गुरुवार, 30 सितंबर 2010

राम्लला जहां हैं, वहीं रहेंगे

भले ही अयोध्या मसले पर न्याय तक पहुंचने में बहुत लंबा समय लग गया हो, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने जो निर्णय दिया है, उससे नहीं  लगता कि किसी को कोई असंतोष होना चाहिए। बहुत सारी आशंकाएं थीं, चारों ओर डर का माहौल पसरा हुआ था, न जाने क्या हो जाये पर जब फैसला आया तो सबने बहुत शांत मन से इसे स्वीकार किया। कई बार आस्था और विश्वास किसी स्थापित सच से भी बड़े हो जाते हैं। हम राम के बारे में जितना कुछ जानते हैं, वह इस देश के महाकाव्यात्मक कृतियों के रचनाकारों के माध्यम से। वाल्मीकि, भवभूति, कंबन और अन्यान्य महाकवियों ने अपने-अपने ढंग से रामकथा लिखी। बाद में तमाम संत कवियों ने भी राम का गुण गाया। कविता और कथा पूर्ण रूप से इतिहास नहीं होता, उसमें कल्पना के लिए पूरी गुंजाइश होती है। यही कारण है कि अलग-अलग रामकथाओं में तमाम विवरण एक-दूसरे से मेल नहीं खाते।

राम के बारे में कोई पुष्ट ऐतिहासिक या पुरातात्विक साक्ष्य भी नहीं है परंतु भारतीय लोक की स्मृति में हजारों साल से राम की एक छवि विराजमान है, उनकी भगवत्ता पर भी यहां कोई संशय नहीं है। इसके लिए किसी भी हिंदू को कभी प्रमाण मांगते नहीं देखा गया। जो उन्हें न मानना चाहे, उसे ऐसा करने की छूट भी है, कोई दबाव नहीं। इसी लोकस्मृति में राम की जन्मस्थली के रूप में अयोध्या भी बसी हुई है। आम हिंदू के लिए अयोध्या एक बड़ा तीर्थ है। आम तौर पर यह भी एक धारणा रही है कि जिस स्थान पर बाबरी ढांचे को खड़ा किया गया था, वह वस्तुत: राम का जन्मस्थल है। अदालत ने इस विश्वास पर अपनी मुहर लगाकर अपने महान पूर्वजों के प्रति हिंदुओं के आदर भाव को प्रतिष्ठित किया है। तीनों न्यायमूर्तियों, एस यू खान, सुधीर अग्रवाल और डी वी शर्मा, में इस बात पर सर्वसहमति रही कि जहां भगवान राम की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं, वह राम का जन्मस्थल है, इसलिए उस पर रामलला का पूर्ण अधिकार है और उस स्थल पर न कोई दावा कर सकता है, न ही वहां से मूर्तियां हटायी जा सकती हैं। न्यायमूर्ति खान का यह कहना बहुत मायने रखता है कि बाबर ने मंदिर तोड़कर नहीं बल्कि ध्वस्त मंदिर के अवशेष पर बाबरी का निर्माण कराया था। इससे यह बात साफ हो जाती है कि उस स्थान पर कभी मंदिर था। इसी नाते बाबरी के मुख्य गुंबद में राम जन्मस्थान पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा नामंजूर कर दिया गया। परंतु विवादित जमीन का तर्कसम्मत बंटवारा करके न्यायालय ने मुसलमानों को भी वहां अपनी इबादतगाह बनाने की जगह दे दी है।

मुख्य भाग समेत एक तिहाई भूमि हिंदू महासभा को दी गयी है, जब कि सीता रसोई और राम चबूतरा समेत एक तिहाई निर्मोही अखाड़े को। एक तिहाई हिस्सा मुस्लिमों को दिया गया है। निर्णय इतना सुचिंतित है कि दोनों ही पक्षों को इस पर एतराज नहीं होना चाहिए। फिर भी अगर किसी पक्ष को लगता है कि इस मसले पर और आगे विचार किये जाने की जरूरत है तो वह सुप्रीम कोर्ट जाने को स्वतंत्र है। फिलहाल राम जन्म स्थान पर यथास्थिति बनी रहेगी। जब यह मामला अदालत को सौंप दिया गया है तो किसी को भी लोगों की भावनाएं भड़काकर इसका फायदा उठाने का मौका नहीं मिलना चाहिए और सभी संबंधित पक्षों को हर सूरत में न्यायिक निर्णय को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

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