अचानक शहरयार साहब के कलाम से नये सिरे से रूबरू होने का मौका मिला। समकालीन उर्दू शायरी में शहरयार एक बड़ा नाम हैं। हिंदी पाठकों में भी उनकी मुकम्मल पहचान है। वे अपनी शायरी में सामाजिक विसंगतियों को तो उभारते ही हैं, एक नये समाज का ख्वाब भी देखते हैं। सातवें दशक में उनकी गजलों ने उर्दू शायरी में नयेपन का अहसास कराया था। उनकी गजलें लोगों की जुबान पर आ गयीं थीं। उनका एक शेर आप को याद दिलाता हूं-
सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यूं है
इस शह्र में हर शख्स परीशान सा क्यूं है
उनके जितने संग्रह उर्दू में आये हैं, उससे ज्यादा हिंदी में आ चुके हैं। वे उम्मीद और हौसले के शायर हैं। नये शायरों के लिए तो वे आदर्श की तरह हैं। आइए आप को भी उनकी कुछ गजलें सुनायें--
1.
किस्सा मिरे जुनूं का बहुत याद आयेगा
जब-जब कोई चिराग हवा में जलायेगा
रातों को जागते हैं इसी वास्ते कि ख़्वाब
देखेगा बंद आंख तो फिर लौट जायेगा
कब से बचा के रखी है इक बूंद ओस की
किस रोज तू वफा को मिरी आजमायेगा
कागज की कश्तियां भी बड़ी काम आयेंगी
जिस दिन हमारे शह्र में सैलाब आयेगा
दिल को यकीन है कि सर-ए-रहगुजर-ए-इश्क
कोई फसुर्दा दिल ये गजल गुनगुनायेगा
2.
हवा तू कहां है, जमाने हुए
समंदर के पानी को ठहरे हुए
लहू सब का सब आंख में आ गया
हरे फूल से जिस्म पीले हुए
जुनूं का हर इक नक्श मिटकर रहा
हविस के सभी ख़्वाब पूरे हुए
मनाज़िर बहुत दूर और पास है
मगर आईने सारे धुंधले हुए
जहां जाइए रेत का सिलसिला
जिधर देखिए शह्र उजड़े हुए
बड़ा शोर था जब समाअत गयी
बहुत भीड़ थी जब अकेले हुए
हंसो आसमां बे-उफक हो गया
अंधेरे घने और गहरे हुए
padhkar dil khush ho gaya........aabhar.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...इतनी खूबसूरत ग़ज़ल यहाँ पेश करने का
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शहरयार साहब की इन बेहतरीन ग़ज़लों के लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया इन ख़ूबसूरत ग़ज़लों को पढ़ाने के लिए।
जवाब देंहटाएंbahut bahut shuqriya.... :)
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