शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

बिना कमेन्ट की इच्छा किए, गज़ल आपकी खिदमत में पेश है.

एक शायर हैं सरवत जमाल| क्या बताऊ मेरे दोस्त भी हैं| तूफानी मिजाज है| पर दोस्ती तो दोस्ती, निभानी पड़ती है| उन्होंने अपने ब्लॉग में ताजा गजल डाली है, पर टिप्पड़ी  बाक्स बंद कर दिया है| क्यों, बहुत पूछने पर भी नहीं बताया, कहा कि मिलेंगे तब बताऊंगा| पर बताइए जो लोग उनकी ग़ज़ल की तारीफ़ करना चाहते हैं, वे बिचारे क्या करे| या तो फोन नंबर तलाशें या मेल पता| और जिन्हें यह भी न मिले वो? इसीलिए मैंने सोचा, उन सबके लिए यहाँ गुंजाइश बना दूं| उन्होंने जैसे अपने ब्लाग पर पोस्ट किया है, वैसे ही मैं यहाँ दे रहा हूँ| सरवत से क्षमा याचना के साथ|
बहुत दिनों के बाद आना मुमकिन हो सका है. कुछ काम की व्यस्तता, कुछ हालात, इन सभी ने कुछ ऐसा किया कि लगा जैसे नेट से मोह भंग हो गया हो. चाहते हुए भी कुछ नहीं हो सका. कुछ मित्रों से राय ली-क्या ब्लॉग बंद कर दूं....जवाब मिला, ऐसा होता रहता है. लगे रहो. फिर भी मन को चैन नहीं था. फिर सोचा यह कमेन्ट वगैरह का चक्कर खत्म कर दिया जाए. यह पॉइंट कुछ जचा, कमेन्ट का ऑप्शन खत्म कर दिया. जिन्हें मुझे पढना है, पढ़ लें. प्रशंसा लेकर करूंगा भी क्या. हाँ, जो दोष हों उनके लिए मेल बॉक्स तो है ही. फिलहाल, बिना कमेन्ट की इच्छा किए,  गज़ल आपकी खिदमत में पेश है.

पता चलता नहीं दस्तूर क्या है
यहाँ मंज़ूर, नामंजूर क्या है


कभी खादी, कभी खाकी के चर्चे
हमारे दौर में तैमूर क्या है


गुलामी बन गयी है जिनकी आदत
उन्हें चित्तौड़ क्या, मैसूर क्या है


नहीं है जिसकी आँखों में उजाला
वही बतला रहा है नूर क्या है


बताओ रेत है, पत्थर कि शीशा
किया है तुम ने जिस को चूर, क्या है


यही दिल्ली, जिसे दिल कह रहे हो
अगर नजदीक है तो दूर क्या है


वतन सोने की चिड़िया था, ये सच है
मगर अब सोचिए मशहूर क्या है.

.------मैं अपनी टिप्पडी यहीं दे रहा हूँ----आदरणीय दुष्यंत ने गज़लों को जो दिशा दी, उसने पूरे समाज में एक हलचल मचा दी. वह वक्त गुजर गया, पर दुष्यंत आज भी लोगों के दिलों में, लोगों की जुबान पर ज़िंदा हैं, ज़िंदा रहेंगे. यद्यपि इस तरह की गज़लें पहले भी कही गयी, जिस दौर को इश्किया ग़ज़लों का दौर कहा जाता है, उस दौर में भी कुछ शायर समय की धार को पहचान कर शायरी कर रहे थे पर भीड़ में उनकी अलग पहचान न तो की गयी, न  ही उन पर विस्तार से बातें की गयीं. दुष्यंत के साथ ही इस नयी पहचान के निशाँ लोगों के जेहन में उतरे. पर आज कई शायर उनसे आगे की बात कह रहे हैं. दुष्यंत के वक्त का घात-प्रतिघात और गहरा हो गया है, पाखंड और बढ़ा है, धूर्तता और आडम्बर के अँधेरे और जालिम हो गये हैं, इसलिए शायर के सामने साजिश और गलीज के इस कवच को भेदने की चुनौती भी गहरी हुई है. कुछ ऐसे शायर हैं जो यह काम बखूबी कर रहे हैं,  उनमें मैं सरवत जमाल को भी गिनता हूँ. मन में बातें तो बहुत ज्यादा है. पर इस बात को और आगे बढ़ाने का काम मैं आप पर छोड़ता हूँ.

17 टिप्‍पणियां:

  1. गुलामी बन गयी है जिनकी आदत
    उन्हें चित्तौड़ क्या, मैसूर क्या है

    नहीं है जिसकी आँखों में उजाला
    वही बतला रहा है नूर क्या है

    बताओ रेत है, पत्थर कि शीशा
    किया है तुम ने जिस को चूर, क्या है

    यही दिल्ली, जिसे दिल कह रहे हो
    अगर नजदीक है तो दूर क्या है

    speechlees

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  2. बेहतरीन ग़ज़ल, बहुत ज़बरदस्त, बहुत खूब!

