शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

संसद में योगासन की तैयारी

बाबा रामदेव की मंशा में तनिक भी खोट नहीं है. वे देश के स्वास्थ्य की लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने योग से शुरुआत की. साबित किया कि योग से शरीर स्वस्थ रहता है. उनके शिविरों में जाने वालों की संख्या बेतहाशा बढ़ी. लोग सचमुच ठीक होने लगे. चर्चा तेज हुई तो बीमार लोगों के रास्ते हरिद्वार की ओर मुड़ गए. बाबा ने अपने रोग-उपचार की पद्धति को वैज्ञानिक रूप दिया. उनके दस्तावेज बनाये गए और उन्होंने  अपने प्रयोगों और उनके परिणामों के साथ चिकित्सकों से मुठभेड़ें शुरू कर दी. कुछ डाक्टर  भी उनके दीवाने हो गए. वे तो अकेले ही चले थे पर जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए, कारवां जुड़ता गया. उन्होंने  योग के साथ आयुर्वेदिक दवाओं का भी इंतजाम किया. जो ज्यादा गंभीर मरीज हों, योगासनों में कठिनाई महसूस करते हों, उन्हें साथ-साथ दवाएं भी दी जाने लगीं. इसी वक्त वामपंथी नेता वृंदा करात बाबा से बेवजह टकरा गयीं. बाबा हरिद्वार की अपनी योगशाला से निकलकर  टीवी चैनलों पर आ गए. उनके योगियों की जमात भी मैदान में कूद गयी. इस लड़ाई में बाबा की जीत ने उनका कद बहुत बढ़ा दिया.
अब उन्हें देश की बाक़ी बीमारियाँ भी दिखाई पड़ रहीं हैं. काले  धन की बीमारी, भ्रष्टाचार की बीमारी, मिलावटखोरी की बीमारी आदि, इत्यादि. बात  गलत नहीं है. पूरा देश बीमार है. देश को तो योगासन नहीं कराया जा सकता, उसे किसी अस्पताल में भी नहीं दाखिल किया जा सकता.. देश का दम फूल रहा है, उसका रक्तचाप बहुत बढ़ा हुआ है, उसे चलने-फिरने में भी दिक्कत हो रही है, वह अपनी भाषा भी भूलता जा रहा है, वह गुलामों की तरह आचरण करता है. बाबा जानते हैं की उसे भी थोड़ी कसरत की जरूरत है, कुछ कड़वी दवाओं की आवश्यकता है. बाबा यह भी जानते हैं की देश का प्राणायाम तो राजनीति में निहित है. राजनीति ही देश की सबसे बड़ी बीमारी है. देश  को स्वस्थ रखना है तो राजनीति से गन्दगी दूर करनी पड़ेगी, वहां से गंदे, बदमाश और बेईमान लोगों  को बाहर करना पड़ेगा. बाबा चाहते तो केवल भाषण करके बगल में खड़े रहते, पर यह उनका हौसला है कि वे खुद अपने योगियों के साथ मैदान में आने को तैयार हैं. इस हिम्मत के लिए उन्हें दाद मिलनी ही चाहिए. देश को हजम करने में जुटे खौहड़ नेता बाबा के इस नए अंदाज से थोड़े घबराये हुए हैं पर वे अपने डर को दबाकर बाबा की खिंचाई कर रहे हैं.
परन्तु एक सवाल है. क्या सचमुच बाबा से इन नेताओं को डरने की जरूरत है? क्या जनता सचमुच इमानदार और योगनिष्ठ तपस्वियों को सत्ता में देखना  चाहेगी? क्या बाबा रामदेव के लड़ाके संसद  और विधानसभाओं में पहुँचने में कामयाब होंगे? पिछले दो दशकों से जनता जिस तरह के प्रयोग चुनावों  में करती दिखाई पड़ती है, उससे सदनों में बाबा के शिविर जमने की ज्यादा उम्मीद  नहीं दिखती. अक्सर इमानदार, नेक  और शिक्षित उम्मीदवार ऐसे लोगों के आगे धराशायी होते दिखाई पड़ते हैं, जो बदनामी और बदमाशी के इलाके से निकल कर राजनीति की गंगा में हाथ धोने आ जाते हैं या जिनकी चर्चा घोटालों और लुच्चेबाजियों के कारण होती रहती है या जो घोषित गुंडे, डकैत एवं जिलाबदर हिस्ट्रीशीटर हैं.इनके आगे कोई भस्रिका, कोई अनुलोम-विलोम काम आएगा, कहना थोडा मुश्किल है. पर बाबा ने  एक बेहतरीन पहल का फैसला किया है, इसलिए देश के भविष्य को लेकर जो भी चिंतित रहने बाले लोग हैं, उन्हें खुलकर  बाबा के इस नए शिविर में शामिल होना चाहिए. आखिर यह देश का सवाल है, हमारे बच्चों के भविष्य का सवाल है.

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