सोमवार, 15 मार्च 2010

मां

मां किसे प्यारी नहीं होती? कौन मां के पास नहीं रहना चाहता है? मां अपने गर्भ में नौ महीने रखती है, फिर जन्म देती है। अपना दूध पिलाकर बड़ा करती है। हर संकट से रक्षा करती है। जब भी बच्चा पुकारता है, जितनी भी दूर हो, दौड़ी चली आती है। पर जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है, वह मां के अलावा भी बहुत सारेलोगों से मिलता है, उनसे सीखता है। जीवन के तमाम गुर जानने और उनके लाभों को हासिल करने में लग जाता है। धीरे-धीरे वह अपनी चिंता के लिए मां पर आश्रित नहीं रह जाता। मतलब की वह बड़ा हो जाता है। अब उसे मां की जरूरत नहीं रह जाती बल्कि मां को उसकी जरूरत पड़ने लगाती है। मां को भी अपने बच्चे का बड़ा होना अच्छा लगता है। अब वह खिलौने नहीं मांगता , अब वह चाँद के लिए जिद नहीं करता, अब वह हाथी को घड़े में डालने के लिए मारा-मारीनहीं करता। वह चालाकियां भी सीख जाता है, उसे समझदारी भी आ जाती है, उसे दूसरों से फायदा उठाना भी आ जाता है। धीरे-धीरे वह धोखा देना, बेवकूफ बनाना, षड्यंत्र करना भी सीख जाता है। वह इतना बड़ा हो जाता है कि उसे मां की आवश्यकता नहीं रह जाती। इसके बावजूद उसे यह आज़ादी होती है कि वह मां का जब भी सान्निध्य चाहे, मिल सकता है।
पर एक और मां होती है जो तभी पास आने देती है जब कोई बच्चा बन कर आये। वह मां कभी दूर नहीं होती। हमेशा पास ही रहती है, अपने बच्चों का हर तरह से ध्यान रखती है, परन्तु उसे पास देख पाना उसी के लिए संभव हो सकता है, जो रोता हुआ आये, जो बच्चा बन कर आये। ह्रदय के भीतर तनिक भी कालिमा है, थोड़ी भी चोरी है, चालाकी है तो मां इंतजार करती है। वह सबकी मां है, सब उसके बच्चे हैं। लेकिन अधिकांश बच्चों को मां की जरूरत ही नहीं होती। जब तक सुख होता है, कोई भी मां को याद नहीं करता है, दुःख की घड़ियाँ आती हैं, तब मां की याद आती है, तब रोना आता है। जो बच्चे सुख में भी मां के सामने कृतज्ञतावश रोते रहते हैं, उनके लिए कोई कठिनाई नहीं है पर जो सुख में ऐंठे हुए थे और दुःख का पहाड़ सामने आते ही आंसू बहाने लगे, मां उनसे पिघलती नहीं, उन्हें सजा देती है, उनकी कठोर परीक्षा लेती है और खरे उतरने पर ही उन्हें अपनी शरण में लेती है।
यह मां जगत की मां है। जगत्जननी, विश्वात्मिका है। वह दीखते हुए भी नहीं दिखती है। वह कण-कण में व्याप्त है, रोम-रोम में व्याप्त है। सारा जड़, जीवन जो व्यक्त हो रहा है, वह मां के ही गर्भ में है। रचना, स्थिति और विनाश सब मां के गर्भ में ही घटित हो रहा है। इसका अनुभव केवल उन्हें ही हो सकता है, जिन पर मां की कृपा हो। मां की कृपा कैसे मिले, इसके लिए मां से ही प्रार्थना करनी पड़ेगी.