गलतियां न हों तो आदमी आदमी न रह जाय। मनुष्य से सहज ही गलतियां हो जाती हैं। यह उसके स्वभाव में है। वह जानवर नहीं है, इसलिए अपनी हर गलती पर सोचता है। कुछ गलतियां ऐसी होती हैं, जो किसी और को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं, पर कुछ गलतियों से दूसरे लोग प्रभावित हो सकते हैं, समाज प्रभावित हो सकता है। जिस पर जितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है, उसकी छोटी से छोटी गलती भी उतना ही बड़ा प्रभाव पैदा करती है। इसीलिए लोग नहीं चाहते कि समाज या देश के प्रति जवाबदेह कोई भी व्यकित गलती करे। भले ही कोई फैसला करने में उसे देर लगे, लेकिन गलती न हो। ऐसी गलतियों के पहचाने जाने और परिमार्जित किये जाने तक इतनी क्षति हो चुकी होती है कि उसका कोई प्रायश्चित नहीं हो सकता। जिनसे गलतियां होती हैं, अगर वे मनुष्य हैं तो निश्चित ही उन्हें पीड़ा होती है, पश्चाताप होता है। गलती हो जाना कोई असहज बात नहीं है लेकिन इतना तो होना ही चाहिए कि जैसे ही उसका पता चल जाय, उसे ठीक कर लिया जाय। जो आदमी नहीं रह गये हैं, उनसे ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। वे अपनी गलती का औचित्य साबित करने के पाशविक पागलपन में जुट जाते हैं। यानि और बड़ी गलती की तैयारी में लग जाते हैं।
कभी-कभी अनजाने में गलतियां हो जाती हैं। दुविधा में, थकान में, अनिश्चय में और नासमझी में। कोई इरादा नहीं होता, कोई लाभ लेने या किसी को लाभ पहुंचाने की भी मंशा नहीं होती। ऐसी गलतियों के लिए अगर गलती करने वाले को पीड़ा है, पश्चाताप है और वह सरलता से गलती को स्वीकार करने और उसके लिए माफी मांगने का साहस करता है तो कोई भी उसे निराश नहीं करेगा, कोई उसे माफ करने से मना नहीं करेगा। पर जो गलती करके उसे छिपाने या उसे सही ठहराने की कोशिश करता है, वह समाज के प्रति अपराध करता है, उसे न माफ किया जा सकता है, न ही मुक्त किया जा सकता है। उसे अपने अपराध की सजा मिलनी ही चाहिए। अब एक कठिनाई है कि यह कैसे तय हो कि कोई आदमी निश्छलतापूर्वक माफी की याचना कर रहा है या उसकी याचना में भी कोई दांव है, कोई चाल है? यह बेशक बड़ा महत्वपूर्ण और गूढ़ प्रश्न है। इसका जवाब वक्त देता है। या तो इतिहास इसका जवाब पहले ही दे चुका होगा या भविष्य बहुत जल्द दे देगा। देखना होगा कि क्या अतीत में भी संबंधित व्यक्ति ने इसी तरह का कोई दांव चला है? अगर चला है तो उसकी मंशा क्या रही, उसका फायदा किसने उठाया? बस इतने से ही पता चल जायेगा कि याचना के पीछे कोई पाखंड है या अतिशय सहजता में माफी मांगी गयी है। अगर अतीत कोई जवाब नहीं देता तो प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
माफी भी अब एक राजनीतिक हथियार बन गया है। पता नहीं लोग समझ पाते हैं या नहीं, पर राजनेता बहुत चालाकी, धूर्तता और परम नाटकीयता के साथ इस शब्द की सामर्थ्य को नष्ट करने में लगे हैं। वे अनजाने में बहुत कम गलतियां करते हैं और अगर ऐसी गलतियां करते भी हैं तो उन्हें सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने की जरूरत तब तक नहीं समझते, जब तक उसका रहस्य जनता के सामने नहीं आ जाता है। अक्सर वे सोची-समझी, नियोजित गलतियां करते हैं। असल में वे उनकी नजर में गलतियां नहीं होती। वे उसे अपना राजनीतिक कौशल मानते हैं। ज्यादा से ज्यादा वोट हथियाने का कोई भी रास्ता राजनीतिक दलों के लिए एक अवसर की तरह होता है और उसे चूकना उनके लिए बुद्धिमानी नहीं। जिसे जनता