संसद के वर्षाकालीन सत्र में भले ही यूपीए सरकार के अस्तित्व के लिए कोई गंभीर खतरा न हो, लेकिन महंगाई ‘डायन’ उसे बुरी तरह सताने लगी है। वीरेन्द्र इस मोर्चे पर उसके सारे वायदे झूठ की पोटली साबित हो रहे हैं। इस मुद्दे पर सरकार संसद में ही नहीं, पूरे देश के सामने कटघरे में आ गई है। यूपीए के कई घटक भी सरकार की मासूम सफाई को अपने गले नहीं उतार पा रहे हैं। महंगाई के मुद्दे पर लामबंद विपक्ष कई और मोर्चो पर सरकार की मुसीबत बढ़ाने को तैयार हो रहा है। बढ़ती महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है। यूपीए की दूसरी पारी की सरकार को 14 महीने हो गए हैं। सरकार ने गठन के दौर से ही संकल्प जताया था कि सबसे पहले वह बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाएगी ताकि आम आदमी को राहत मिल सके। सरकार हर महीने-दो महीने में राहत आने का भरोसा दिलाती रही, लेकिन महंगाई नए-नए रिकॉर्ड बनाती गई। हालत यह है कि खाद्यान्नों में करीब 17 प्रतिशत की रिकॉर्ड महंगाई दर्ज हो चुकी है।कैबिनेट सचिव ने कह दिया है कि खाद्यान्नों की महंगाई रोक पाना तत्काल संभव नहीं है।
पांच जुलाई को विपक्ष के ‘भारत बंद’ के दौरान पूरे देश में यूपीए सरकार के खिलाफ गुस्से का उबाल दिखाई पड़ा था। इस सत्र में यूपीए के समर्थक दल भी महंगाई के मुद्दे पर सरकार को ‘आंख’ दिखाने लगे हैं। यूपीए की अध्यक्ष, सोनिया गांधी ने सोमवार को घटकों से विमर्श किया था। इस विमर्श के दौरान कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने सुझाव दिया था कि विपक्ष की संभावित लामबंदी को तोड़ने के लिए महिला आरक्षण मुद्दा कारगर ‘कवच’ बन सकता है। प्रणव मुखर्जी की राय रही कि महंगाई की राजनीतिक तपिश दूसरे विकल्पों से ठंडी की जाए। जल्दबाजी में महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में लाने की रार की गई तो सपा, बसपा और राजद खुलकर विपक्ष की मुहिम में शामिल हो जाएंगे। ऐसे में सरकार का संख्या गणित भी खतरे के जोन के नजदीक पहुंच जाएगा।
सरकार के सामने रेल मंत्री ममता बनर्जी की क्षमता का ताजा सवाल उठ खड़ा हुआ है । ममता के कार्यकाल में रेल दुर्घटनाओं में करीब 428 लोग मारे गए हैं और 600 से अधिक घायल हुए हैं। इस मामले में सरकार की फजीहत इसलिए और ज्यादा हो रही है, क्योंकि यह प्रचारित हो गया है कि रेल मंत्री के पास मंत्रालय का कामकाज देखने का समय ही नहीं है। यूपीए के कई घटक भी चाहते हैं कि प्रधानमंत्री पहल करके इस मामले में ममता से साफ-साफ बात करें। यदि उनसे सीधे-सीधे रेल मंत्रालय हटाना संभव न हो, तो उन्हें समझाया जाए कि वे ‘भरत खड़ांऊ ’ की तरह यह अहम मंत्रालय अपने किसी सांसद को दिला दें ताकि हर दुर्घटना के बाद सरकार पर सवालों की ‘बमबारी’ न होने पाए।
संघ की ‘जोर अजमाइश’
संघ नेतृत्व भाजपा में अपने एजेंडे लागू कराने के लिए ज्यादा लंबा इंतजार नहीं कर सकता। उसकी कोशिश है कि भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी इतने पावर फुल हो जाएं कि सहज ही उनके तमाम एजेंडे लागू हो जाएं। संघ परिवार के कुछ बिछडे हुए चेहरों को भाजपा में फिर से समाहित करने के संकेत दिए गए थे। इन संकेतों के बाद गडकरी ने भी उमा भारती, केएन गोविंदाचार्य व संजय जोशी जैसे नेताओं को पार्टी में वापस लेने की खुली तरफदारी की थी। पार्टी प्रमुख की इस इच्छा के बावजूद एक मजबूत लॉबी गडकरी के इस एजेंडे में तरह-तरह की रुकावटें लगा रही है। इस स्थिति के चलते अब खुल्लम-खुल्ला संघ नेतृत्व ही दबाव बनाने पर उतारू हो गया है। संघ के चर्चित विचारक एमजी वैद्य ने मराठी दैनिक तरुण भारत में एक लेख में भाजपा को फटकारने के अंदाज में सवाल किया कि पार्टी उमा भारती जैसे ऊर्जावान नेताओं को वापस क्यों नहीं ले रही है? वैद्य ने यह भी कहा कि हो सकता है कि उमा भारती, केएन गोविंदाचार्य व संजय जोशी से कुछ गलतियां हुई हों। लेकिन इन्होंने तो ‘लंबा वनवास’ झेल लिया जबकि इनका ‘अपराध’ जसवंत सिंह के मुकाबले काफी हल्का रहा होगा।
जबतक हमारे देश में शरद पवार जैसे बेशर्म ,भ्रष्ट और निकम्मे मंत्री रहेंगे तबतक महंगाई क्या देश का कोई विकाश भी सिर्फ कागजों पर ही हो सकता है ,प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का महंगाई के मुद्दे पर चुप रहना और कुछ भी नहीं करना बेहद गंभीर है और आम जनता के प्रति असम्बेदंशील रवैया है ...
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं होगा जब तक कमोडिटी एक्सचेजों के नाम पर चलाए जा रहे जुआघर बंद नहीं होंगे. डिमांड/सप्लाई के खेल में खाने पीने की वस्तुओं की कमी तो बनी ही रहती है दूसरे ख़राब मौसम व तीसरे इन जुआरिओं के चलते रही सही क़सर पूरी हो जाती है.
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