नक्सलवादियों में बड़ी बेचैनी है। उनके दूसरे नंबर के नेता आजाद के एक मुठभेड़ में मारे जाने के बाद नक्सल नेतृत्व में खलबली मची हुई है। वे पुलिस पर आरोप लगा रहे हैं कि उसने आजाद को मुठभेड़ में नहीं मारा, बल्कि उनकी हत्या की गयी है। नक्सलवादियों की एक शीर्ष बैठक में भाग लेने जाते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और बाद में उन्हें शहर से दूर ले जाकर मार दिया गया। इसके विरोध में वे बुधवार से देशव्यापी बंद का आह्वान भी कर रहे हैं। नक्सलियों की सैनिक विंग के नेता किशनजी ने इस घटना पर क्षोभ और गुस्सा व्यक्त किया है। परंतु क्या उनके इस गुस्से का कोई मतलब है? क्या उनके आह्वान पर देश ध्यान देगा? क्या उनके आरोपों पर किंचित भी गौर करने की जरूरत है? किसी से भी ये सवाल किये जायें तो वह नहीं में जवाब देगा।
जब नक्सली गरीबों के नाम पर लोगों को डराने, दहशतजदा करने और निर्दोष लोगों की हत्याएं करने में जुटे हैं, तब यह माना जाना चाहिए कि उन्होंने इस तरह की बात कहने का अधिकार खो दिया है। जिन लोगों ने सैकड़ों सिपाहियों को धोखे से मार डाला हो, वे इस तरह सुरक्षा बलों पर आरोप लगायें, यह उचित नहीं जान पड़ता। बंदूक की भाषा में बात करने वालोंं को आखिर किस तरह जवाब दिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से कई बार यह प्रस्ताव भेजा जा चुका है कि हथियार डालिए और बात करिये। यह कोई नहीं कहता कि सरकारों से गलतियां नहीं हुईं हैं पर उन गलतियों को दुरुस्त किया जाना चाहिए।
अगर सचमुच नक्सलियों को अपने इलाकों में जन समर्थन हासिल है तो वे उसके सहारे ऐसी परिस्थिति पैदा कर सकते हैं कि सरकार अपनी गलतियों को ठीक करने के लिए मजबूर हो जाय। सारा देश चाहता है कि जिन लोगों की आजादी के बाद से लगातार उपेक्षा हुई है, उन्हें भी अपनी खुशी का थोड़ा ही सही, आकाश मिले पर अगर कुछ लोग बंदूकें लिए खड़े रहेंगे और किसी को उन तक पहुंचने ही नहीं देंगे तो परिणाम क्या होगा। तब तो यही कहा जायेगा कि पहले सरकारों ने गरीबों को पीड़ा पहुंचाई और अब नक्सली वही काम कर रहे हैं। कितनी विडंबना है कि किशनजी भारतीय वायुसेना से भावुक अपील कर रहे हैं कि वे गरीब नागरिकों पर गोलियां चलाने से मना कर दें। हालांकि अभी इस बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है कि नक्सल ताकतों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल किया जाय या नहीं लेकिन अगर नक्सली इसी तरह नरसंहार की कुटिल और वीभत्स नीति पर चलते रहे तो सरकार के सामने अपने नागरिकों, जवानों को मरने देने या हत्यारों से कठोरता से निपटने के अलावा क्या विकल्प रह जायेगा।
हमारी सरकार की सरासर गलती है .................जब तक बात बिगड़ ना जाए ...उस पर कोई करवाई क्यों नहीं की जाती ? क्यों हर मुद्दा ठन्डे बस्ते में तब तक पड़ा रहता है जब तक वह एक जन आक्रोश नहीं बन जाता ?
जवाब देंहटाएंगलती उनकी भी है पर सब से ज्यादा सरकार ही है दोषी अगर सही समय पर सही निर्णय करने की आदत डाली होती तो यह नौबत ही नहीं आती !
शिवम् जी से सहमत....सही है..
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