वीरेन्द्र सेंगर की कलम से
सालों के लंबे ऊहापोह के बाद भाजपा नेतृत्व ने एक तरह से मान लिया है कि ‘हार्ड लाइन’ ही पार्टी के लिए राजनीतिक ‘संजीवनी’ बन सकती है। लोकसभा के चुनाव में लगातार दो करारी हार के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी दबाव बढ़ गया है। दूसरी तरफ, कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी खराब सेहत के कारण हाशिए पर चले गए हैं। उनके बाद पार्टी में दूसरे बड़े नेता लाल कृष्ण आडवाणी रहे हैं। उन्हें भी संघ के दबाव में हाशिए पर ला खड़ा किया गया है। संघ ने दबाव बनाकर नितिन गडकरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बैठवा दिया है। गडकरी की सबसे बड़ी पूंजी यही मानी जाती है कि वे संघ नेतृत्व के सबसे भरोसे के नेता हैं। संघ परिवार का दबाव रहा है कि पार्टी अपनी मूल दशा और दिशा से भटके नहीं। वरना न घर की रहेगी, न घाट की । संघ नेतृत्व के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री, नरेंद्र मोदी एक बड़े आइकॉन हैं। महीनों से दबाव है कि केंद्रीय नेतृत्व दुविधा छोड़कर नरेंद्र मोदी के खांटी रास्ते पर चल पड़े। कहा तो यह जा रहा है कि संघ ने आगे की रणनीति का जो रोडमैप बनाया है, उसमें अगले तीन साल बाद मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में लाया जाएगा। यहां तक कि 2014 के चुनाव में उन्हीं के हाथ में पार्टी की पूरी कमान होगी। संभावना है कि मोदी ही 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के चेहरे होंगे।
पार्टी की इस रणनीति की झलक नई कार्यशैली से झलकने लगी है। नरेंद्र मोदी के विश्वस्नीय सिपहसालार रहे अमित शाह इस्तीफा देने के बाद गुजरात में भाजपा के नए ‘नायक’ बनकर उभरे हैं। मोदी ने ऐलान कर दिया है कि शाह का मामला कांग्रेस नेतृत्व को महंगा पड़ेगा। जरूरत पड़ेगी तो अहमदाबाद से लेकर दिल्ली तक पार्टी के लाखों कार्यकर्ता सड़कों पर आएंगे। मजेदार बात है कि इस राजनीतिक बवाल में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व पूरी तौर पर मोदी की ही ‘बोली’ बोलता नजर आ रहा है। सीबीआई को जांच के दौरान यह जानकारी मिली थी कि सोहराबुद्दीन को एक उच्च स्तरीय साजिश के तहत मारा गया था। इसमें पुलिस के आला अफसरों के साथ गृह राज्य मंत्री, अमित शाह की भूमिका रही है। एक नाटकीय घटनाक्रम में अमित शाह ने रविवार की दोपहर में अहमदाबाद में मीडिया के सामने अपने गुरु, मोदी की तरह कांग्रेस को जमकर कोसा। उन्होंने अपने को निर्दोष बताया। कांग्रेस को राजनीतिक चुनौती दी। कहा कि वे लोग जनता के बीच यह बताएंगे कि अल्पसंख्यक वोटों के लिए कैसे उन जैसे देशभक्त को फंसाया गया है? परोक्ष रूप से धमकी यही दी गई कि पार्टी इस मामले में खांटी हिन्दुत्ववादी राजनीति करके कांग्रेस पर निशाना साधेगी। अपना गुबार निकालने के बाद शहीदाना अंदाज में अमित शाह ने सीबीआई के सामने देश के कानून में अपनी आस्था बताकर समर्पण किया।
अमित शाह के मामले को देखते हुए माना जा रहा है कि पार्टी के अंदर मोदी संस्कृति का दबाव बढ़ गया है। यूं तो पार्टी के अध्यक्ष गडकरी हैं, लेकिन माना जा रहा है कि पर्दे के पीछे मोदी की लॉबी ‘ड्राइविंग’ सीट पर बैठ गई है। इस घटनाक्रम ने जाने-अनजाने केंद्र सरकार को कुछ राहत दे दी है। सरकार के रणनीतिकार इस बात से सहमे थे कि पूरे विपक्ष ने महंगाई पर मिलकर हल्ला बोल दिया, तो दिक्कतें बढ़ जाएंगी। पर इस मुद्दे की वजह से सरकार के खिलाफ एनडीए का तय फोकस बदल गया है। भाजपा के अंदर मोदी के राजनीतिक रुतबे के कमाल के चलते पार्टी ने तय किया है कि वह अपनी पूरी ऊर्जा इसी मुद्दे पर सरकार को घेरने में लगाएगी। रणनीति बनाई गई है कि संसद में और संसद के बाहर गुजरात के प्रकरण में सरकार पर दबाव बढ़ाया जाएगा। भाजपा प्रवक्ता, प्रकाश जावडेकर कहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व ने सीबीआई को अपना हथियार बना लिया है। एक खास वोट बैंक को खुश करने के लिए अमित शाह को फंसाया जा रहा है। देश के कई और हिस्सों में कांग्रेस इसी तरह सीबीआई का इस्तेमाल अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निपटाने में करती आई है। इस मामले में संसद के अंदर सरकार की जमकर पोल खोलना जरूरी हो गया है। अनौपचारिक बातचीत में एनडीए के कई और घटकों के नेता इस बात को लेकर हैरान हैं कि भाजपा ने मोदी के रुतबे के दबाव में अपना फोकस ही बदल डाला है। इससे कहीं न कहीं सरकार को जरूर सहूलियत होने वाली है।
सब बातें अपनी जगह पर मुझे लगता है कि विकास लाने वाले लोग दोबारा सत्ता में लाए जाने लगे हैं भले ही वे शीला दीक्षित हों, चौहान हों, डा. रमण हों, मोदी हों या फिर नितीश कुमार... शायद लोगों को समझ आने लगा है कि काम करने वालों को लाओ, गाल बजाने वालों का क्या करना है
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