हाँ, मित्रवर राजेश उत्साही अपने बारे में कहते हैं--जीवन की सार्थकता की तलाश जारी है। 26 साल तक एकलव्य संस्था में होशंगाबाद, भोपाल में काम। बाल विज्ञान पत्रिका चकमक का सत्रह साल तक संपादन। स्रोत,संदर्भ,गुल्लक,पलाश,प्रा रम्भ के संपादन से जुड़ा रहा। एकलव्य के प्रकाश्ान कार्यक्रम में योगदान। बच्चों के लिए साहित्य तैयार करने की कई कार्यशालाओं में स्रोतव्यक्ति की भूमिका। हाल-फिलहाल बंगलौर में हूं। तीन ब्लागों- गुल्लक, यायावरी और गुलमोहर- के माध्यम से दुनिया से मुखातिब हूं।
पर यहाँ मैंने उन्हें आप सबके सामने पेश किया है, इसलिए कि उन्होंने मशहूर शायर नजर एटवी को जिस बेपनाह मुहब्बत के साथ अपने ब्लॉग गुल्लक पर पेश किया है, उस पर आप सबकी नजर जा सके. आइये राजेश उत्साही से ही सुनते हैं----
तुम तो ठहरे ही रहे झील के पानी की तरह
पर यहाँ मैंने उन्हें आप सबके सामने पेश किया है, इसलिए कि उन्होंने मशहूर शायर नजर एटवी को जिस बेपनाह मुहब्बत के साथ अपने ब्लॉग गुल्लक पर पेश किया है, उस पर आप सबकी नजर जा सके. आइये राजेश उत्साही से ही सुनते हैं----
तुम तो ठहरे ही रहे झील के पानी की तरह
दरिया बनते तो बहुत दूर निकल सकते थे
जी नहीं। यह कलाम मेरा नहीं है। पर फिर न जाने क्यों मुझे लगता है जैसे शायर ने मुझ पर लिखा है। मैं 27 साल तक बस एक ही जगह बैठा रहा, यानी काम यानी नौकरी करता रहा। आज जब वहां से विस्थापित हुआ तो कुछ ऐसा ही लगता है जैसा इस शेर में कहा गया है। जब से मैंने इसे पढ़ा है उठते-बैठते,सोते-जागते बस यही दिमाग में घूमता रहता है। जैसे किसी ने आइना दिखा दिया हो। असल में एक अच्छे शायर की शायद यही खूबी है कि वो जो लिखे वो पढ़ने वाले को अपना ही लगे।
उर्दू मुशायरों पर वे लगातार 35 साल से छाए हुए थे। विदेशों से भी उन्हें मुशायरों में बुलाया जाता था। वे खुद भी अदबी गोष्ठियां और मुशायरे करते रहते थे और हमेशा इस बात का ख्याल रखते थे कि उसका मयार और संजीदगी कायम रहे। उन्होंने कुछ समय तक लकीर नाम से एक अख़बार भी निकाला।
नजर एटवी का जन्म 28 फरवरी 1953 को एटा में हुआ था। एटा से ही उन्होंने बीए किया। पहले उनकी दिलचस्पी फिल्मों में थी। 1972 में वे उर्दू शायरी की ओर मुड़े और बहुत जल्दी वहां अपना बेहतर मुकाम बना लिया।
एक मई 2010 के दिन , उन्हें वक्त हमसे छीन ले गया। उनकी शायरी से लगता है वे मजदूर शायर थे। इसलिए शायद उन्होंने अपनी रुखसती के लिए यही मकबूल दिन चुना। उनका एक संग्रह साया हुआ है- उसका उन्वान है, सीप। नज़र साहब जैसे हमसे कह गए हैं-
मुझसे ये कह के सो गया सूरज
अब चरागों की जिम्मेदारी है
नज़र साहब और उनकी शायरी को सलाम।
उनके संग्रह सीप से तीन गज़लें यहां पेश हैं। इन गज़लों को उपलब्धं कराने के लिए मैं डा.सुभाष राय का आभारी हूं। असल में यह सारी जानकारी भी सुभाष जी की एक पोस्टं से ही मिली है। जो नुक्कड़ और उनके अपने ब्लाग बात-बेबात पर है। यह जानकारी भी आगरा के एक और मकबूल शायर शाहिद नदीम जी ने सुभाष जी तक पहुंचाई। नदीम जी,सुभाष जी और अविनाश भाई को धन्यवाद। नज़र साहब की तीन और गज़लें बात-बेबात या नुक्कड़ पर पढ़ सकते हैं।
यह कलाम है एटा,उप्र के मशहूर शायर नज़र एटवी साहब का। मेरे लिए यह अफसोस की बात है कि उनसे यानी उनकी शायरी से मुलाकात तब हुई जब वे इस दुनिया से रुखसत कर चुके हैं। उनकी शायरी पढ़कर मुझे दुष्यंत याद आ गए। मैं यहां तुलना नहीं कर रहा। पर जिस सादगी से दुष्यंत अपनी बात कह गए हैं वही नज़र साहब की गज़लों में नजर आती है। एक और शेर देखिए-
खाई है कसम तुमने वापिस नहीं लौटोगे
शायर कसम याद भी दिला रहा है और ताना भी दे रहा और चुनौती भी। उनकी शायरी में समकालीन समाज की हकीकत भी है-
हादसे इतने जियादा थे वतन में अपने
खून से छप के भी अख़बार निकल सकते थे
और अपने प्रिय के लिए उलाहना भी-
तेरे लिए जहमत है मेरे लिए नजराना
जुगनू की तरह आना, खुशबू की तरह जाना
