मंगलवार, 4 मई 2010

बात-बेबात ने अपने दो माह पूरे किये

बात-बेबात ने आज अपने दो माह पूरे कर लिए. चार  मार्च को मैंने आरम्भ किया था. अपनी रचनाओं का प्रकाशन मेरे लिए कोई नयी बात नहीं  थी. ब्लॉग पर आने के पहले मेरी सैकड़ों कविताएँ और टिप्पड़ियां समाचारपत्रों और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी थीं. पर सच मानिये अपने ब्लॉग पर आना एक नया अनुभव रहा. एकदम पागल कर देने वाला. जो चाहो लिखो और एक क्लिक पर उसे अपने प्रियजनों तक भेज दो. फिर बार-बार  ब्लॉग-जोडकों पर जाकर देखो कि उन्होंने रचना उठा ली या नहीं. और सच मानिये, जब  कोई पढ़कर नाइस  या बहुत खूब या बिल्कुल सही लिखा या इसी तरह लिखते रहिये, जैसी टिप्पड़ियां छोड़ जाता है, मन कितना कृतग्य और गदगद अनुभव करता है, मैं आप को बता नहीं सकता. मेरी  किसी रचना पर सबसे पहली टिप्पडी मानिक जी ने की. उनका सुझाव  था कि बढ़िया लिख रहे हैं, लिखते रहिये, टिप्पड़ियों की परवाह मत कीजिये. दूसरे लिखने वालों के ब्लॉग पर भी जाइये, उनका उत्साह बढाइये. मैंने उनकी राय मानी, उस पर अब भी अमल कर रहा हूँ.

मेरे ब्लॉग पर कई प्रतिष्ठित लेखक लिखते रहते हैं. वीरेंद्र सेंगर , बंशीधर मिश्र, डा. त्रिमोहन तरल , डा. एम् एस परिहार और अन्य  कई लेखकों के योगदान से मैं विविध प्रकार की सामग्री  देने की कोशिश करता हूँ. इस ब्लॉग का मूल स्वर साहित्य और समसामयिक ज्वलंत विषयों पर गंभीर चिंतनपरक  सामग्री देने का रहा है.कोशिश यह रहती है कि यह गंभीरता भाषा और प्रस्तुति दोनों स्तरों पर बनी रहे. यद्यपि ब्लॉग में कुछ भी लिखने के लिए आप स्वतंत्र हैं लेकिन यही चरम स्वतंत्रता  आप को संजीदगी के साथ बांधती भी है. जब दायित्व बड़ा हो और खुद ही निभाना हो तो संयम, धैर्य और आत्मनियंत्रण के बिना पूरा नहीं हो सकता. मेरी सभी ब्लागलेखकों  को यह छोटी सी सलाह है कि लेखन में  स्वयं से निर्धारित  सीमाओं का अतिक्रमण न करें.

मेरे   इस छोटे से सफ़र में पाठकों ने मेरा उत्साह बहुत बढाया. ज्यादा नहीं लेकिन कुछ टिप्पड़िया भी आतीं रहीं. असल में ब्लॉगों पर घूमते हुए लोगों के पास बहुत वक्त नहीं होता है, इसलिए बहुत गंभीर चीजें नज़रों से छूट जातीं हैं और बहुत निजी चीजों पर लोगों की ज्यादा नजर जाती है. मैंने कई   बार महसूस किया कि मैंने जब कुछ बहुत अच्छा सोचकर लिखा तो बहुत कम लोगों ने देखा, टिप्पड़ियों की तो बात ही न करें. लेकिन जब बहुत निजीपन  के साथ कोई छोटी सी, खूबसूरत सी चीज  पेश की तो लोग  वहां बार-बार पहुंचे, खूब टिप्पड़ियां कीं. इसका मतलब है कि आज हम सब अपने निजीपन को दूसरों के साथ बाँटना ही नहीं चाहते बल्कि दूसरों के ड्राइंग रूम में बैठकर उनके सुख-दुःख भी शेयर   करना चाहते हैं. यह बहुत बड़ी बात है लेकिन जीवन को समृद्ध और चिंतनशील  बनाये रखने के लिए कुछ गंभीर और बड़ी चीजों पर भी ठहरना  पड़ेगा. यह ठीक है कि गज़लें अच्छी लगाती हैं, मन को लुभातीं हैं लेकिन मन के साथ मष्तिष्क को भी तो कुछ चाहिए. जीवन को कहानियां भी चाहिए, विश्लेषण   भी चाहिए और स्वस्थ संवाद भी चाहिए.

