मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

माया की बाजीगरी माया जानें

अब राहुल गांधी किस मुंह से दहाड़ेंगे मायावती के खिलाफ? अब वे कैसे चीख कर कह पायेंगे कि केंद्र सरकार से जो पैसा उत्तर प्रदेश में आ रहा है, वह कहां जा रहा है किसी को पता नहीं? अब वे बसपा सरकार की बखिया आखिर कैसे उधेड़ेंगे? उत्तर प्रदेश में अगर कांग्रेस को अपने पांव जमाने हैं, तो उसकी सबसे बड़ी राजनीतिक दुश्मन हैं मायावती। उनसे लड़े बगैर कांग्रेस प्रदेश में खड़ी नहीं हो सकती। हाल के दिनों में अपने आक्रामक अभियान से कांग्रेस धीरे-धीरे लोगों के मन में अपने लिए एक जगह बनाने में कामयाब होने लगी थी परंतु माया की बाजीगरी माया ही जाने। उन्होंने बहुत आसानी से कांग्रेस को मिमियाने के लिए मजबूर कर दिया है।

एक ही तीर से मायावती ने दो शिकार करने में सफलता हासिल कर ली है। एक तो उनके गले पर सीबीआई अपना शिकंजा कस रही थी। केंद्र का रुख उनको लेकर बहुत सकारात्मक नहीं था। माया के करारे हलफनामे के बावजूद उन्हें राहत मिल ही जायेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं थी। इस मामले की सुनवाई भी करीब थी। दूसरे उनके लिए कांग्रेस प्रदेश में एक राजनीतिक चुनौती बनती जा रही थी। अब दोनों ही बाधाओं से कुछ दिनों के लिए माया को मुक्ति मिल गयी है।

यूपीए सरकार को बजट पर आये कटौती प्रस्तावों के खिलाफ समर्थन देने का फैसला करके मायावती ने न केवल कांग्रेस को कृतज्ञ महसूस करने के लिए विवश कर दिया है वरन उस शीतयुद्ध पर भी ठंडी छींटें मार दी हैं जो उत्तर प्रदेश में चल रहा था। विपक्ष जिस तरह महंगाई और भ्रष्टाचार के मामले पर एकजुट हो गया था, वह कांग्रेस के लिए बड़ा सरदर्द बनता जा रहा था। इस पूरे खेल के पीछे सपा के मुखिया मुलायम सिंह का दिमाग काम कर रहा था। वे वामपंथियों और भाजपाइयों को इस मसले पर एक साथ लाने में कामयाब हो गये थे। मायावती की ओर से कांग्रेस को संकट की इस घड़ी में कोई समर्थन मिलेगा, यह तो कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था। पर मायावती जानती हैं कि मुलायम सिंह को किस तरह कमजोर बनाये रखना है। उन्होंने वक्त पर एक ऐसा दांव चला कि सब चारों खाने चित।

हालांकि वे कांग्रेस की पीठ थपथपाने के साथ ही उसे झपड़ियाने से भी नहीं चूकीं। इसलिए कि कांग्रेस की मदद के तर्क को अपनी सैद्धांतिक राजनीतिक मजबूरी का जामा पहना सकें। उनका कहना है कि वे नहीं चाहतीं कि सांप्रदायिक ताकतें सत्ता की ओर बढ़ सकें, इसलिए कांग्रेस शासन की कार्यप्रणाली से बिल्कुल असहमत होते हुए भी उन्हें कांग्रेस को समर्थन देना पड़ रहा है। कांग्रेस की इस मौके पर उन्होंने जमकर आलोचना भी की ताकि किसी को इस नये गठजोड़ के पीछे किसी राजनीतिक सौदेबाजी की दुर्गंध न महसूस हो।

उनका दांव बिल्कुल सही बैठा है। अब सीबीआई उनके मामले पर कुछ दिन खामोशी बरत सकती है, कांग्रेस को भी उत्तर प्रदेश में अपनी संदेश यात्राओं का स्वर धीमा करना पड़ सकता है। भारतीय राजनीति की यह एक बड़ी विसंगति है कि अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए फैसलों को भी राजनेता राष्ट्रीय औचित्य के चमकदार मुलम्मे में लपेटकर इस तरह पेश करते हैं कि कोई आसानी से उसके तह में न जा सके। यही उनकी प्रामाणिकता के क्षरण का सबसे महत्वपूर्ण कारण है। ऐसी चालें और दुरभिसंधियां कितनी भी छिपायी जायं, जनता की समझ में तो आ ही जाती हैं।

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