रविवार, 19 सितंबर 2010

दुश्मन चुप नहीं बैठा है

जामा  मसजिद के सामने विदेशी पर्यटकों की बस को निशाना बनाकर जो हमला किया गया, उसमें कोई बड़ा नुकसान तो नहीं हुआ पर यह एक चेतावनी है कि जो लोग दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन से प्रसन्न नहीं हैं या जो नहीं चाहते कि दुनिया में भारत का मान-सम्मान बढ़े, वे चुपचाप बैठे नहीं हैं, वे दिन-रात कुछ न कुछ ऐसा सोच रहे हैं, जिससे विदेशियों के मन में घबराहट पैदा की जा सके, उन्हें खेलों में शामिल होने या उन्हें देख्नने के लिए विदेशों से आने की योजना बनाने से रोका जा सके। इसमें उन्हें कितनी कामयाबी मिलेगी, मिलेगी भी या नहीं, यह निर्भर है हमारी पुलिस और दिल्ली की जनता की सजगता पर।

यह बात बहुत साफ है कि किसी भी हमलावर को अपने काम को अंजाम देने से रोक पाना मुश्किल काम है क्योंकि यह किसी को पता नहीं होता कि हमलावर कहां घात  लगाये बैठा है और वह कब किस पर हमला करने वाला है। आतंकवादी हमले अनिश्चित होते हैं। किसी भी देश के पास इतने सुरक्षा बल नहीं होते कि वह हर आदमी के पीछे एक बंदूकधारी लगा दे, यह व्यावहारिक रूप से असंभव है  पर जब आम नागरिक भी अपनी जिम्मेदारियां समझता है तब किसी बाहरी या उपद्रवी मानसिकता वाले व्यक्ति के लिए छिपना, सामान खरीदना या बंदूक और विस्फोटकों के साथ सड़कों पर चलना कठिन हो जाता है। हमारे देश की पुलिस और उसके अधिकारी न तो इस तरफ ध्यान देते हैं, न ही सरकारें सुरक्षा और सतर्कता की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी के लिए कभी गंभीर पहल करती हैं। इसके अभाव में आम आदमी भी यह समझे बैठा रहता है कि सुरक्षा तो पुलिस का काम है, आतंकवादियों और अपराधियों से जनता की हिफाजत तो पुलिस का काम है। यह एक बड़ी कमी हमारी व्यवस्था में है। क्या हम स्वयं सुरक्षित रहना चाहते हैं, क्या हम चाहते हैं कि हमारे मित्र, सगे-संबंधी और हमारा समाज सुरक्षित रहे? अगर हम चाहते हैं तो क्या कभी इस बात पर विचार करते हैं कि इसमें हमारी अपनी क्या भूमिका हो सकती है? शायद नहीं, कभी नहीं सोचते, क्यों कि सरकार और पुलिस विभाग की तरफ से इस मामले में कभी जनता को भरोसे में लेने की कोई कोशिश नहीं की जाती है।

इस तरह की कार्यशालाएं व्यापक स्तर पर की जानी चाहिए, जिनमें मुहल्ला स्तर पर लोगों की भागीदारी हो और उन्हें समाज और देश के प्रति, अपने शहर के प्रति, उसकी प्रतिष्ठा के प्रति उनकी जिम्मेदारियों से अवगत कराया जाये, उन्हें बताया जाये कि किसी भी संदिग्ध आदमी को वे कैसे पहचान सकते हैं, बिना अतिरिक्त समय दिये वे किस तरह पुलिस की मदद कर सकते हैं। इससे बहुत सारी अवांछित घटनाएं  टाली जा सकती हैं। कोई भी आतंकवादी अकेला अपने बूते पर कुछ भी करने में सफल नहीं हो सकता। वह अपने काम में आने वाली   चीजें यहीं के बाजार से खरीदता है, कोई वारदात करने से पहले वह यहीं रुकता है, किसी न किसी की मदद जरूर लेता है। अगर हर नागरिक अपने आस-पास के लोगों के प्रति सजग रहे तो ऐसे लोग बहुत जल्द पहचाने जा सकेंगे|

2 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच, यह सजग रहन का समय है, वर्ना जरा सी चूक बड़ा घाव दे सकती है।

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  2. आपकी बात सही है सर, लेकिन मुझे लगता है कि यह बहुत मुश्किल काम है। हर व्यक्ति इतनी सजगता से रहेगा बड़ा असंभव का काम दिखता है। यह बात सही है भारत जैसे देश में सजगता की कमी है यही कारण है कि आतंकी अपनी करतूत को अंजाम दे जाते हैं।
    पहले उन लोगों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए जो आतंकी घटनाओं में शामिल थे और यह साबित हो चुका है। उसके बाद देखिए तस्वीर अपने आप बदल जाएगी। सजग रहकर हम और आप क्या कर लेंगे, पुलिस को खबर कर देंगे। पुलिस पकड़ लेगी, न्यायालय में मुकदमा चलेगा। उसमें कई बरस लगेंगे। मान लीजिए न्यायालय ने उसे दोषी मान भी लिया और सजा मुर्करर कर दी तो क्या आपको लगता है उसे सजा मिल जाएगी। नहीं मिलेगी सर।
    तो फिर हमारी आपकी सजगता क्या काम आई।
    सर एक बार आतंकियों को फंसी पर चढ़ा दीजिए फिर देखिए पूरा परिदृश्य किस तरह बदलता है।

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