विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने ब्रह्मांड के निर्माण की प्रक्रिया में भगवान की किसी भूमिका से इनकार किया है। उनका कहना है कि भौतिक विज्ञान के सिद्धांत यह साबित करते हैं कि प्रारंभ में जब कुछ नहीं था, तब भी गुरुत्व था और वही कारक हो सकता है ब्रह्मांड के निर्माण का। शून्य में से ब्रह्मांड के प्रस्फुटन के लिए लगता नहीं कि किसी भगवान को चाभी घुमाने की जरूरत रही होगी। पर वे ब्रह्मांड की उत्पत्ति शून्य से नथिंगनेस से नहीं मानते। कुछ था और उस कुछ में से बहुत कुछ या सब कुछ निकला। किसी भी वैज्ञानिक ने पहली बार भगवान के वजूद को इस तरह चुनौती दी है। उनकी इस घारणा के बीज उनके प्रारंभिक जीवन में ही पड़ गये थे। उनकी मां इसाबेला 1930 में कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य रही थीं और साम्यवादी चिंतन को लगभग नास्तिक चिंतन माना जाता है पर अपने शुरुआती विचारों में हाकिंग न तो नास्तिक दिखते हैं, न आस्तिक। वे न तो भगवान की संभावना में विश्वास करते हैं, न ही उसकी असंभावना में।
विज्ञान को भगवान से कोई मतलब होना भी नहीं चाहिए क्योंकि यह बहस दर्शन के क्षेत्र की है। मूल्य, चरित्र, धर्म और नैतिकता तय करने का काम दर्शन करता है, विज्ञान नहीं। विज्ञान तो प्रायोगिक सत्यों का उद्घाटन करता है और उन्हें जीवन की उपयोगिता से जोड़ता है। विज्ञान के कदम जहां-जहां पड़ते जाते हैं, भगवान स्वयं ही वह इलाके छोड़कर हट जाता है। कल तक जो बहुत सी चीजें असंभव मानी जाती थीं, विज्ञान ने आज उन्हें संभव कर दिया है। अब वहां भगवान की कोई जरूरत नहीं रह गयी। पर जहां विज्ञान का उजाला अभी तक नहीं पहुंच सका है, उस अंधेरे में टिकने का कोई सहारा तो चाहिए। आदमी ने अपनी निरुपायता में भगवान को गढ़ा है, जब उसकी शक्ति, उसका संकल्प, उसकी मेधा पराजित हो जाती है तब वह भगवान को याद करता है। भगवान उसकी मदद के लिए आये या न आये पर उसकी अमूर्त और काल्पनिक उपस्थिति से मनुष्य को शक्ति मिलती रही है। वैज्ञानिक के जीवन में भी ऐसे क्षण आते हैं। वह कभी यह कह सकने की स्थिति में नहीं हुआ, न ही शायद होगा कि कुछ भी ऐसा नहीं, जो वह न कर पाये। इसीलिए वैज्ञानिकों ने भगवान के होने, न होने पर ज्यादा बहस नहीं की। बल्कि कइयों ने तो यह स्वीकार किया कि कोई न कोई ब्रह्मांड मेधा तो है, जो अगणित ग्रह, तारा, नक्षत्र मंडलों को संतुलित रखती है, जो फूलों को खिलाती है, महकाती है, जो सृजन और ध्वंस का भी नियमन करती है। उसे बेशक भगवान न कहो, कोई भी नाम दे दो क्या फर्क पड़ता है।
अनेक वैज्ञानिकों को हाकिंग की घोषणा पर आपत्ति है। उनका कहना है कि विज्ञान को सांप्रदायिक नहीं होना चाहिए। उसे आने वाली नस्लों को यह मौका नहीं देना चाहिए कि वह विज्ञान का सहारा लेकर अपने नास्तिवाद को मजबूत कर सके। यह विज्ञान का न तो धर्म है, न ही उसके काम करने का तरीका। इससे विज्ञान की प्रामाणिकता पर भी लोग ऊंगलियां उठायेंगे क्योंकि विज्ञान कभी भी कोई ऐसी बात नहीं कहता, जिसे वह प्रमाणित न कर सके। यह सच है कि विज्ञान के पास कोई ऐसा साधन नहीं है, जिसके माध्यम से वह यह साबित कर सके कि भगवान है। इसी तरह वह यह भी सिद्ध नहीं कर सकता कि भगवान नहीं है। फिर तो किसी भी वैज्ञानिक का यह कहना नितांत अवैज्ञानिक होगा कि भगवान की ब्रह्मांड में कोई भूमिका नहीं है।
महाराज यहाँ देखिये डाक्टर सुभाष राय ने बात बेबात में ही बहुत गूढ़ मुद्दा उठाया है। कहते हैं की जहाँ विज्ञानं का प्रकाश उतरता है वहा भगवन की जरुरत नहीं रहती....
जवाब देंहटाएंतो कोई टिप्पणी तो आई नहीं होगी यहाँ पर.... आयेगी कैसे सभी टिप्पणीकार तो बेकार की पोस्टों पर व्यस्त रहते हैं।
सुभाष तुम निराश ना होना तुम अच्छा कार्य कर रहे हो ... लगे रहो... हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ रहेगा....
वैज्ञानिक तथ्यों को ध्यान में रख कर लिखा गाया भड़िया आलेख .
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें ...
विरक्ति पथ
विज्ञान और भगवान की बहस को आपने बहुत ही सटीक तरीके से सामने रखा है। हम भी इसी मत के हैं कि कोई न कोई शक्ति तो है। बहुत से नास्तिकों को भी यह मानने में शायद कोई गुरेज नहीं होगा। असली समस्या तो भगवान के नाम पर व्यापार चलाने की है।
जवाब देंहटाएंऔर विज्ञान सवालों के जवाब खोजने से ज्यादा जवाबों पर सवाल उठाने का नाम है।
विज्ञान मात्र एक सुविधा है. भगवान से तुलना हास्यापद विषय है.विज्ञान प्रकृति से चलता है न कि प्रकृति विज्ञान से. सुन्दर विवरण दिया है आभार..........
जवाब देंहटाएंविज्ञान को भगवान से कोई मतलब होना भी नहीं चाहिए क्योंकि यह बहस दर्शन के क्षेत्र की है। मूल्य, चरित्र, धर्म और नैतिकता तय करने का काम दर्शन करता है, विज्ञान नहीं।
जवाब देंहटाएंयह विज्ञान का काम भी नही है ।
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