शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

पिंजड़े में बूढ़े ‘शेर’ की सूनी आंखें !

  
(मित्रों ये वही वीरेंद्र सेंगर  जी हैं, जिनकी तस्वीर माननीय अविनाशजी ने नुक्कड़ पर लगाई थी. वह तस्वीर  आगरा में खींची गयी थी. उसमें मैं यानी  सुभाष राय और अविनाशजी भी थे. वह तस्वीर मैं फिर से यहाँ दे रहा हूँ )

(वीरेंद्र सेंगर की रिपोर्ट)
 कई बार वक्त ऐसा त्रासद मोड़ लेता है कि दहाड़ लगाने वाला शेर भी ‘म्याऊं-म्याऊं’ बोलने के लिए मजबूर हो जाता है। जब कभी ऐसे मुहावरे किसी की जिंदगी के यथार्थ बनने लगते हैं, तो उलट-फेर होते हुए देर नहीं लगती। शायद ऐसा ही बहुत कुछ स्वनाम धन्य जार्ज फर्नांडीस की जिंदगी में इन दिनों घट रहा है। इमरजेंसी के दौर में शेर कहे जाने वाले इस शख्स को लेकर ‘अपने’ ही फूहड़ खींचतान में जुट गए हैं। अल्जाइमर्स और पार्किंसन जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे जार्ज एकदम लाचार हालत में हैं। जो कुछ उनके आसपास हो रहा है, उसका कुछ-कुछ अहसास उन्हें जरूर है। इसका दर्द उनकी सूनी-सूनी आंखों में अच्छी तरह पढ़ा भी जा सकता है। समाजवादी जार्ज इन दिनों एक तरह से ‘अभिशप्त’ जीवन जीने के लिए मजबूर दिखाई पड़ते हैं। कहने को तो वे अपनी पत्नी और इकलौते बेटे के पास रह रहे हैं, फिर भी उनके तमाम साथी-संगी मान रहे हैं कि उन्हें जानबूझकर तनहाई  में रखा जा रहा है। 80 वर्षीय जार्ज दिल्ली में अपनी ‘परित्यक्ता’ पत्नी लैला कबीर और बेटे रेअन के साथ पंचशील एन्कलेव में रह रहे हैं। वे पिछले कई सालों से बीमार चल रहे हैं। उनकी बीमारी ने उन्हें उतना लाचार नहीं बनाया, जितना की घर के लोगों ने विरासत हड़पने के चक्कर में बना दिया है। जो जार्ज अपनी जवानी में ‘धन और धरती बंट के रहेगी’ जैसे खांटी समाजवादी नारों के प्रेरणास्रोत्र होते थे, अब खुद करोड़ों की संपत्ति की बंदरबांट में तमाशा बना दिए गए हैं।

बुधवार को तो यहां उनके 3 कृष्णा मेनन मार्ग के सरकारी निवास में तमाशा ही लग गया था। तीन घंटे तक गेट खोलने को लेकर हंगामा चला। यहां पर जार्ज की खास करीबी जया जेटली डटी हुईं  थीं। वे गेट खोलने के लिए जिद कर रही थीं, जबकि पत्नी लैला कबीर के आदेश से जया के लिए ‘नो एंट्री’ का बोर्ड लगा था। पुलिस भी थी, चीख-चिल्लाहट के चलते तमाशबीनों की भीड़ भी जुटी थी। जया की भावनाएं जोर मार रही थीं। वे भावुक होकर रो भी रहीं थीं और अधिकारों की याद करके दहाड़ भी रहीं थीं। वे यही कह रही थीं कि बंगले में मेरा कुछ सामान है, लौटा दो...! लेकिन, गेट पर तैनात वर्दी वाले कहते रहे ‘सॉरी मैडम...!’ जया के साथ जार्ज के दो सगे भाई भी आए थे। ये थे माइकल और रिचर्ड। इन लोगों का यही कहना था कि वे बंगले से कुछ अपनी किताबें लेने आए हैं। घंटों  जद्दोजहद कर ये लोग  लौट गए। जाते-जाते जया बोल गई थीं कि वे गुरुवार को आकर यहीं पर धरने पर बैठेंगी। वो तो जार्ज के शुभचिंतकों ने उन्हें समझा लिया कि धरना देकर वे बूढ़े शेर का और तमाशा न बनने दें। कोई नहीं जानता कि जार्ज के घर अब कौन तमाशा कब हो जाए? यह अलग बात है कि जार्ज के भाइयों ने अपने भाई को ‘मुक्त’ कराने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस पर गुरुवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने लैला को 5 जुलाई को जार्ज को अदालत में पेश करने के लिए कहा है।

