ईश्वर पुराकाल से ही एक गंभीर पहेली रहा है। वह है या नहीं, इस प्रश्न पर हजारों वर्षों से वैज्ञानिक, दार्शनिक, विद्वान बहस करते आ रहे हैं। विज्ञानं ईश्वर को नहीं मानता। वह ऐसी किसी चीज को नहीं मानता, जो भौतिक रूप से मौजूद न हो, जिसको प्रयोगों से सिद्ध न किया जा सके, जिसका तर्कों से परिक्षण संभव न हो। आस्थावान लोग कहते हैं कि ईश्वर व्यक्तिगत अनुभव का विषय है, उसका सार्वजनिक प्रदर्शन असंभव है। उसे सिर्फ ह्रदय के भीतर महसूस किया जा सकता है। यह अनुभव भी अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है।
जो ईश्वर को नहीं मानते, उनके लिए कोई समस्या नहीं है, पर जो उसे मानते हैं, उनमें बहुत मतभेद है। कोई उसे साकार मानता है और कहता है कि भक्तों के उद्धार के लिए वह शारीर धारण कर धरती पर आता है। कभी राम के रूप में तो कभी कृष्ण के रूप में। जब-जब धर्म की हानि होती है , असुर, अभिमानी बढ़ जाते हैं, तब-तब साधुओं के परित्राण के लिए और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए वह साकार रूप धारण करता है। कुछ लोग उसे निराकार मानते हैं। उनका माननाहै कि ईश्वर का न कोई रूप है, न कोई गुण, वह निर्गुण, निराकार है। वह न जन्म लेता है, न मरता है। इसलिए वह अनश्वर है। वह जगत के उत्पन्न होने से पहले भी था, जगत में भी है और जगत नहीं रहेगा, तब भी रहेगा। कुछ साकार-निराकारवादी भी मिलते हैं। उनका मानना है कि ईश्वर निराकार है पर जरूरत होने पर वह साकार रूप धारण कर सकता है। वह तो अव्यक्त है परन्तु जगत के रूप में वही व्यक्त हो रहा है। इन्हीं मान्यताओं के आधार पर ईश्वर को पाने के रस्ते भी अलग-अलग हो जाते हैं। कोई ध्यान से उस तक पहुंचना चाहता है, कोई भक्ति से तो कोई किसी और तरह से। आशय यह कि ईश्वर को मानने वाले भी उसके बारे में एकराय नहीं हैं।
महात्मा बुद्ध ने ईश्वर और आत्मा की अलग ही व्याख्या की . वे दोनों को ही नहीं मानते हैं। वे जीवन की आत्यंतिक शुद्धि को ही निर्वाण मानते हैं। इन ईश्वर वादियों में किसको सही माना जाये, एक बड़ी समस्या है। जो समन्वय करने वाले लोग हैं, उनका कहना है कि सभी सही हैं। जिस भी रास्ते चलो, अगर मन शुद्ध है और ईश्वर को पाने का अडिग संकल्प है तो उसी अनुभव तक पहुंचोगे। कब तक? इस सवाल का कोई उत्तर नहीं दे सकता। एक क्षण में भी अनुभूति हो सकती है और कई जन्म भी लग सकते हैं। कोई भी तार्किक व्यक्ति इन बातों से सहमत नहीं हो सकता। साधुजन कहते हैं, ईश्वर को समझना है तो तर्क को कचरे में फ़ेंक कर आओ, बुद्धि को स्थगित करके आओ. .
इन सब बातों से अलग विचारशील आध्यात्मिक लोग और वैज्ञानिक अपने-अपने ढंग से ईश्वर को जानने कि कोशिश कर रहे हैं। भारतीय दर्शन में वेदांत ने ईश्वर को तर्क से खोजने की कोशिश की है। उसके अनुसार ईश्वर सब जगह है। बाहर भी, भीतर भी। बाहर ब्रह्माण्ड बहुत बड़ा है, कहाँ खोजोगे, इसलिए भीतर देखो। वह तुम्हीं हो, तत्वमसि। या मैं ब्रह्म हूँ, अहम् ब्रह्मास्मि। बराबर यह ध्यान, अपने अस्तित्व का ऐसा चिंतन तुम्हें ईश्वर बना देगा। इसे ठीक ढंग से समझें तो ईश्वर एक काल्पनिक सत्ता है. वह व्यक्ति की संभावनाओं का समग्र समुच्चय है ।
हर व्यक्ति में वे सारी संभावनाएं हैं जो ईश्वर में परिकल्पित हैं और कोई भी निरंतर प्रयास तथा अभ्यास से उन्हें जगा सकता है. यहाँ तक कि वह कल्पित ईश्वर जैसा अपना विकास कर सकता है. दर्शन में कल्पित ईश्वर में सम्पूर्णता है अर्थात कोई भी मनुष्य सम्पूर्णता तक पहुँच सकता है. इस तर्क से विज्ञानं भी असहमत नहीं होगा क्योंकि धीरे-धीरे वह स्वयं ऐसा कर रहा है। नयी-नयी खोजों के माध्यम से वह प्रकृति के रहस्यों को खोलता जा रहा है। जीवन के अनेक रहस्य अब विज्ञानं क़ी मुट्ठी में हैं। वह संजय क़ी दिव्य दृष्टि हासिल कर चुका है। वह दिव्य और दूरश्रवन में पारंगत हो चुका है। वह एक कोशिका से जीवन का निर्माण कर सकता है। वह व्यक्ति को चिरयुवा रख सकता है । उसने जींस को डीकोड कर लिया है और. उनके गुणों को पहचान गया है। वह जींस ट्रांसप्लांट के जरिये किसी के भी व्यवहार और बुद्धि में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर सकता है। वह एक आदमी जैसा दूसरा आदमी रच सकता है। जीवन पर उसने विजय पा ली है, मृत्यु का रहस्य समझने में जुटा है। मृत्यु रोक पाना अभी उसके वश में नहीं है ।
एक और बात । प्रकृति क़ी शक्तियों से वह पराजित होता आया है। प्राकृतिक निर्माण और विनाश क़ी शक्ति तो काफी अंश तक उसने प्राप्त कर ली है। वह जीवन क़ी रचना कर सकता है, वह व्यापक विनाश भी कर सकता है पर प्राकृतिक विनाश से बच पाना उसके लिए अभी तक संभव नहीं हो सका है । नहीं कह सकता कि वह ऐसा कर पायेगा या नहीं पर दर्शन के ईश्वर की तरह जिस दिन वह सर्वसामर्थ्य प्राप्त कर लेगा , उस दिन कुछ अघटित घटने से कोई रोक नहीं सकता ।
Iswar ke bare men bahut hi tarkik vislesan kiya hai Dr Subhash rai ne. sawal yah paida hota hai ki jo iswar ko mante hen. astik hen. vahi iswar ki satta ke khilaf karya karte hen. badalte parivesh men iswar pakhandi logon ki dukan adhik ho gaya hai. yahi karan hai ki iswar ko manane wale hi use bech rahe hen.
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