स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की पुस्तक द रेड साड़ी ने दिल्ली के राजनीतिक क्षेत्र में हलचल मचा रखी है। यह पुस्तक सोनिया गांधी की जीवनी पर आधारित है और स्पेन तथा इटली में पहले ही प्रकाशित हो चुकी है। देश के कई हिस्सों में किताब में लिखे गये अंशों की होली चलायी जा रही है। पार्टी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने मोरो को कानूनी नोटिस भेजा है। उनका कहना है कि कोई किसी के निजी मामलों को बिना उसकी अनुमति के कैसे प्रस्तुत कर सकता है, वह भी काल्पनिक और अर्धसत्य के रूप में। मोरो कभी सोनिया गांधी से मिले ही नहीं,उनसे बातचीत नहीं की, उन्हें जानने का प्रयास नहीं किया तो वे उनके बारे में अधिकृत तौर पर कुछ भी कैसे लिख सकते हैं।
दरअसल मोरो ने अपनी पुस्तक में 1977 में कांग्रेस की भारी पराजय के बाद सोनिया गांधी और उनके परिजनों में हुई बातचीत को सीधे कोट किया है, जिसमें सोनिया पर उनके परिवार द्वारा इटली चले आने का दबाव डालते दिखाया गया है। इस अंश पर कांग्रेस को इसलिए आपत्ति है क्योंकि इसके सच होने का कोई प्रमाण मोरो के पास नहीं है। मोरो स्वयं यह बात स्वीकार करते हैं कि उनकी सोनिया गांधी से बात नहीं हुई लेकिन कई ऐसे लोगों से बात हुई, जो इंदिरा गांधी के करीब रहे और ऐसे भी कई लोगों से जो सोनिया के परिवार से नजदीक रहे। उन्हीं जानकारियों के आधार पर उन्होंने अपनी साहित्यिक कल्पना के सहारे पूरी बातचीत गढ़ने की कोशिश की है। वे खुद भी आश्वस्त नहीं हैं कि उनकी रचना कितनी सच है इसीलिए वे इसे एक औपन्यासिक जीवनी बताते हैं।
उनका यह भी कहना है कि उनकी कोशिश निरंतर यह रही है कि सोनिया गांधी और उनके परिवार के चरम बलिदान को, उनके आदर्शों को सही संदर्भ में रखा जाय। सिंंघवी के नोटिस के बाद मोरो ने भी उन पर मुकदमा करने की चेतावनी दी है। उन्होंने पूछा है कि जब पुस्तक अभी प्रकाशित ही नहीं हुई है तो उसकी सामग्री तक सिंघवी पहुंचे कैसे? यह गैरकानूनी है और इसके लिए उन पर मुकदमा चलना चाहिए। कांग्रेस के एतराज की पा्रमाणिकता से इनकार नहीं किया जा सकता। किसी भी लेखक को यह अधिकार लिखने की स्वतंत्रता के नाम पर नहीं मिल सकता कि वह किसी व्यक्ति के निजी जीवन के बारे में अपुष्ट, अप्रामाणिक, अविश्वसनीय जानकारी लोगों को दे। मोरो की स्वीकारोक्ति से लगता है कि इस मामले में उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी का अतिक्रमण किया है। अगर उनकी पुस्तक के विवरण ऐसी कल्पना पर आधारित हैं, जिसके सच होने की वे संभावना भर जता सकते हैं तो उन्हें सोनिया गांधी का नाम लेने से बचना चाहिए था।
पुस्तक में कई जगह सोनिया गांधी का नाम इस तरह लिया गया है, जैसे उनके बारे में प्रामाणिक सामग्री दी जा रही हो, पर ऐसा है नहीं। इस नाते लेखक पर व्यावसायिक लाभ के आशय से संचालित होकर पुस्तक लिखने का आरोप लगाना गलत नहीं लगता। हो सकता है पश्चिमी देशों के नेता इस मामले में उदार हों, हो सकता है भारत में भी कई लोग इसे बुरा न मानें, एतराज न करें पर केवल इस कारण मोरो अधिकारपूर्वक यह नहीं कह सकते कि सोनिया गांधी को भी इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। बेहतर होता कि वे इसे केवल उपन्यास कहते, जीवनी नहीं क्योंकि जीवनी में कल्पना या गल्प की गुंजाइश नहीं होती। वह भी ऐसी कल्पना जो संबंधित व्यक्ति के हृदय को ठेस पहुंचाने वाली हो।
इस शब्द-युद्ध में लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस को अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करना चाहिए। बहुत अच्छी बात है पर यह विचार पार्टी ने तब क्यों नहीं किया, जब जसवंत सिंह की जिन्ना पर पुस्तक आयी थी। अब अगर जेवियर मोरो चाहते हैं कि उनकी पुस्तक भारत में भी प्रकाशित हो तो उन्हें उसे औपन्यासिक रूप में ही प्रस्तुत करने में क्या परेशानी है। फिर उन्हें सोनिया गांधी का जिक्र पुस्तक से हटाना पड़ेगा। एक और रास्ता है कि सोनिया इसके लिए अनुमति दे दें, जो शायद मुश्किल लगता है।
किताब को आनी चाहिये, क्यो डरते हो कांग्रेसी भाई
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