जरा जार्ज की पत्नी के बारे में जान लीजिए। ये हैं लैला कबीर। लैला एक जमाने के चर्चित वकील और शिक्षाविद् हुंमायू कबीर की बेटी हैं। करीब 30 साल पहले वे जार्ज के जीवन से चली गई थीं। इसके पीछे वास्तविक कारण क्या थे, यह तो लैला ही जानें क्योंकि जार्ज जानते भी होंगे तो ज्यादा कुछ कहने-सुनने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि जया जेटली पिछले तीन दशकों से जार्ज के साथ ‘छाया’ की तरह छाई रही हैं। वे एक प्रबुद्ध महिला हैं। जार्ज की छत्रछाया में उन्होंने राजनीति की एबीसीडी सीखी थी। जया से जार्ज की करीबी कई बड़े विवादों का कारण भी बन चुकी है। लैला के करीबी तो यह भी कहते हैं कि जार्ज की जिंदगी में जया के आने के बाद ही लैला की ‘विदाई’ हो गई थी। हालांकि, अभी तक लैला ने औपचारिक रूप से इसका कोई खुलासा नहीं किया है। बिडंबना यह है कि जो जार्ज पूरी जिंदगी अक्खड़ समाजवादी जीवन मूल्यों के लिए जाने जाते रहे, अब संपत्ति को लेकर उनके अपने आपस में जूझने लगे हैं। वह भी जार्ज के जीते जी।

जार्ज एक जमाने में प्रखर समाजवादी योद्धाओं में एक माने जाते थे। दबंग ट्रेड यूनियन नेता के रूप में उनकी पहचान देशभर में बनी थी। वर्ष 1974 में ऐतिहासिक रेलवे हड़ताल की अगुवाई उन्होंने  ही की थी। जून 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी थी, तो इसको सबसे मुखर चुनौती जिन लोगों ने दी थी, उनमें जार्ज भी प्रमुख थे। इमरजेंसी के दौर में तमाम बड़े नेता तो सहज गिरफ्तार हो गए थे, लेकिन जार्ज ने इंदिरा गांधी के प्रशासन को चुनौती दे दी थी। वे पूरे एक साल तक इमरजेंसी के खिलाफ देशभर में घूम-घूमकर गोपनीय ढंग से अलख जगाते रहे। बाद में उन्हें गिरफ्तार किया गया, तो उन पर चर्चित बड़ौदा डायनामाइड कांड का आरोप लगाया गया। इमरजेंसी खत्म होने के बाद, जार्ज नायक बनकर उभरे थे। उन्हें इमरजेंसी के ‘शेर’ के रूप में याद किया गया था। जेल से ही उन्होंने मुजफ्फरपुर (बिहार) से चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में बेड़ियों में जकड़े जार्ज के पोस्टरों ने पूरे देश में तहलका मचा दिया था। वोटिंग के बाद जार्ज रिकार्ड मतों से जीते थे। चुनाव के बाद   मोरार जी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी, तो उसमें जार्ज उद्योग मंत्री बने थे। हमेशा राज व्यवस्था के खिलाफ जूझने वाले जार्ज जब ‘सरकार’ बन गए, तो भी उन्होंने अपनी ‘फितरत’ नहीं छोड़ी। मंत्री बनते ही बहुराष्ट्रीय कंपनी- आईबीएन और कोको कोला को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। वीपी सिंह की सरकार में वे कुछ समय के लिए रेल मंत्री भी बने थे। इस दौर में उन्होंने रेलवे के ड्रीम प्रोजेक्ट कोंकण रेलवे को आगे बढ़ा दिया था। बाद में जनता दल से अलग होने के बाद 1994 में उन्होंने समता पार्टी बना ली थी, जोकि बाद में जद (यू) के रूप में अवतरित हुई। इस तरह से जार्ज जद (यू) के संस्थापकों में एक थे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वे प्रतिरक्षा मंत्री थे। इस कार्यकाल में उन्होंने सेना के जवानों के कल्याण के लिए कई ऐतिहासिक फैसले कराए थे।

