शनिवार, 7 अगस्त 2010

गिलानी का ‘जादू’ है खतरनाक!

 वीरेंन्द्र सेंगर की कलम से 
कश्मीर में हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरवादी नेता, सैयद अली शाह गिलानी को सरकारी तौर पर ‘हीरो’ बनाया जा रहा है। घाटी में फौरी राहत के लिए गिलानी का इस्तेमाल काफी खतरनाक माना जा रहा है। शायद सरकार को यह भरोसा हो रहा है कि कहीं अलगाववादी गिलानी का धीरे-धीरे दिल ही न बदल जाए। किसी खूबसूरत फसाने के तौर पर यह कल्पना तो अच्छी है लेकिन  दशकों से गिलानी के कारनामों को जानने वाले आशंकित होने लगे हैं कि इस ‘प्रयोग’ से कहीं सरकार बड़ी मुसीबत को न्यौता न दे दे। 81 वर्षीय गिलानी पाकिस्तान समर्थक हैं। यह तथ्य कोई दबा छिपा नहीं है। दशकों से गिलानी भारत के खिलाफ घाटी में विषवमन की राजनीति करते आए हैं। जब भी घाटी में शांति का दौर आता है, तो गिलानी का गुट ‘आजादी-आजादी’ के नाम पर कोई न कोई भड़काऊ प्रलाप शुरू कर देता है। पिछले वर्षों में सरकार ने यहां के राजनीतिक गुटों के साथ संवाद करने की कई गंभीर कोशिशें की हैं लेकिन  कभी भी गिलानी ने इनमें सकारात्मक भूमिका नहीं निभाई है।

पिछले दो महीने से घाटी में भारी हिंसक उपद्रव का दौर चल रहा है। इस उकसावे के पीछे गिलानी गुट की खासी भूमिका देखी जाती है।  यह पहला मौका है जब पूरी घाटी में आम जनता कर्फ्यू तोड़ने पर आमादा हुई। यहां तक कि दस साल के बच्चे भी सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करते हुए देखे गए। विषम स्थितियों को देखकर शायद उमर सरकार भी घबराहट में आ गई है। ऐसे में उसने केंद्रीय गृह मंत्रालय के सुझाव पर गिलानी की ‘सेवाएं’ लेना स्वीकार कर लिया है। हुर्रियत कांफ्रेंस का यह गुट सालों से सरकार को अस्थिर की रणनीति में लगा रहा है। इस बार उसकी रणनीति काफी कारगर होती दिखाई पड़ रही है। सूत्रों के अनुसार, केंद्र के सुझाव पर उमर की टीम ने गिलानी से संपर्क साधा। इसके बाद बुधवार को सैयद गिलानी से शांति की अपील जारी कराई गई है।  गिलानी ने कश्मीरियों से अपील की है कि वे पत्थरबाजी न करें। यह भी कहा है कि इस मौके पर हिंसा करना कश्मीर की ‘आजादी’ के आंदोलन के लिए नुकसानदेह साबित होगा। उन्होंने पत्थरबाजी को ‘गैरइस्लामी’ भी करार किया है।

अलगाववादी इस नेता का ‘करिश्मा’ माना जा रहा है कि पिछले दो दिनों से घाटी में कोई बड़ी वारदात नहीं हुई। जिस तरह से गिलानी को एक हथियार के रूप में प्रयोग में लाया गया है, उससे उमर अब्दुल्ला की राजनीतिक हैसियत और बौनी हो गई है। उमर अब्दुल्ला ने  कहा कि उनके सामने फिलहाल यही लक्ष्य है कि कश्मीर की ‘आग’ बुझाने के लिए तमाम ‘शैतानों’ से भी हाथ मिलाना पड़े, तो मिलाओ। यहां राजनीतिक क्षेत्रों में माना जा रहा है कि गिलानी का प्रयोग काफी खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि इस प्रकरण से संदेश चला गया कि जनाधार वाले नेता उमर अब्दुल्ला नहीं, बल्कि सैयद अली शाह गिलानी हैं। परोक्ष रूप से यह भी संदेश गया कि पूरी घाटी गिलानी की अपील पर ज्यादा भरोसा करती है जबकि गिलानी तो कश्मीर को भारत से अलग होने का राग ही अलापते हैं।

2 टिप्‍पणियां: