बांग्लादेश का बेतुका फरमान
बांग्लादेश भी अब सयाना होता दिखने लगा है। कुछ-कुछ पाकिस्तान की तरह। हालांकि अभी वहां हिंदुओं की वैसी दुर्दशा नहीं है, जैसी पाकिस्तान में है लेकिन वह भी उसी दिशा में कदम बढ़ा रहा है। उसे तनिक भी इस बात का खयाल नहीं है कि अगर हिंदुस्तान ने मदद न की होती तो उसका वजूद भी नहीं होता। इस छोटे से देश में कुल आबादी का दस फीसदी हिंदू है। यह बहुत ही प्रसन्नता की बात रही है कि अब तक बांग्लादेशी हिंदू अपने त्योहार भारी उल्लास से मनाते आ रहे हैं। कोई रोक-टोक नहीं, कोई व्यवधान नहीं। वहां हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बांग्ला भाषा एक मजबूत पुल का काम करती आयी है। बातचीत और व्यवहार से कोई इन दोनों को अलग-अलग पहचान नहीं सकता। मुसलमान हिंदुओं के त्योहारों में और हिंदू मुसलमानों के पर्वों में पूरे उत्साह से शिरकत करते रहे हैं। इस सांप्रदायिक सौमनस्य को पलीता लगाने की कई बार कोशिशें की गयीं, मगर कामयाब नहीं हुईं।
पर पहली बार बांग्लादेश के हिंदुओं के दिल को ठेस पहुंचायी गयी है। यह काम किसी कट्टरवादी तंजीम ने किया होता तो ज्यादा परेशानी नहीं होती क्योंकि तब हिंदू-मुस्लिम दोनों मिलकर उसका मुकाबला कर लेते पर दुर्भाग्य यह है कि यह काम सरकार के बड़े ओहदे पर बैठी एक महिला मंत्री ने किया है। बांग्लादेश की गृह मंत्री सहारा खातून ने देश के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से कहा है कि वे भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव को 'शांतिपूर्वक' मनायें और रोजा खुलने के समय, यानी शाम पांच बजे तक जन्माष्टमी मना लें। अब बताइये, जब भगवान का जन्म ही 12 बजे रात को होता है तो पांच बजे शाम तक हिंदू अपना उत्सव कैसे मना लेंगे। क्या ये तथ्य मोहतरमा खातून को नहीं मालूम है। कोई पहली बार तो बांग्लादेश में जन्माष्टमी मनायी नहीं जा रही है और ऐसा भी नहीं है कि रमजान के महीने में यह त्योहार पहली बार पड़ा हो।
पहले भी कई बार रोजे के दिनों में कृष्ण जनमोत्सव मनाया जा चुका है। वह भी पूरे उत्साह से, गाजे-बाजे के साथ। वहां के किसी नागरिक को कभी बुरा नहीं लगा, किसी ने कभी किसी तरह का एतराज नहीं किया। फिर अचानक इस बार क्या हो गया, कौन सी आफत आ पड़ी कि सरकार को निहायत बेतुका फरमान जारी करना पड़ा। इस आदेश पर भारत में नाराजगी है, बांग्लादेश में भी लोग खुश नहीं हैं। गृह मंत्री की सलाह मानना हिंदुओं के लिए आसान नहीं होगा। गृह मंत्री के बयान की हर ओर आलोचना हो रही है। बांग्ला मीडिया ने इसे भेदभाव भरा बयान कहा है। 'न्यू एज' अखबार ने भी इस मुद्दे पर सहारा खातून की खिंचाई की है। अख़बार के मुताबिक बांग्लादेश में हिंदुओं पर यह पाबंदी भेदभावपूर्ण कार्रवाई है। इसे रद्द किया जाना चाहिए।
भेदभाव हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंकुछ लोग खिंचने से ही लंबे होते हैं। खातून ने कुछ नया नहीं किया है। उन्हें अपनी पब्लिक सिटी के लिए इससे सस्ता, सरल रास्ता कोई नहीं लगा होगा। इसे कहते हैं आम के आम और गुठलियों ... जी गुठलियों नहीं, झूठे छिलकों के भी दाम। इस तरह की हरकतों से यही तो होता है। हम इन्हें नहीं जानते थे, अब इनकी हरकत के कारण इन्हें भूल नहीं सकते।
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