पहली बार किसी रक्षा मंत्री ने फाइटर विमानों में उड़ान भरके सेना का हौसला बढ़ाया था। लेकिन  इसी कार्यकाल में उनकी करीबी जया जेटली ‘तहलका’ के एक चर्चित स्टिंग में फंस गई थीं। वे चंदे के नाम पर रक्षा मंत्रालय से कोई काम कराने का ‘सौदा’ कर रहीं थीं। इस विवाद में जार्ज को मंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा था। इसके साथ ही जार्ज को अपने खांटी राजनीतिक तेवरों से बहुत समझौता करना पड़ा था। जार्ज का राजनीतिक जीवन एक तरफ जुझारू तेवरों वाला रहा, तो दूसरी तरफ धुर अंतरविरोधों से भी भरा रहा। जनता सरकार के दौर में जार्ज ने अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के मामले में यह आपत्ति की थी कि ये लोग संघ के भी सदस्य हैं और सरकार में भी हैं। यह ठीक नहीं है। इसी विवाद को लेकर मोरार जी की सरकार भी डूब गई थी। संघ की राजनीति से इतना परहेज करने वाले जार्ज, वाजपेयी की सरकार में भागीदार ही नहीं थे, बल्कि उन्हें संघ लॉबी का चहेता माना जाता था।

इस स्थिति को लेकर जार्ज के तमाम समाजवादी साथी दुखी रहे हैं। अक्सर जार्ज इस मामले में सफाई देते-देते परेशान हो जाते थे। ऐसे एक दो अनुभव इस प्रतिनिधि को भी जार्ज के साथ संवाद के दौरों में हो चुके हैं। तरह-तरह के आरोपों से दुखी होकर जार्ज तो एक बार रो भी पड़े थे। मैंने सवाल किया था कि आखिर संघ की विचारधारा के साथ उनका तालमेल कैसे हो गया? अनौपचारिक बातचीत में वे बोले थे कि उनके दिल में इंदिरा गांधी के दौर से कांग्रेस के लिए नफरत भर गई है। ऐसे में तो वे संघ क्या, कांग्रेस के खिलाफ ‘शैतान’ से भी हाथ मिला सकते हैं। रक्षा मंत्री जैसे संवेदनशील पद पर रहते हुए भी जार्ज के सरकारी निवास 3 कृष्णा मेनन मार्ग के दरवाजे हर किसी के लिए खुले रहते थे। जिद में आकर उन्होंने अपने निवास में गेट तक नहीं लगने दिया था। अक्सर वे तुड़े-मुड़े कुर्ते-पैजामे में देखे जाते थे। शहर में वे अपनी पुरानी फियट कार से चलते थे। लंबे समय तक उनके घर में एसी तक नहीं थे। हालांकि, विरोधी जार्ज की इस सादगी को ढोंग बताते थे लेकिन ढोंग बताने वाले ज्यादा ऐसे लोग थे, जो राजनीति में अय्याशी और विलासिता भरे जीवन के लिए जाने जाते रहे हैं। जार्ज कभी उनकी परवाह भी नहीं करते थे।

हाल के वर्षों में जद (यू) की राजनीति में वे शिखर पुरुष नहीं रहे थे। इसकी खास वजह उनका बीमार रहना ही था। इन दिनों वे राज्य सभा के सदस्य हैं। वास्तविक अर्थों में उनकी सुध-बुध कम हो गई है। मुलाकात के समय वे बहुत कम बोलते हैं लेकिन अखबारों के जरिए वे देश के घटनाक्रमों से अवगत रहते हैं। शायद इसी वजह से वे ज्यादा लाचारी महसूस करते हैं क्योंकि खुद कुछ न कर पाने के लिए अपने को ‘अभिशप्त’ पाते हैं। उनकी करीब 25 करोड़ रुपये की संपत्ति है। इसी पर कई परिजनों की नजरे हैं। उनके जो दो सगे भाई इन दिनों जार्ज की ‘शुभचिंता’ ज्यादा जता रहे हैं, वे पहले कभी जार्ज के पास नहीं आते थे। बेटा और पत्नी तो दूर ही थे। 3 कृष्णा मेनन मार्ग में दो दशकों से जिन जया जेटली का ‘राज’ चलता था, अब वही गेट पर खड़ी होकर अंदर आने के लिए गुहार लगा रही हैं। तीन दशकों से दूर रहीं लैला को अपने बूढ़े पति की सेहत की चिंता हो गई है। वे उन्हें हरिद्वार से लेकर ऋषिकेश के तमाम मठों तक घुमाकर लाई हैं ताकि किसी के ‘आशीर्वाद’ से वे कुछ ठीक हो सकें।

