बंधू आगे बढ़ता चल,
सबका माल पचाता चल
अगर तरक्की करनी है तो
टंगड़ी मार गिराता चल
सबका माल पचाता चल
अगर तरक्की करनी है तो
टंगड़ी मार गिराता चल
सच्चाई को आग लगा दे,
भाईचारे को दफना दे
उन्हें डुबोकर बीच भंवर में भाईचारे को दफना दे
अपनी कश्ती पार लगा ले
झूठ फरेबों की नदियाँ में
गोते खूब लगाता चल.........
अगर कवि बनना है बन्दे,
चाटुकारिता सीखले मंडे
इधर उधर की कविता लेकर
डाल दे तुकबंदी के फंदे
साहित्यिक चोरी को अपना
मान के धरम निभाता चल.......
गर नेता बनाना है लाले,
बेशरमी को गले लगा ले
ठगी दलाली और चंदे की
सदाबहारी फसल उगा ले
विश्वासों में भोंक के खंजर
गुंडों को गले लगाता चल.....
यदि बनना चाहो पत्रकार
करो सच्चाई का तिरस्कार
सच का झूठ और झूठ का सच
कर शब्दों का ऐसा चमत्कार
दारू पीकर माल पचाकर
अपनी कलम चलाता चल....
थानेदार का यदि सपना है,
चोर बलात्कारी अपना है
रिश्वत तेरा सगा बाप है,
फिर भी राम राम जपना है
मां बहनों से जोड़ के रिश्ता
गाली बेख़ौफ़ सुनाता चल.......
शिक्षक पद यदि तू पा जाये,
ट्यूशन की तू नाव चलाये
शिक्षण करम छोड़कर प्यारे ट्यूशन की तू नाव चलाये
फ़ोकट का तू वेतन पाए
कर तिकड़म नेतागीरी,
विद्या की लाश उठाता चल.........
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