मुझे ख़ुशी है कि इस छोटी यात्रा में मुझे कुछ लोगों ने पसंद किया. मेरे  ब्लॉग की रचनाएँ जनसत्ता और हरिभूमि जैसे प्रतिष्ठित  समाचारपत्रों ने प्रकाशित की. ब्लाग की दुनिया में रमे प्रियवर अविनाश वाचस्पति जी ने मुझे जब यह सूचना  मेरे मेल पर दी तो  मुझे अच्छा लगा. मित्रवर बी  एस  पाबला  ने  प्रिंटमीडिया  पर ब्लागचर्चा  में इसका उल्लेख भी किया और वाचस्पतिजी ने मुझे इसका लिंक भी भेजा. वे अब मेरे अच्छे मित्र है. गत्यात्मक ज्योतिष में महारत रखने वाली आदरणीय संगीता पुरी जी हमेशा मेरा उत्साह बढ़ातीं रहीं. वे जब-तब  मेरे ब्लॉग पर आकर देख जातीं हैं कि मैं क्या कर रहा हूँ. और जब भी  आतीं हैं तो मुझे बता जातीं हैं कि वे आयीं थीं. उनकी टिप्पड़ी जरूर मिलती है. उन्होंने ब्लाग ४ वार्ता में एक बार मेरी एक कविता का  उल्लेख भी किया. आशा है वे इस नए और नादान ब्लागिये  का ध्यान रखेंगीं और भटकने से रोकेंगीं. ब्लाग की दुनिया के महारथी आदरणीय डा. रूप चन्द्र शास्त्री  मयंक ने चर्चा मंच में मेरी एक कहानी मेरा पहला प्रेमपत्र का उल्लेख किया. मैं चाहूँगा कि वे लगातार हम जैसे नए लोगों का मार्गदर्शन करते रहें.

 साहित्य और प्रगतिशील  विचारधारा  से जुड़े  कुछ प्रबुद्धजनों  ने मेरे ब्लाग के लेखों  और सूचनाओं  का उपयोग किया, इसके  लिए उन्हें साधुवाद. डा परिहार द्वारा  लिखे गए सादगी का सम्मान और मेरी रचना अरुंधती राय का नया रोमांस का दो खास ब्लॉगों पर उपयोग किया गया. एक और बड़ी  बात इस दौरान हुई. मेरे प्यारे छोटे भाई यशवंत सिंह ने अपने महाब्लॉग भड़ास से बात-बेबात को जोड़कर मेरी पहुँच को और विस्तार दिया. उन्हें तो हमेशा स्नेह देता रहा हूँ, आगे भी देता रहूँगा.

इन दो महीनों में जो भी  मेरे परिचय में आये, जिन्होंने मुझे पसंद किया, जिन्होंने मेरे लिए टिप्पड़िया दीं या केवल मेरी रचनाएँ पढ़ी, वे  सभी मेरे साथ विचारयात्रा के इस जुलूस में शामिल हैं और आगे भी इसमें बने रहेंगें, ऐसा मेरा  विश्वास है. सबके लिए अर्ज करना चाहूँगा-
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया.

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुभाष जी आपको दो महीने पूरे करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद / आशा है आप ब्लॉग की दुनिया में सार्थकता के साथ ,कम से कम दो दशक जरूर पूरा करेंगे /

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  2. सर, बधाई. चल पड़ा है कारवां, ना रुकेंगी ये आंधियां... न थमेंगे ये बढ़ते कदम, न पस्त होंगे हौसले व दम... आपकी लेखनी की धार यूं ही रहे बरकरार.

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  3. बहुत बहुत बधाई सर। दो माह पूरे हुए इसी तरह समय आगे बढ़ेगा और यह नन्हा शिशु एक दिन बड़ा हो जाएगा। मुझे लगता है कि दो माह के छोटे से समय में ही आपको काफी प्रसिद्ध और पहचान मिली। हालांकि आप इन सब के मोहताज नहीं है लेकिन मैं ब्लॉग जगत की बात कर रहा हूं। जब पहली बार आपका ब्लॉग देखा तो आश्चर्य हुआ। लेकिन फिर लगातार पढ़ा।

    खैर अच्छा लगता है। सर समय मिले तो मेरे ब्लॉग http://udbhavna.blogspot.com/ पर भी आइएगा। आपको एक बार फिर बधाई। शुक्रिया।

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  4. आखिर हमारा यह छोटा-सा वैचारिक पौधा आकार-विस्तार पाने लगा और देखते ही देखते पूरे दो माह का हो भी गया। कितना अच्छा लगता है यह महसूसते हुए कि सोच-विचार का यह भावी बरगद जब पूरा विस्तार पा जाएगा तब लोगों को ज़िन्दगी की तपिश और भटकन से निजात देते हुए अपने वैचारिक साए एवं प्यार और स्नेह की शीतलता के आगोश में अवश्य लेता नज़र आयेगा। आप जिस जूनून और पैशन के साथ इसे आगे बढ़ा रहे हैं उसके लिए मेरी ओर से धन्यवाद और साधुवाद दोनों।

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  5. सर, नमस्ते। आपको ब्लाग जगत में दो माह पूरे करने के लिए हार्दिक बधाई। आप यूं ही लिखते रहें।

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