आम तौर पर हिंदुस्तानियों का हृदय मजबूत होता है, ऐसा माना जाता रहा है लेकिन हाल के वर्षों में हृदय की बीमारियां हमारे देश में तेजी से बढीं हैं। जिंदगी जटिल हो गयी है, तनाव बढ़ा है, जिससे रक्तचाप, मधुमेह, धमनियों में अवरोध की बीमारियां भी बढ़ीं हैं। लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक तो हुए हैं फिर भी इन बीमारियों पर ज्यादा अंकुश नहीं लग सका है। एक नया सर्वे बहुत चौंकाने वाला है। अपोलो समूह द्वारा किये गये इस सर्वेक्षण से पता चला है कि देश के 35 साल से कम उम्र के लोग बड़ी तादात में हृदय की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। जितनी परेशानी पश्चिमी देशों में 60 साल की उम्र में दिखायी पड़ती है, उतनी हमारे देश में 35 साल पूरा करते-करते दिखायी पड़ने लगी है। और जो लोग अपनी जीवन शैली सुधारने के मौके गंवा देते हैं, जो अपने मोटापे, अपने खान-पान पर नियंत्रण करने की कोशिश नहीं करते, जो तनिक भी व्यायाम नहीं करते, उनके लिए तो संकट और भी ज्यादा है।
यह बहुत ही खतरनाक संकेत है। इसके पीछे मूल रूप से भारतीयों का अपनी पारंपरिक जीवन-शैली से छूट जाना है। आर्थिक और मानसिक दबाव तेजी से आदमी को बीमारियों की ओर ले जा रहा है। यह दबाव जो वंचित हैं, उन पर तो है ही, जो संपन्न हैं, उन पर भी है। जिसे जीवन की मौलिक सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं, वह परिवार को ठीक से न रख पाने के कारण दबाव में है और जो जरूरत से ज्यादा वैभव हासिल कर चुके हैं, वे उसे सुरक्षित रखने और अपना संग्रह बढ़ाने की चिंता के दबाव में हैं। बच्चे अपने मां-बाप की अति महत्वाकांक्षा के कारण सफलता का मानक स्थापित करने की चुनौती को लेकर दबाव में हैं। यही बीमारियों का मूल कारण है। पर इनसे बचा कैसे जाय, एक गंभीर प्रश्न है। हमारी भारतीय जीवन-शैली में संतुष्ट रहने, जरूरत से ज्यादा संग्रह न करने और मिल-बांटकर जीने का जो दर्शन पहले काम करता था, वह गायब हो गया है। इसमें आगे बढ़ने और प्रगति करने की मनाही नहीं हैं, पर सामाजिक उत्तरदायित्व का पालन करते हुए। सभी क्यों न साथ-साथ आगे बढ़े, एक दूसरे का सहयोग करते हुए।
पर अब जीवन नितांत वैयक्तिक हो गया है, घर में भी दीवारें हैं। सब एक-दूसरे को पछाड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं, किसी से तनिक भी डर है तो उसे निपटा देने की चालें भी चलते हैं, कोई किसी की मदद नहीं करता, इसीलिए सब के सब असंतुष्ट हैं, सब बीमार हैं। यही हाल रहा तो बीमारियां और बढ़ेंगी। हृदय प्रेम की जगह है, करुणा का स्थल है, परंतु वह आजकल इन दोनों से खाली है। इस खाली जगह को ईर्ष्या, द्वेष भर रहा है, यही बीमारियों की जड़ है। इसलिए जरूरी है कि चिकित्सक की बात तो मानें ही, व्यायाम करें, संतुलित भोजन करें परंतु मन को नकारात्मक भावनाओं से मुक्त रखें। तभी दिल मजबूत होगा। किसी शायर ने कहा है--
दिलों की सम्त ये पत्थर से लफ्ज मत फेंको
जरा सी देर में आईने टूट जाते हैं
बढ़िया आलेख, सर !
जवाब देंहटाएंवैसे भी दिल का तो हम सब को ज्यादा ख्याल रखना ही चाहिए क्यों कि दिल तो बच्चा है जी और बच्चो का तो वैसे भी बहुत ख्याल रखना पड़ता है ! ;)
मैं तो ब्लॉग को भी हिन्दी का दिल ही मानता हूं। इस दिल की सही देखभाल किस तरह की जाए, आजादी का लुत्फ किस तरह उठाया जाए, इस पर भी आपकी रचना काबिले-गौर रही है और उससे किसी भी तरह से कम नहीं है प्रस्तुत पोस्ट परंतु इसे कब अमल में लाएंगे हम लोग। जब ध्वस्त हो जाएंगे पूरी तरह, पूरी खा खाकर।
जवाब देंहटाएंPriy Jaikrishn tumhari tippadi meri galti se aswikar ho gayee. tumhe yah post achchhi lagi, dhanyvad.
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