बकौल हजारी प्रसाद द्विवेदी, करने वाला इतिहास निर्माता होता है, सिर्फ सोचने वाला इतिहास के भयंकर रथचक्र के नीचे पिस जाता है। इतिहास का रथ वह हांकता है, जो सोचता है और सोचे को करता भी है।
सुभाष भाई सृजनगाथा में आपकी कविताएं पढ़ी । तीसरी कविता ने बेहद प्रभावित किया। शेष दो भी वहां ले जाती हैं जहां हम जाना चाहते हैं। पर्यावरवयण दिवस की संध्या पर इन कविताओं को पढ़ना सचमुच अच्छा लगा। सृजनगाथा के अप्रैल अंक में मेरी भी एक कविता है-सहजन का पेड़ । कभी देखियेगा।
आईये जाने ..... मन ही मंदिर है !
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
सुभाष भाई सृजनगाथा में आपकी कविताएं पढ़ी । तीसरी कविता ने बेहद प्रभावित किया। शेष दो भी वहां ले जाती हैं जहां हम जाना चाहते हैं। पर्यावरवयण दिवस की संध्या पर इन कविताओं को पढ़ना सचमुच अच्छा लगा। सृजनगाथा के अप्रैल अंक में मेरी भी एक कविता है-सहजन का पेड़ । कभी देखियेगा।
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