शनिवार, 20 मार्च 2010

राजनीति में साधु

देश की राजनीति में साधु सन्यासी कोई नई बात नहीं हैप्राचीन काल  से ही ऋषियों का राजनीति में पूरा प्रभाव रहा हैसतयुग से लेकर त्रेता और द्वापर में कई  उदाहरन देखे जा सकते हैं। लेकिन साधुओं पर हमेशा से ही प्रश्न-चिह्न   लगता रहा हैद्रोणाचार्य के ऊपर  यह आरोप था कि वे राजाओं के जरखरीद गुलाम थेउन्होंने कभी अपने धर्म का पालन नहीं किया. वस्तुतः जब योगी राजदरबार में रम  जाता है तो वह भोगी बन जाता हैयोगी से भोगी बनाने वाला इन्सान अधिक नुकसानदेह होता हैवह समाज से कट जाता हैराजसी रोटी खाने के कारन उसकी  तेजस्विता समाप्त हो जाती हैआज के कथित साधु भी राजनैतिक आश्रय तलाशते हैं.  शायद  ही कोई ऐसा संत, महंत होगा जिसके सम्बन्ध किसी नेता से न हों. वास्तव में देश में बड़ी संख्या में कुकुरमुत्तों की तरह उगे साधु विलासिता का जीवन व्यतीत कर रहें hain। उनके ठाट-बाट  देखकर पूंजीपति भी शरमाते हैं. इश्वर के प्रति  आस्था का ढोंग रखने वाले यह साधु अपनी सुरक्षा के लिए हथियारबंद लोगों को साथ रखते हैं.उन्हें अपनी जान की चिंता क्यों है, अगर वो बीतरागी हैं .

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