ़ाना भाजपा के नेता गरीबों के प्रति असंवेदनशीलता मानते हैं, तो बताएं कि जब उनकी सरकार ने दाम बढ़ाए थे, तो क्या वह बहुत ‘दयालु’ थी।
भाजपा नेताओं ने जब टोकाटाकी की उन्होंने गुस्से के तेवर दिखाए और भाषण छोड़कर अपनी सीट पर बैठ गए। माहौल बदला, तो वित्त मंत्री फिर खड़े हुए। माफी मांगकर आगे कहा कि राज्य सरकारों के पास आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कारगर अधिकार हैं। वे जमाखोरों के खिलाफ अभियान तेज करें तो महंगाई को जल्दी काबू किया जा सकता है। पेट्रोलियम दाम में ‘रोलबैक’ किया गया तो इसका ज्यादा भार घूम फिरकर आम लोगों पर ही आएगा क्योंकि सरकारी खजाने से ही घाटा उठाने वाली सारी तेल कंपनियों को अनुदान देना पड़ता है। यह तो सिर्फ यही हुआ कि नाक दाएं हाथ से पकड़ी जाए या बाएं हाथ से। इसलिए उनकी सरकार पर्दे के पीछे से ड्रामा करना पसंद नहीं करती।
वित्त मंत्री ने कहा, एनडीए नेतृत्व की सरकारें कई राज्यों में हैं लेकिन कहीं भी जमाखोरों के खिलाफ कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया गया है। ये लोग अपनी जिम्मेदारी भूलकर केंद्र के खिलाफ अंगुली उठाने में सबसे आगे हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि हमारे कामरेड तो हड़ताल मास्टर हैं। इसमें वे बेजोड़ हैं। इसके लिए बधाई दी जा सकती है। ये लोग केवल नकारात्मक राजनीति ही कर सकते हैं। आंकडे देकर बताया कि कैसे आम आदमी की दुहाई देने वाले इन कामरेडों की सरकारों ने पेट्रो में सबसे ज्यादा टैक्स ठोका है। यदि वे गरीबों के प्रति कुछ संवेदनशील हो, तो कम से कम टैक्स की दर ही घटा दो। प्रणब दा ने कहा कि राज्य सरकारें, केंद्र की नई टैक्स व्यवस्था को स्वीकार कर लें, तो महंगाई से एक हद तक निपटा जा सकता है। पूरे भाषण के दौरान वे कभी गुस्से का तेवर दिखाते रहे, तो कभी मुस्कराकर राजनीतिक मरहम भी लगाते देखे गए। ‘इमोशनल अत्याचार’ करके प्रणब दा ने विपक्ष के जोश को ठंडा कर दिया। वह भी बगैर एक धेले की राहत दिए बिना।
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