शायद यह भी जार्ज के जीवन की एक बिडंबना ही है कि जो व्यक्ति पूरी जिंदगी अनीश्वरवादी रहा, उसी को संतों-महात्माओं के चमत्कार से ठीक कराने की कोशिश हो रही है। यह अलग बात है कि बचपन में मंगलौर (कर्नाटक) में उनके पिता ने अपने इस बेटे को चर्च का ‘पुजारी’ बनाने के लिए भेज दिया था लेकिन उस चर्च के तमाम ‘पाखंड’ देखकर जार्ज का बाल मन विद्रोह कर बैठा था और वे वहां से भाग निकले थे। फिर पूरी जिंदगी सामाजिक पाखंडों के खिलाफ वे लड़ते रहे। अब त्रासदी यह है कि उनके करीबी संपदा के लिए झगड़ रहे हैं और मजबूर जार्ज सब कुछ टकटकी लगाकर देख रहे हैं। पिछले दिनों जार्ज के कुछ खास करीबी मित्रों फारुख अब्दुल्ला, जस्टिस वेंकेटचलैया, जसवंत सिंह व उद्योगपति राहुल बजाज ने एक खुली चिठ्ठी लिखकर लैला कबीर से अपील की थी कि वे उनके साथी जार्ज को पंचशील एन्कलेव जैसी अनजानी जगह से 3 कृष्णा मार्ग में ले आएं। क्योंकि, जार्ज यहां दो दशकों से रह रहे हैं और यही घर वह   जगह हो सकता है, जहां उन्हें ‘कैद’ न महसूस हो।

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुभाष भाई जैसा कि मैं समझ रहा हूं कि यह रिपोर्ट वीरेन्‍द्र जी ने लिखी है। अच्‍छा होगा कि पोस्‍ट के अंत में आप यह बात स्‍पष्‍ट रूप से लिख दें। क्‍योंकि ऊपर शीर्षक भ्रम पैदा कर रहे हैं। या तो ऊपर ही शीर्षकों की जगह बदल दें। पहले रिपोर्ट का शीर्षक आए और फिर उसके नीचे वीरेन्‍द्र सेंगर की रिपोर्ट शीर्षक।

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  2. bahut achha likha hai sengar sahab ne . jeevan kabhi kabhi kitna majboor ho jata hai ki lagata hi nahi ki o majboor vyakti vahi hai .jorj ke sath maine bhi kam kiya hai .lagta hai ki lohia ke bad poora samajvadi andolan hi abhishapt ho gaya hai .samajvadi log jitane pathbhrast nikane utne aur koi nahi .jorj jaise log rss ke khilaf jadate huye usi ki god me jaa baithe .lekin sher ka yah hashra achha nahi laga.

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  3. श्री जार्ज फर्नांडिस की समाजवादी राजनीति और सादा जीवन शैली को ध्यान में रखते हुये इस लेख में जो बार बार उनकी २५ करोड़ की सम्पत्ति का जिक्र हुआ है, वह क्या पुश्तैनी है? क्या लेख इस आँकड़े के बारे में सही है?
    मजदूर यूनियन के नेता के तौर पर राजनीति की शुरुआत करने वाले नेता के पास इतनी सम्पत्ति कहाँ से आयी है? क्या उन्होने बहुत सारी किताबें लिखी हैं जिनकी रॉयल्टी से इतना धन इकट्ठा हुआ है? या शेयर आदि से इतनी सम्पत्ति के मालिकाना हक उनके पास हैं?
    २५ करोड़ की सम्पत्ति कोई मामूली तो है नहीं।

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