उर्दू मुशायरों पर वे लगातार 35 साल से छाए हुए थे। विदेशों से भी उन्हें मुशायरों में बुलाया जाता था। वे खुद भी अदबी गोष्ठियां और मुशायरे करते रहते थे और हमेशा इस बात का ख्याल रखते थे कि उसका मयार और संजीदगी कायम रहे। उन्होंने कुछ समय तक लकीर नाम से एक अख़बार भी निकाला।
नजर एटवी का जन्म 28 फरवरी 1953 को एटा में हुआ था। एटा से ही उन्होंने बीए किया। पहले उनकी दिलचस्पी फिल्मों में थी। 1972 में वे उर्दू शायरी की ओर मुड़े और बहुत जल्दी वहां अपना बेहतर मुकाम बना लिया।
एक मई 2010 के दिन , उन्हें वक्त हमसे छीन ले गया। उनकी शायरी से लगता है वे मजदूर शायर थे। इसलिए शायद उन्होंने अपनी रुखसती के लिए यही मकबूल दिन चुना। उनका एक संग्रह साया हुआ है- उसका उन्वान है, सीप। नज़र साहब जैसे हमसे कह गए हैं-
मुझसे ये कह के सो गया सूरज
अब चरागों की जिम्मेदारी है
नज़र साहब और उनकी शायरी को सलाम।
उनके संग्रह सीप से तीन गज़लें यहां पेश हैं। इन गज़लों को उपलब्धं कराने के लिए मैं डा.सुभाष राय का आभारी हूं। असल में यह सारी जानकारी भी सुभाष जी की एक पोस्टं से ही मिली है। जो नुक्कड़ और उनके अपने ब्लाग बात-बेबात पर है। यह जानकारी भी आगरा के एक और मकबूल शायर शाहिद नदीम जी ने सुभाष जी तक पहुंचाई। नदीम जी,सुभाष जी और अविनाश भाई को धन्यवाद। नज़र साहब की तीन और गज़लें बात-बेबात या नुक्कड़ पर पढ़ सकते हैं।
1.
जाने किसने मुझे संभाला था
मैं बलंदी से गिरने वाला था
उसकी तनहाइयों के खेमों में
मैं नहीं था मेरा उजाला था
मैं नहीं था मेरा उजाला था
वो अमीरों पे ले गया सबकत
जिस भिखारी को तुमने पाला था
जिस भिखारी को तुमने पाला था
बाहर आता मैं उस खंडहर से क्या
हर तरफ मकड़ियों का जाला था
हर तरफ मकड़ियों का जाला था
होट मेरे सिले हुए तो न थे
उसने मुझ पर दबाव डाला था
उसने मुझ पर दबाव डाला था
हाथ सूरज पे रख दिया मैंने
एक पत्थर पिघलने वाला था
एक पत्थर पिघलने वाला था
मैंने ख्वाबों का एक गुलदस्ता
जिंदगी की तरफ उछाला था
जिंदगी की तरफ उछाला था
हकीकतों को फरामोश कर गये हालात
ये कैसी आग मेरे दिल में भर गये हालात
खामोशियों की सदाएं हैं और कुछ भी नहीं
ये किस मकाम पर आकर ठहर गये हालात
ये किस मकाम पर आकर ठहर गये हालात
तुझे खबर ही नहीं मुझको भूलने वाले
तेरी जुदाई में क्या-क्या गुजर गये हालात
हमें बतायेंगे जीने का मुद्दआ क्या है
हमारे हक में कभी भी अगर गये हालात
हमारे हक में कभी भी अगर गये हालात
हमारे हाल का और अपना जायजा लेकर
तुम्हीं बताओ के किसके संवर गये हालात
तुम्हीं बताओ के किसके संवर गये हालात
जमाने को तो हुआ इल्म इक जमाने में
मेरी निगाह से पहले गुजर गये हालात
मेरी निगाह से पहले गुजर गये हालात
ये इत्तेफाक तेरे शह्र में हुआ अक्सर
मैं जिस मकाम पे ठहरा, ठहर गये हालात
मैं जिस मकाम पे ठहरा, ठहर गये हालात
कहकहे भी कमाल करते हैं
आंसुओं से सवाल करते हैं
ऐसे पत्थर भी हैं यहां जिनकी
आईने देखभाल करते हैं
आईने देखभाल करते हैं
कद्र लम्हों की जो नहीं करते
जिंदगी भर मलाल करते हैं
जिंदगी भर मलाल करते हैं
जिनकी तारीख पर निगाहें हैं
फैसले बेमिसाल करते हैं
फैसले बेमिसाल करते हैं
सब्र करना जिन्हें नहीं आता
गम उन्हें ही निढाल करते हैं
गम उन्हें ही निढाल करते हैं
प्यार है एक खूबसूरत शेर
शरहे हिज्रो विसाल करते हैं
शरहे हिज्रो विसाल करते हैं
हम किसी भी खयाल में हों मगर
वो हमारा खयाल करते हैं
वो हमारा खयाल करते हैं
इस तरह नज़रें इनायत करने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं सुभाष जी। मेरी पोस्ट से आपके ब्लाग पर आने में कुछ दिक्कत थी। लिंक ठीक से नहीं बनी थी। उसे ठीक कर आया हूं। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुभाष इस तरह नज़रें इनायत करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंक्षमा करें। पहली टिप्पणी नहीं दिख रही थी। सो दूसरी टिप्पणी लिखी। पर जल्दी जल्दी में उसमें सुभाष जी की जगह सुभाष लिख गया। सुभाष जी शुक्रिया।
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