अतार्किक, असंगत और अनैतिक समझती है, वह भी राजनीति के लिए उज्ज्वल भविष्य और सत्ता तक पहुंचने में सहायक हो सकता है। सत्ता ही उनका लक्ष्य होती है और उसे प्राप्त करने का कोई भी उपाय उनके लिए अनैतिक नहीं होता। इस देश ने देखा है, लोगों को सत्ता तक पहुंचने के लिए मसजिद ढहाते हुए, खून बहाते हुए, इसी देश में दो लोगों के पागलपन के जवाब में उनकी कौम के हजारों लोगों को मौत के घाट उतारे जाते देखा है। इतनी बड़ी गलतियां, जिलके लिए जनता तो क्या देश और इतिहास भी माफी नहीं दे सकता।
बगैर सिद्धांत की राजनीति भी धोखा ही है। ऐसे ही राजनेता देश में सबसे भयंकर गलतियों के लिए जिम्मेदार होते हैं। क्योंकि यही अवसरवाद के पुरोधा बनते हैं। सत्ता हासिल करने के लिए इनका चरित्र हमेशा ही बदलता रहता है। ये कई तरह के चेहरों के साथ सड़कों पर आते हैं, जब जिसकी जरूरत होती है, लगा लेते हैं। कभी सांप्रदायिकता को प्रगतिशीलता ठहराने में अपने कौशल का उपयोग करते हैं तो कभी प्रगतिशीलता को सांप्रदायिक घोषित करके उसके पुतले पर गोलियां बरसाते हैं। यही लोग राजनीति को सस्ती और बिकाऊ बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। राजनीति में जितनी मूल्यहीनता है, जितनी गैर-जिम्मेदारी है, जितना अवसरवाद है, सब इन्हीं की देन है। पर इनकी सफलता ने बड़े दलों को भी इन्हीं के रास्ते पर आने के लिए मजबूर कर दिया है। इस परिस्थिति में अगर कोई राजनेता गलती स्वीकारने की बात करता है और माफी मांगता है तो उसके पीछे उसका कोई सोचता-समझा नाटक जरूर होगा। चाहे अयोध्या कांड के लिए भाजपा का खेद व्यक्त करना हो या सिख नरसंहार के लिए मनमोहन का पश्चाताप या कल्याण लिंह से दोस्ती के लिए मुलायम सिंह का माफी मांगना। ये सब राजनीतिक मजबूरियों का नतीजा है, शुद्ध मन की स्वीकारोक्ति नहीं। लोगों को पसीजने की जगह बहुत सावधानी से इन मामलों पर गौर करना होगा।
सही कह रहे हैं जानबूझ कर की गई गलती की कोई माफी नही होती पर ये कैसे पता लगे कि गलती जान बूझ कर की गई है या अनजाने में हुई है । बहर हाल यदि कोई माफी मांगता है तो माफ करना ही औचित्या है ।
जवाब देंहटाएंयह तो ग़लती से mistake हो गयी वाला joke हुआ. समझी हुई ग़लती और उसकी माफी बेवकूफ बना ना है..
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने.
जवाब देंहटाएंmafee mangna vastut rajnaitik hathiyar ban gaya hai lekin kya isi karan ham aapni galtiyon par khed prkat karna chhod den. akhir kshama hamare sanskaron men hai. jain dharm men bhi kshama ka bahut mahatv hai. isiliye ve har saal kschamavani parv bhi manate hain. shayad mulayam singh bhi isse prerit hue hon.
जवाब देंहटाएंसर राजनीति में तो ‘गलती‘ में भी राजनीति होती है
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। जिस गलती की बात आप कर रहे हैं वह चालाकी में सोच समझकर उठाया गया कदम था। चल जाता तो ठीक था नहीं चला तो माफी मांग लो। अपने नेताजी इतने मासूम नहीं हैं कि इस तरह की गलती करते। हां अगर वे यह कहें कि मैंने अपनी पुत्रवधु को नेता बनाने की गलती की है तो यह एक बार माना जा सकता है।
जवाब देंहटाएंवैसे भी अंग्रेजी में सॉरी और थैंक्यू शब्द बहुत प्रचलित है। किसी की टांग तोड़ दो और मुस्कुरार कर कह दो 'सॉरीÓ। एक बात और भी है। लड़कियां इस शब्द का खूब इस्तेमाल करती हैं तो क्या अपने नेताजी......................
सॉरी........................