आज मन हुआ एक मजेदार खेल का. ब्लाग पर गज़लें बहुत पसंद की जाती हैं. जो भी पहुँचता है, दिल से पढता है और कुछ न कुछ अपने मन के उद्गार छोड़ जाता है. आइये मैं एक मशहूर नामचीन शायर की एक गजल सुनाता हूँ. ग़ज़ल के नीचे उस पर एक छोटी सी टिप्पडी है. उसमें उस शायर का नाम है, साथ ही साथ उसके संग्रह का भी नाम है, जिसमें यह ग़ज़ल छपी है. आप की सुविधा के लिए इन नामों के सभी अक्षर काले कर दिए गए हैं. आप को सिर्फ यह बताना है कि शायर का और उसके संग्रह का नाम क्या है. आइये ग़ज़ल पढ़िए---
हमें भी खुबसूरत ख्वाब आँखों में सजाने दो
हमें भी गुनगुनाने दो, हमें भी मुस्कराने दो
हमें भी टांगने दो चित्र बैठक में उजालों के
हमें भी एक पौधा धूप का घर में लगाने दो
हवाओं को पहुँचने दो हमारी खिडकियों तक भी
हमारी खिडकियों के कांच टूटें, टूट जाने दो
हवा इतना करेगी बस कि कुछ दीपक बुझा देगी
मुडेरों पर सजा दो और दियों को झिलमिलाने दो
समझने दो उसे माचिस का रिश्ता मोमबत्ती से
जलाता है जलाने दो, बुझाता है बुझाने दो
हमें कोशिश तो करने दो समंदर पार जाने की
हमारी नाव जल में डूबती है डूब जाने दो
यहाँ तलाश करें शायर और उसकी किताब का नाम. केवल काले यानि बोल्ड अक्षरों पर गौर फरमाएं. खोज लें तो अपनी टिप्पडी में लिखें.--रात आती है तो अँधेरा लेकर आती है. हम अक्सर इसकी काली साजिशों से अनजान रहते हैं. हमें थोडा सा भी वहम या भरम नहीं होता कि यह हमारा कुछ बिगाड़ सकती है. हम सो जाते हैं. गहरी नींद में ग़ुम हो जाते हैं. यह ठीक है कि हर रात के बाद सवेरा आता ही है पर जागते रहना जरूरी है. पता नहीं कौन बिना शोर किये सूरज के खिलाफ बेईमान साजिश में जुटा हो.
कल बात-बेबात के इसी पन्ने पर इसी शायर की कुछ बेहतरीन गजलें होंगीं. साथ में उन दोस्तों के नाम भी होंगे, जिन्होंने यह पहेली सही-सही हल कर ली.
शायर का नाम है अशोक रावत और संग्रह का नाम थोड़ा सा ईमान
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