न्याय हमेशा भय की जडेंÞ काटता है। न्याय का अर्थ भयग्रस्तता नहीं बल्कि भय से मुक्ति है। यद्यपि जो निर्णय बहुत पहले आ जाना चाहिए था, उसमें बिलम्ब हुआ है लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद। मामला आपस में बातचीत करके सुलझा लिया गया होता तो ज्यादा बेहतर होता, वह पारस्परिक सद्भाव बढ़ाने में मदद करता लेकिन दुर्भाग्य से काफी प्रयासों के बाद भी यह संभव नहीं हो सका। ऐसी स्थिति में अदालत के निर्णय के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। अयोध्या की विवादित भूमि के मालिकाना हक के बारे में आ रहे फैसले को लेकर तनिक भी घबराने की बात नहीं है। इस मामले में शामिल दोनों ही पक्षों को इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि उनके प्रतिकूल भी फैसला जा सकता है और अनुकूल भी। उन्हें अपने लोगों से यह आग्रह करना चाहिए कि फैसला जो भी हो, वे पूरी सहजता से स्वीकार करें। इस फैसले के बाद उनके लिए न्यायालय के दरवाजे बंद नहीं हो जायेंगे।
जिस किसी पक्ष को अगर लगता है कि फैसला संतोषजनक नहीं है, उसके लिए सुप्रीम कोर्ट में जाने का विकल्प खुला रहेगा। सही बात तो यह है कि न राम को जमीन के किसी छोटे से टुकड़े की चिंता है, न ही रहीम को। यह तो हमारी छोटी समझ राम और रहीम को अलग-अलग करके देखती है। उनके लिए तो पूरी दुनिया, पूरी कायनात ही उनकी है। वे आपस में कभी झगड़ते भी नहीं, यह तो हम हैं जो उन्हें अपने-अपने कुनबे में बांटकर देखते हैं और इसी नासमझी के चलते आपस में लड़ते रहते हैं। और जब हम लड़ते हैं तो उस द्वंद्व की आग पर रोटियां सेंकने वाले अपने उल्लू सीधे करते हैं, उसका फायदा उठाते हैं। वे तैयार बैठे हैं, अपनी योजनाएं बनाने में मशगूल हैं, गोंटियां बिछाने में जुटे हैं। बस इतना करना है कि उन्हें कोई मौका न मिले, वे कामयाब न हो पायें। क्योंकि वे तो अपना काम बना लेंगे, पर लड़ाई में नुकसान किसका होगा? इतिहास उठाकर देखिये जब भी हिंदू, मुसलमान आपस में लड़ता है, तो आम आदमी को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है।
यह बात अब सब लोग समझने भी लगे हैं पर जब इस पर अमल का अवसर आता है, तब यह बातें याद नहीं रहतीं। थोड़ी सावधानी की जरूरत है, थोड़ी सजगता की आवश्यकता है, बस झगड़ा कराने और उसका फायदा उठाने वालों को निराशा हाथ लगेगी। न्यायालय जो भी फैसला देगा, वाजिब तर्कों के आधार पर देगा। पहले फैसला आने दीजिए, फिर उसे गौर से समझिये, इसके बाद तय करिये कि क्या करना चाहिए। लड़ कर न हिंदू उस पर अपना अधिकार जमा सकेगा, न मुसलमान। आप सबको ही यह साबित करना है कि यह जाहिलों का देश नहीं है। कई बार ऐसी गलतियां हो चुकीं हैं, हम दूसरों के बहकावे में आ जाते हैं और आपस में एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। इस बार ऐसी गलती नहीं दुहरायी जानी चाहिए। वैसे ही हिंदुस्तान के चेहरे पर कम घाव नहीं हैं, और घाव देने की जरूरत आखिर क्या है।
वैसे ही हिंदुस्तान के चेहरे पर कम घाव नहीं हैं, और घाव देने की जरूरत आखिर क्या है।-बिल्कुल सही कहा आपने..विचारणीय आलेख.
जवाब देंहटाएंयह विचार इस समय की ज़रूरत है ।
जवाब देंहटाएंउत्तम लेख है ... आज की ज़रूरत है ऐसे लेख ....
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