रविवार, 12 सितंबर 2010

ये कहां का धर्म है जनाब?

धर्म वह नहीं है, जो हम जानते हैं। वह भी नहीं, जो हम मानते हैं। वह इस जानने और मानने से बहुत दूर है। हम समझते हैं कि थोड़ा पूजा-पाठ कर लिया, मंदिर हो आये, किसी भिखारी के हाथ पर एक रुपये का सिक्का डाल दिया, बस हो गया धर्म। मिल गयी जीवन में कुछ भी करने की छूट, बेईमानी की रियायत। हम मानते हैं कि महीने में एक बार राम चरित मानस का पाठ करा दिया, सुबह उठे तो गीता का एक श्लोक बांच लिया और हो गया धर्म, सारे पाप हो गये माफ और नये सिरे से पाप करने का रास्ता खुल गया। अब महीने भर चाहे जितने पीड़ितों को सताओ, चाहे जितने लोगों से पैसा वसूलो। हम जानते हैं कि भगवान बड़ा दयालु है और कुछ पत्र-पुष्प से या मामूली लड्डुओं से खुश हो जाता है, वह बहुत सीधा है, चाहे जितनी उल्टी-सीधी करते रहो पर जैसे ही उसके चरणों में नतमस्तक हो जाओगे, जैसे ही उसके सामने जाकर गिरोगे, वह अपनी बांहों में उठा लेगा और सारे अधम कर्मों से मुक्त कर देगा।

यह हमारी गलती नहीं है, यही हमें जन्म से बताया गया है, सिखाया गया है। यही हमारे धार्मिक कहे जाने वाले अग्रजों ने भी हमें सिखाया है। वे खुद इसी रास्ते पर चलते आये हैं। इतना ही करके वे मानते हैं कि वे मुक्त हो गये हैं। भगवान ने उन्हें माफ कर दिया है। माफ ही नहीं किया है बल्कि कुछ भी करने का अभयदान भी दे दिया है। अब उनको न पाप छू सकेगा, न अपराध और न ही देश का कानून। यह हमारी भी नासमझी है और उनकी भी जो खुद को धर्म का ठेकेदार समझते आ रहे हैं। इसी नासमझी का वे फायदा भी उठा रहे हैं। उनके प्रवचनों में लाखों लोग जुटते हैं, इसे वे अपने ऊ पर भगवान की कृपा और अपनी ताकत मानने लगे हैं। इसी भ्रम में वे कुछ भी करने लगे हैं। इसी भ्रम में वे खुद को कानून और संविधान से भी परे मानने लगे हैं। धार्मिक अड्डों पर अब वह सब कुछ होने लगा है, जिसे आम, अदना और अनपढ़ आदमी भी कभी धर्म मानने को तैयार नहीं होगा।

क्या किसी साधु-संत को अपने आश्रम में किसी अपराधी को शरण देने का आश्वासन देना चाहिए? क्या रोज लोगों को नेकी और ईमानदारी का उपदेश देने वाले धर्मज्ञ को काले धन को सफेद करने का किसी को भी भरोसा देना चाहिए? क्या खुद को ईश्वर का प्रतिनिधि कहने वाले किसी भी व्यक्ति को ठगी, धूर्तता और हत्या के प्रयास में कहीं से भी संलग्न होना चाहिए? पर यह सब वे लोग कर रहे हैं, जिन्हें इस देश के लोग साधु कह कर पुकारते हैं। वे दूसरों को धर्म की क्या शिक्षा देंगे, जो खुद ही धर्म से च्युत हैं। वे गलत नहीं हैं क्योंकि वे जिस इरादे से इस क्षेत्र में आये थे, सिर्फ वही कर रहे हैं। भूल तो वे कर रहे हैं जो अपनी मेहनत, अपनी लगन और अपनी सामर्थ्य के बूते अपना रास्ता तय करने की जगह भगवान, भाग्य और भगवान के तथाकथित प्रतिनिधियों के सहारे पर बैठे रहते हैं। कहते हैं कि भगवान अगर है तो वह भी उन्हीं की मदद करता है, जो खुद की मदद करते हैं। वह नहीं चाहता कि कोई उस तक पहुंचने के लिए बिचौलिया पकड़े और उसे कमीशन खिलाये। कानून के राज्य में किसी को भी चाहे वह कितना भी जनास्था का पात्र क्यों न हो, अपराध करके भी बचे रहने की छूट नहीं मिल सकती।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लेख है अभी पूरा तो नहीं पढ़ा पर पढेंगे जरुर ....

    मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
    (क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
    (क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com

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  2. सही बात कही आपने। इसलिए अपना तो अपने भगवान साथ(अपन जिसे भगवान मानते हैं)सीधा सम्‍पर्क है।

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  3. आदरणीय श्री सुभाष राय जी,

    पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ। कृपया डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' का नमस्कार स्वीकार करें।

    आपका उक्त आलेख पढा। सच को कहने का साहस जुटाने वाले लेख के रूप में आपको एक बार फिर से क्रान्तिकारी अभिवादन पेश करता हूँ।

    आपके छोटे से आलेख में वर्णित इस सच्चाई को भी यदि लोग नहीं पचा सकें या मूढ लोग समझ नहीं सकें तो इसमें लेखक का क्या दोष है?

    लेकिन इस देश में कुछ लोगों का धन्धा है कि आपके जैसे लेखकों को विदेशियों का ऐजेण्ट एवं हिन्दू धर्म विरोधी घोषित करके निरुत्साहित करने का प्रयास करें, जिससे आप जैसे सद्विचारी और सद्भावी लेखक अपना कर्म ईमानदारी से नहीं कर सकें।

    आशा है कि आगे भी आपके इसी धारा के सटीक आलेख पढने का मिलते रहेंगे।

    शुभकामनाओं सहित।
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

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  4. डा; साहब, धर्म के बारे में आपकी अवधारणा देश के अधिकांश लोगों की भावनाओं के अनुकूल है, धर्म आज बेहद मुनाफाखोरी का धंधा हो गया है, धर्म की आड् में सभी धंधे और कुकर्म चलते हैं, मेरा मानना है कि जब तब पाप होता रहेगा, धर्म का धंधा दिन दूना रात चौगुना बढ्ता रहेगा क्‍योंकि पापी के मन में अपराध बोध होता है, हमें धर्म रूपी सौदागरों को बेनकाब करने के लिए अपना प्रयास निरंतर जारी रखना चाहिए

    आभार सहित

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