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  3. बहुत शानदार गज़ल है। पहली दो लाइनें पढ़ते ही लगा कि आगे दम होगा। और खत्म करने पर लगा कि मैं सही हूं। जमाल साहब, कमेंट का बक्सा खोल दीजिए जिसे कमेंट करना होगा करेगा नहीं करना होगा नहीं करेगा। पर कुछ तो करेंगे ही ना।
    आज अगर राय साहब आपके मित्र न होते तो मैं यह बेहतरीन गजल कहां सुनता? भई जमाल साहब ऐसा सितम मत कीजिए अपने चाहने वालों पर, यह तो गलत है।

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  4. गुलामी बन गयी है जिनकी आदत
    उन्हें चित्तौड़ क्या, मैसूर क्या है
    जमाल जी की गज़लों का अन्दाज क्या कहने ..
    पत्थर पर लकीर खींच देते है
    और यह गजल तो ...

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  5. अच्छी यारी निभाई. ऐसे ही चचा ग़ालिब ने थोड़े ही कहा था-- "हुए तुम दोस्त जिसके दुश्मन उसका आसमां क्यों हो."
    फिलहाल अब इस वक्त तो नौबत यही है कि प्रार्थी आपका शुक्रिया अदा करे और ऐसी बेमिसाल दोस्ती के, जब तक दुनिया कायम है, जिंदा रहने की दुआएं मांगे. सरकार, आपका हक है, लेकिन मैं वाकई इन दिनों बेहद मानसिक तनाव में हूँ और यही कारण रहा है कमेन्ट ऑप्शन हटाने का.
    मैं यहाँ कमेन्ट पढ़कर हैरान हूँ और वादा करता हूँ आप सभी से बारी बारी मिलने का.

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  6. ghzl men aapki shron ke naam ka vrnn niraalaa he or saath hi khaaki khaadi kaa hvaalaa is esh ki tsvir or haalaat ko byaan kr rhe hen achchi ghzl ke liyen yeh koi tippni nhin kevl bdhaayi he krpya ise tippni smjh kr mitaa naa denaa. akhtar khan akela kota rajsthan

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  7. दोस्ती अमर रहे ....ग़ज़ल तो वाकई कमाल की है ,उस्ताद की है !

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  8. सर्वत साहब हमारे समय के उन गिने -चुने शायरों में से एक हैं जो बड़ी हिम्मत से ग़ज़ल कहते हैं....उनकी गजलों में जो कंटेंट होता है वो हमें दुनियावी सच्चाई से रु-ब-रु करते हुए बहुत कुछ सोचने पर विवश करता है.....उन्होंने अपने ब्लॉग पर टिप्पणी बोक्स बंद कर हम जैसों के लिए अन्याय किया था..उस अन्याय के खिलाफ "बात-बेबात" रौशनी की तरह बन कर उभरा है....आपके मार्फ़त हमारी भावनाएं जनाब सर्वत जमाल तक पहुँच जाएँ....उनकी खामोशी टूटी यह ग़ज़ल-परिवार के लिए सुखद ही है.....जहाँ तक इस ग़ज़ल की बात है मतला तो खूबसूरत था ही....मगर ये दो शेर तो नए लगे.....इस कंटेंट के साथ ग़ज़ल लिखने की ताकत सिर्फ और सिर्फ सर्वत साहब ही कर सकते हैं.....
    कभी खादी, कभी खाकी के चर्चे
    हमारे दौर में तैमूर क्या है


    गुलामी बन गयी है जिनकी आदत
    उन्हें चित्तौड़ क्या, मैसूर क्या है

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  9. apne samay ke savalon se do-char hotee yah sundar ghzal parh achchha laga. yahi lekhan hai jo itihas banata hai. badhai. lekhak ko aur use prastut karnevale ko..

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  10. आपसे मिलने कि तमन्ना और भी ज्यादा बलबती हो गई ये नायब ग़ज़ल पढके...

