पश्चिम बंगाल के क्रांतिकारी वामपंथी ममता बनर्जी की रेल के नीचे आ गये हैं। उनका कचूमर निकल गया है लेकिन वे धूल झाड़कर फिर खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं। बहाने बना रहे हैं। अब भी हकीकत से आमना-सामना करने की जगह एक नया झूठ गढ़ने में जुट गये हैं। कह रहे हैं कि नगरपालिका चुनाव को कोई पैमाना न समझो, विधानसभा में लाल सेना ही जीत कर आयेगी। जब नंदीग्राम और सिंगुर में किसानों का संग्राम चल रहा था और मार्क्स, लेनिन , स्टालिन और माओ की विरासत के दावेदार सत्ता के गुंडे बिना विचारे बेचारे गरीब किसानों पर लाठियां, गोलियां चला रहे थे, उसी दिन उनके भविष्य की पटकथा लिख दी गयी थी।
उन्हें हो सकता हो उसका अंदाज न हुआ हो। यह कोई हैरत की बात नहीं है। अक्सर क्रांतिकारी जब सत्ता में आ जाते हैं तो परम विस्मृति में चले जाते हैं। क्रांति के पहले भी सत्ता ही ध्येय होती है और क्रांति के बाद भी। पश्चिम बंगाल वामपंथियों की प्रयोग-भूमि रही है और यहां वे तोकतांत्रिक क्रांति के माध्यम से सत्ता में आये थे। भारत जैसे बहुसांस्कृतिक देश के किसी राज्य में वामपंथियों का सफल होना थोड़ा आश्चर्यजनक था, इसीलिए वाम नायकों ने राज्य की सत्ता पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए विकास और जनहितकारी योजनाओं का सहारा नहीं लिया बल्कि समूचे सरकारी तंत्र का वामपंथीकरण करके निश्चिंत बैठ गये।
कुर्सी बड़ी प्यारी और लुभावनी चीज होती है। वह अक्सर लोगों को आरामतलब बना देती है, जनता से दूर कर देती है। यहां अपवादों की बात नहीं की जा रही है लेकिन अक्सर भारत की राजनीति में ऐसा होता दिखायी पड़ा है। जेपी के आंदोलन में तपकर निकली जनता पार्टी की सरकार का क्या हश्र हुआ, किसी से छिपा नहीं है। वाम नेताओं में तपस्वियों की कमी नहीं थी। अनेक ऐसे लोग थे, जिन्होंने उस आदर्श का निर्वाह किया, बड़े पदों पर पहुंचकर भी कठिन जीवन चुना पर सभी ऐसे नहीं थे। सत्ता आती है तो धन भी आता है, वैभव भी आता है और पद का प्रभामंडल भी बनता है। यह सारी चीजें जनता तक पहुंचने से रोकती हैं। कांग्रेस के कमजोर हो जाने के बाद उनके खिलाफ कोई तगड़ा विकल्प भी नहीं था, इसलिए सत्ता को उन्होंने अपनी बपौती मान ली। रही भी लंबे समय तक। लेकिन इस वाम शासन में पश्चिम बंगाल कितना आगे गया, सभी जानते हैं।
नक्सली समस्या भी वाम सरकार की उदासीनता का ही परिणाम है। नंदीग्राम और सिंगुर में उन्होंने जो कुछ किया, उससे अपने सफाये का रास्ता ही सुनिश्चित कर दिया। विख्यात साहित्यकार महाश्वेता देवी को कहना पड़ा, अब इस सरकार को जाना ही चाहिए। उनकी बात सच साबित होने जा रही है। ममता बनर्जी को नगरपालिका चुनावों में जैसा जनसमर्थन मिला है, वह संकेत है कि अगले विधानसभा चुनाव में यह लाल किला ढह जाने वाला है। कोलकाता महापालिका पर ममता का झंडा फहरा रहा है, अब राइटर्स बिल्डिंग की बारी है।
congrats Mamta, but also take attention to Railway
जवाब देंहटाएंक्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।
जवाब देंहटाएंआइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !
छोटी गलतियों से सबक लेना चाहिए,ना की उसके बदले में बड़ी गलती करनी चाहिये|नंदीग्राम में जो हुआ नहीं होता तो अच्छा था | ममता बनर्जी का बंगाल में सत्ता में आना एक बड़ी गलती होगी क्योंकि उनका संगठन ढीला ढाला है, मौकापरस्त लोगों का महासम्मेलन | कोलकाता नगर निगम में पिछला बोर्ड तृणमूल कांग्रेस का था, जनता ने ही हटाया| लेकिन चुनाव नागनाथ और सांपनाथ में से ही करने की मजबूरी का क्या उपाय| लाल बहादुर शास्त्री वाली नैतिकता सपने की बात हो गयी| बंगाल और देश के मजदूरों - किसानों के हित में कामरेडों को जागना ही पड़ेगा - उम्मीद करें बंगाल का भविष्य सुखद हो| बहस में सभी का स्वागत है |- केशकुम्भ
जवाब देंहटाएंbahut acha rai sahab .
जवाब देंहटाएंbahut acha .
जवाब देंहटाएंजख्म पुराने नहीं कुरेदो फिर गहरे हो जायेंगे
जवाब देंहटाएंअपने दिल के शोर से यारो हम बहरे हो जायेंगे
गैस रिसी ,रोटी गयी लोग मरे और लोग भगे
ना ही बोलते अब क्यों बोले जख्म हरे हो जायेंगे
ये चर्चा है बहुत जरूरी भागा कोई कैसे जी
मरने वालो कि मत सोचो वे नहीं अब आयेंगे
कौन बचा है अब रोने को इससे क्या लेना देना
राजनीति से चूक गए तों हम सब भी पछतायेंगे
मर गए उनका वोट नहीं ,बचे वे मरने जैसे है
जो सुनते है उन्हें सुनाओ वोट वही डलवायेंगे
कुछ दिन पहले वाला वादा याद नहीं रह पता है
लोग मरे तब तों रोये थे कब तक रोते जायेंगे
तेरह दिन के बाद तों अपने याद नहीं रह पाते है अनजानों कि बस्ती में कब तक शोक मनाएंगे
राम नाम पर पिटे गए यारो अब ये मुद्दा आया है
भाषण धरना और प्रदर्शन सत्ता में ले आएंगे
बची लड़ाई है कि किसने किसे भगाया था यारो
पहचानो और उन्हें भगाओ हम सत्ता पा जायेंगे