सोमवार, 12 जुलाई 2010

जातीय जनगणना में ‘फंसी’ सरकार

वीरेंद्र सेंगर के कलम से
जातीय जनगणना के मुद्दे पर सरकार को ऐसा कोई रास्ता  नहीं मिल रहा, जिससे सभी पक्षों को संतुष्ट किया जा सके। जीओएम अभी तक यह भी तय नहीं कर पाया कि आखिर किस मुद्दे पर बात ज्यादा उलझ रही है। अब  मुख्यमंत्रियों की राय जानने के बाद ही जीओएम आगे कार्रवाई करेगा।  जद (यू) के प्रमुख शरद यादव हैरानी जताते हैं कि जीओएम महीनों बाद भी इस जरूरी मुद्दे पर अपनी राय क्यों नहीं बना पाया? उनका आरोप है कि सरकार जानबूझ कर इस मुद्दे को टालने की कोशिश कर रही है। सवर्णवादी मानसिकता को इस सच्चाई से डर है कि अगर पिछड़े वर्ग का आधिकारिक आंकड़ा आ गया, तो वे अपने हक की लड़ाई ज्यादा तेज कर देंगे। वे कहते हैं कि यदि सरकार ने इस फैसले में और देर लगाई, तो पिछड़े वर्गों के अंदर असंतोष का भारी उबाल आ जाएगा।

गौरतलब है कि संसद के पिछले सत्र में लोकसभा में बहस के बाद प्रधानमंत्री की पहल पर प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित जीओएम को एक महीने के अंदर ही रिपोर्ट देनी थी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। जीओएम की दो बैठकों में मतभेद के स्वर उभरने के बाद जीओएम ने सभी मुख्यमंत्रियों से इस बारे में राय मांगी है| इस संवेदनशील मुद्दे पर कांग्रेस के भीतर भी तीखे मतभेद बने हुए हैं। पिछड़े वर्ग के सांसद लगभग लामबंद हो गए हैं। इन लोगों ने सरकार पर दबाव बनाया है कि पाखंडी तर्कों को दरकिनार कर जातीय आधार पर जनगणना के आदेश गृह मंत्रालय को दे दिए जाएं। जबकि कांग्रेसियों का एक हिस्सा नहीं चाहता कि दबाव में जातीय गणना कराई जाए। इस तबके का तर्क है कि इस एक फैसले से जातिवाद को नए सिरे से बढ़ावा मिल जाएगा।

इस मुद्दे पर भाजपा के अंदर भी अंतरविरोधी स्वर तेज हुए हैं। आधिकारिक रूप से भाजपा ने जातीय जनगणना का समर्थन किया है जबकि खुले तौर पर पार्टी के मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता कह रहे हैं कि जातीय जनगणना कराना देश के लिए आत्मघाती होगा। संघ प्रमुख, मोहन भागवत भी कह चुके हैं कि जातीय जनगणना कराना किसी तरह से उचित नहीं होगा। उनके स्वयं सेवक देशभर में ऐसे किसी फैसले का विरोध करेंगे।  जाने माने पत्रकार, वेद प्रताप वैदिक की अगुवाई में बुद्धिजीवियों का एक बड़ा दस्ता तैयार हुआ है, जो जातीय जनगणना के खिलाफ अभियान शुरू कर रहा है। वैदिक कहते हैं कि जातीय जनगणना कराने का मतलब होगा कि सरकार जातिवाद को वैधानिक लाइसेंस दे देगी। शरद यादव ऐसे तर्कों को पाखंड करार करते हैं। वे कहते हैं कि जाति इस देश की हकीकत है। यदि सही आंकड़ा आ गया, तो कौन सी आफत आ जाएगी?

सरकार को डर है कि अगले सत्र में उसकी खिंचाई हो सकती है, शायद इसी लिए पीएमओ ने प्रणव के नेतृत्व वाले जीओएम से कहा है कि वह इस मामले में हर हाल में अगस्त के पहले सप्ताह तक अपनी रिपोर्ट दे दे।  वाम मोर्चा खुलकर दबाव बनाए है कि  जाति आधारित जनगणना नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे समाज में नए तरीके की जटिलताएं फैलेंगी। कांग्रेस में खींचतान जारी है। शीर्ष नेतृत्व ने इस पर फैसला सरकार के ‘संकट मोचक’ माने जाने वाले प्रणव दा पर छोड़ दिया है।

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