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  11. प्रिय मित्रों, साथियों आप का यह सारा प्यार मैं भाई सर्वत जमाल के हवाले करता हूं. गज़ल उनकी है, मैं तो एक दोस्त का दुख कम करना चाहता था, उसे बताना चाहता था कि तुम्हें दर्द देने वाले कुछ होंगे लेकिन तुम्हें चाहने वाले उससे कहीं बहुत ज्यादा हैं. भाई दीपक मशाल, गिरीश पंकज, सिन्ह्स डी एम, अरविन्द मिश्रा, अविनाश जी, अख्तर अकेला, एम वर्मा, पंकज मिश्रा, रजनीश, सहसपुरिया जी, शाहनवाज और निर्झर नीर जी को मेरी ओर से आभार. आप सबने यहां आकर मेरा यह अनुमान सच साबित किया है कि सरवत जमाल को चाहने वाले बहुत है और उन्हें अपना कमेंट बाक्स बन्द नहीं करना चहिये था. पर मैं सरवत को भी दोष नहीं देता क्योंकि उन्हें अपनों से ही सचमुच ऐसी पीड़ा मिली कि वे सन्न थे, क्या करें क्या न करें. आप को पूरा वाकया जल्द ही बताऊंगा. धन्यवाद.

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  12. राय साहब
    बहुत पहले जब सर्वत साहब ब्लॉग पर अवतरित हुए थे हम पहले ही दिन से उनकी कलम की ताक़त के कायल हो गए थे. उनकी गजलों में व्यवस्था की सड़ांध को निकल फेकने का जो जज्बा है वह उनके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा है . सर्वत की गजल ज़िन्दगी को ज़िन्दगी देने की जंग का औजार है . सर्वत के जज्बों की पर्वत सी ऊंचाई को मीरासी और भांडगीरी कर के चन्द चांदी के टुकडो की खातिर हुनर बेचने वाले कभी छू भी नहीं पाएंगे .
    जहाँ तक सर्वत साहब के साथ घटी घटना और उस पर आई प्रतिक्रियाओं माफीनामों की बात है ,किसके मन में उस समय क्या रहा होगा और वह बाद में क्या कह रहा है ,इसे या तो वह खुद जानता है या खुदा जानता है .बेहतर होगा कि आयोजक और संचालक अपने अपने ढंग से घटना का क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत करें . इस पूरे घटना क्रम का पश्चाताप चाहे जैसे कर लिया जाये .अपमान की वेदना की भरपाई नहीं हो सकती .
    सर्वत साहब से निवेदन है कि इश्वर पर भरोसा करें और उसके द्वारा दिए गए हुनर से साहित्य और समाज की सेवा जारी रखें . इश्वर की लाठी बे आवाज होती है .मै समझ सकता हूँ कि आपको ही नहीं आपके परिवार को भी बहुत यंत्रणा से गुजरना पड़ा होगा .
    साहित्य को समाज के सुख का माध्यम मानने वाले ब्लॉगर इस का निराकरण कर लेंगे .यह विश्वास है .
    राय साहब पीड़ा की अनुभूति करने और न्याय का प्रयास करने के लिए आप साधुवाद के पात्र है

    जवाब देंहटाएं
  13. राय साहब
    बहुत पहले जब सर्वत साहब ब्लॉग पर अवतरित हुए थे हम पहले ही दिन से उनकी कलम की ताक़त के कायल हो गए थे. उनकी गजलों में व्यवस्था की सड़ांध को निकल फेकने का जो जज्बा है वह उनके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा है . सर्वत की गजल ज़िन्दगी को ज़िन्दगी देने की जंग का औजार है . सर्वत के जज्बों की पर्वत सी ऊंचाई को मीरासी और भांडगीरी कर के चन्द चांदी के टुकडो की खातिर हुनर बेचने वाले कभी छू भी नहीं पाएंगे .
    जहाँ तक सर्वत साहब के साथ घटी घटना और उस पर आई प्रतिक्रियाओं माफीनामों की बात है ,किसके मन में उस समय क्या रहा होगा और वह बाद में क्या कह रहा है ,इसे या तो वह खुद जानता है या खुदा जानता है .बेहतर होगा कि आयोजक और संचालक अपने अपने ढंग से घटना का क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत करें . इस पूरे घटना क्रम का पश्चाताप चाहे जैसे कर लिया जाये .अपमान की वेदना की भरपाई नहीं हो सकती .
    सर्वत साहब से निवेदन है कि इश्वर पर भरोसा करें और उसके द्वारा दिए गए हुनर से साहित्य और समाज की सेवा जारी रखें . इश्वर की लाठी बे आवाज होती है .मै समझ सकता हूँ कि आपको ही नहीं आपके परिवार को भी बहुत यंत्रणा से गुजरना पड़ा होगा .
    साहित्य को समाज के सुख का माध्यम मानने वाले ब्लॉगर इस का निराकरण कर लेंगे .यह विश्वास है .
    राय साहब पीड़ा की अनुभूति करने और न्याय का प्रयास करने के लिए आप साधुवाद के पात्र है

    जवाब देंहटाएं
  14. सर जी लिखते ही नहीं हैं बल्कि गरजदार लिखते हैं..,अपने कमेन्ट के द्वारा नए रचनाकारों का मार्गदर्शन भी करते हैं...

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