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मेरे प्रिय भाई अविनाश वाचस्पति एक ब्लॉगर और व्यंग्यकार ही नहीं एक संवेदनशील कवि, रचनाकार भी हैं. बार-बार उनकी इस प्रतिभा को मैं देखता आया हूँ. आखर कलश में प्रकाशित मेरी कविताओं पर उनकी प्रतिक्रिया देखकर मैं अपने को रोक नहीं पाया. ये सिर्फ प्रतिक्रिया भर नहीं हैं, ये स्वतंत्र रचनाएँ हैं. उन्होंने लिखा भी है, मेरी विवशता है कि मैं प्रतिक्रिया में क्रिया की प्रक्रिया में जूझने लगता हूं। यह क्रिया की प्रक्रिया ही उनकी निधि है. यही उन्हें निरंतर सकारात्मक और रचनात्मक बनाए रखती है. उनकी चार प्रतिकविताएं यहाँ पेश हैं.....
1.
रचने का सच
रचना का सच
सच और सिर्फ सच
कवि की सच्चाई है
जो इंसानियत की रोशनाई है।
2.
फूल सदा खिला रहता है
मन की तरह
मन है न
नमन मन को।
3.
रोजाना झुलस रहा है
पर सोचता है पक रहा है
इतना पकना ठीक नहीं
जल्दी ही थकेगा
कब यह क्रोध रूकेगा।
4.
भाप को नहीं बनने देंगे बूंद
इसके लिए काटेंगे रोज ही
ऐसी फसल जमीन पर
जो इंसानियत को
कर देगी ढेर।
बेहतरीन रचनाएं..... अविनाश जी को आप लेखन का all rounder कह सकते हैं.
जवाब देंहटाएंसुभाष भाई हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। अविनाश भाई का यह रूप मैंने तो कम से कम पहली बार देखा। उनकी रचनाएं देखन में छोटी लगें घाव करें गंभीर के तेवर वाली हैं। क्रिया की प्रतिक्रिया जारी रहे।
जवाब देंहटाएंरोजाना झुलस रहा है
जवाब देंहटाएंपर सोचता है पक रहा है
इतना पकना ठीक नहीं
जल्दी ही थकेगा
कब यह क्रोध रूकेगा।
सभी रचनाओं में कम शब्दों में अधिक बात पर इस रचना ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया। बहुत शानदार। वाह।