ऐसे कश्मीर का हल नहीं निकलेगा। जो साजिश कर रहे हैं, जो उपद्रव करा रहे हैं, वे समाधान का क्या तरीका बतायेंगे? जो कश्मीर की आजादी की मांग कर रहे हैं, क्या आप उनसे समस्या के हल का उपाय पूछेंगे? जो लोग पाकिस्तान के हाथों में खेल रहे हैं, क्या वे हल करायेंगे कश्मीर की समस्या को? हमारी सबसे बड़ी कठिनाई है कि हमारी सरकारें डर-डर कर फैसले करती हैं। हमारे राजनेता साहस का परिचय कभी नहीं देते, उनमें साहस बचा ही नहीं है। क्या हम सैयद गिलानी के विचारों से परिचित नहीं हैं, क्या हम नहीं जानते कि यासीन मलिक क्या कहेंगे, क्या हमें पता नहीं है कि मीरवाइज फारुक का क्या सोचना है?
ये उन आतंकवादियों से कम खतरनाक नहीं हैं, जो छिपकर आते हैं और हमले करके भाग जाते हैं, जो बंदूकों से बात करते हैं। उनमें और हुर्रियत के नेताओं में फर्क बस इतना है कि हुर्रियत के लोगों को हमारी सरकारों ने खुलेआम अलगाव के बीज बोते रहने की छूट दे रखी है। वे आलीशान कोठियों में रहते हैं, हमारा भेजा हुआ अनाज खाते हैं और पाकिस्तान के मंसूबों को पूरा करने का काम करते हैं। इन्हीं लोगों की शह पर श्रीनगर में पाकिस्तानी झंडा तक फहराया गया, इन्हीं के संकेतों पर कुछ पैसों पर बिके हुए बच्चे पथराव करते हैं, आगजनी करते हैं, लूट-पाट मचाते हैं। पूरा देश जानता है कि इन कार्रवाइयों के बदले इन अलगाववादी नेताओं को पाकिस्तान में बैठे दोस्तों से बड़ी रकम इनाम के रूप में मिलती है। ऐसे लोगों से क्या पूछने की जरूरत है, उनकी राय लेने की क्या आवश्यकता है। अगर आप इसे लोकतंत्रवादी तरीका कहते हो, तो फिर तो आतंकवादियों से भी उनके विचार जानने पड़ेंगे। जो लोग देश को तोड़ने का उपक्रम कर रहे हैं, उनके साथ देश के कानूनों के तहत कड़ाई से पेश आने की जरूरत है।
हमारी व्यवस्था की इसी कमजोरी की वजह से कश्मीरी पंडितों को अपने घर, अपनी संपत्ति और अपनी मिट्टी से प्यार तक को तिलांजलि देनी पड़ी। अभी तक उनका दर्द कम करने में किसी सरकार को कोई कामयाबी नहीं मिली है। पहले उन्होंने कश्मीर से पंडितों को खदेड़ा, फिर देश के अन्य हिस्सों से काम के लिए आने वाले मजदूरों को भगाया, सिखों को घाटी छोड़ देने की चेतावनी दी और अब वे कश्मीर से हिंदुस्तान को भी खदेड़ देने के इरादे से काम कर रहे हैं। कितना हास्यास्पद है कि वे केंद्र सरकार द्वारा भेजे गये प्रतिनिधियों से नहीं मिलना चाहते हैं, पर हमारे प्रतिनिधि उनसे मिलने को बेताब हैं, बिन बुलाये मेहमान की तरह उनकी सांकल खटखटा रहे हैं। जैसे वे पसीज जायेंगे और तुरंत भारत सरकार पर रहम खाकर उस पर कृपा कर देंगे। खेद की बात है कि महबूबा मुफ्ती जैसे मुख्य धारा के कुछ नेता भी अपना जनाधार बनाने के चक्कर में उन्हीं अलगाववादियों के पपेट बनकर काम कर रहे हैं। महबूबा का यह चरित्र बार-बार दिखायी पड़ता रहा है। वे खुलकर हुर्रियत नेताओं की मदद करती दिखायी पड़ती हैं।
कश्मीर का समाधान राज्य के विकास में है, बेरोजगारों को काम देने में है। इसके लिए शांति की जरूरत होगी। अतिलोकतांत्रिकता और उदारता भी कभी-कभी शांति का अपहरण कर लेती है, जैसा इस बार हुआ है। ऐसे तत्व जो इस उदारता को कमजोरी की तरह ले रहे हैं, उनके साथ पूरी सख्ती बरती जानी चाहिए, उन्हें अपनी विभाजक कूटनीति पर काम करने का कोई मौका नहीं दिया जाना चाहिए। इन्हीं के खैरख्वाह कुछ लोग, जो सेना को दंतहीन बनाने की जोर-शोर से मांग कर रहे हैं, उनको भी साफ-साफ बता दिया जाना चाहिए कि सेना आतंकवादियों से निपटने के लिए है और वह अपने अधिकारों के साथ ही अपना काम कर पायेगी। हमें कोई मुगालता नहीं होना चाहिए कि हुर्रियत के नेताओं से बात करके हम इस समस्या का हल निकाल लेंगे।
yahaa bhee to tippadee kee samasya to naheen hai. pareexan ke liye.
जवाब देंहटाएंसही कहा सर। इस तरह कश्मीर का फैसला नहीं होगा। मुझे लगता है कि जो बातें आप लिख रहे हैं वह हमारी सरकार के आला मंत्रियों को पता होनी चाहिए। अगर उन्हें पता है तो क्या वे खानापूर्ति करने वहां गए हैं। अगर नहीं पता तो बहुत शर्म की बात है। आपकी बात बिल्कुल सही है कि कश्मीर की समस्या शांति से ही हल होगी लेकिन सवाल यही है कि शांति हो कैसे। वहां के लोग भी जानते हैं कि अगर एक बार शांति हो गई तो यहां की तस्वीर बदल जाएगी, यही कारण है कि वहां शांति नहीं हो पाती।
जवाब देंहटाएंसही कहा सर। इस तरह कश्मीर का फैसला नहीं होगा। मुझे लगता है कि जो बातें आप लिख रहे हैं वह हमारी सरकार के आला मंत्रियों को पता होनी चाहिए। अगर उन्हें पता है तो क्या वे खानापूर्ति करने वहां गए हैं। अगर नहीं पता तो बहुत शर्म की बात है। आपकी बात बिल्कुल सही है कि कश्मीर की समस्या शांति से ही हल होगी लेकिन सवाल यही है कि शांति हो कैसे। वहां के लोग भी जानते हैं कि अगर एक बार शांति हो गई तो यहां की तस्वीर बदल जाएगी, यही कारण है कि वहां शांति नहीं हो पाती।
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