वीरेन्द्र सेंगर की कलम से
कश्मीर घाटी की स्थिति तेजी से बिगड़ रही है। हजारों-हजार लोग श्रीनगर जैसे शहर में भी रोज कर्फ्यू तोड़ने पर आमादा हो जाते हैं। ये लोग पुलिस थाने से लेकर सीआरपीएफ के कैंपों तक को अपने गुस्से का लगातार निशाना बना रहे हैं। भीड़ को भगाने के लिए सुरक्षाबल हथियारों का प्रयोग करते हैं, तो समस्या और गहराती है। यदि कुछ नरमी बरतें, तो अलगाववादी ताकतों का हौसला और बढ़ जाता है। अघोषित रूप से राज्य सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसे में केंद्र के पास राज्यपाल शासन लागू करने का विकल्प बचता है लेकिन मुख्यमंत्री को कुछ दिन की और ‘मोहलत’ दी गई है। उमर अब्दुल्ला ने स्वीकार किया कि घाटी में हालत नाजुक हो गई है। वे पूरी कोशिश कर रहे हैं कि हालात संभलें। इसके लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष संयम बनाएं। जबकि, घाटी में केवल सुरक्षाबलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे गोली न चलाएं। यदि हजारों-हजार लोग सुरक्षाबलों के कैंप फूंकने पर उतारू हो जाएंगे, तो भला नरमी की कितनी गुंजाइश बचती है?
पिछले चार दिनों में ही, दो दर्जन लोग मारे जा चुके हैं। इनमें से ज्यादातर सुरक्षाबलों की गोलियों का शिकार बने हैं। मुश्किल यह है कि घाटी के सभी दस जिले गुस्से से उबलने लगे हैं। सभी जिलों में कर्फ्यू लगाना पड़ रहा है। अलगाववादी गुटों ने केंद्र और राज्य सरकार के विरोध में आम लोगों को लामबंद कर दिया है। खासतौर पर केंद्रीय सुरक्षाबलों को वे अपना दुश्मन मानने लगे हैं। शरारती तत्व हालात का फायदा उठाकर तरह-तरह की अफवाहें फैलाकर लोगों को उकसा रहे हैं। घरेलू महिलाएं भी सड़कों पर निकल कर पत्थरबाजी करने लगी हैं। वे अपनी जान की भी परवाह नहीं कर रही हैं।
भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष, लाल कृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में कहा कि जो स्थिति बनी है, उसमें तुरंत निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है। भाजपा नेताओं ने कहा कि जब राज्य सरकार स्थिति नहीं संभाल पा रही है, तो केंद्र चुप्पी क्यों साधे है? वह दूसरे विकल्पों पर फैसला क्यों नहीं ले रहा है? कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व कश्मीर को लेकर खासी दुविधा में फंसा हुआ है। ‘दस जनपथ’ से संकेत मिले हैं कि मुख्यमंत्री उमर से कहा गया है कि हालात सुधारें, वरना केंद्र को किसी और विकल्प के बारे में मजबूरी में फैसला करना पड़ेगा। बताया जा रहा है कि राज्यपाल एमएन वोहरा ने सोमवार को जो अपनी ताजा रिपोर्ट भेजी है, उसमें कहा गया है कि हालात नियंत्रण में नहीं हैं। स्थिति अभी और खराब हो सकती है।
समझा जाता है कि जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन के विकल्प के बारे में भी चर्चा हुई है लेकिन, कांग्रेस की एक लॉबी सलाह दे रही है कि सरकार को इस कदम से अभी बचना चाहिए क्योंकि इसके बाद हालात की पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की बन जाएगी। यदि राज्य में राज्यपाल शासन लागू होता है, तो ऐसा दो साल के अंदर दूसरी बार होगा। जुलाई 2008 में हालात बिगड़ने पर कांग्रेस नेतृत्व वाली गुलाम नबी आजाद की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद राज्यपाल शासन लागू हुआ था।
कश्मीर समस्या राजनैतिक समस्या है। इसका हल राजनीतिक ही हो सकता है। सभी पक्षों को बातचीत के लिए मनाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए तथा यह संदेश लोगों तक पहुंचे कि सरकार इसकी गंभीरता को समझती है।
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