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वीरेंद्र सेंगर की कलम से
अगर मंत्रिमंडल फेरबदल में मंत्रियों के ‘रिपोर्ट कार्ड’ की कसौटी बनी तो कई स्वनामधन्य ‘माननीयों’ का कैबिनेट में टिके रहना मुश्किल हो जाएगा। शरद पवार ने खुद प्रधानमंत्री से कह दिया है कि उनका ‘बोझ’ कुछ हल्का कर दें। वे अपने पास केवल कृषि मंत्रालय रखना चाहते हैं। पवार के करीबी सूत्रों का दावा है कि इस पेशकश के पीछे कोई राजनीतिक ‘उस्तादी’ नहीं है। इतना जरूर है कि वे इतनी उदारता दिखाकर अपने दो खास सिपहसालारों की पावर बढ़वाना चाहते हैं। कोशिश है कि प्रफुल्ल पटेल का दर्जा कैबिनेट का करा दिया जाए और तारिक अनवर को स्वतंत्र प्रभार वाला राज्य मंत्री बना दिया जाए। महंगाई के मुद्दे पर पवार के कुछ बयानों से प्रधानमंत्री तक की किरकिरी हो चुकी है।
पीएमओ ने सभी मंत्रालयों के एक साल के कामकाज की एक गोपनीय समीक्षा रिपोर्ट तैयार कराई है। पीएमओ सूत्रों के अनुसार, केवल मंत्रालयों की ‘रिपोर्ट कार्ड’ ही मंत्रियों की राजनीतिक कसौटी नहीं बन सकती। वजह यह है कि उम्दा काम करने वाले कई मंत्री भी प्रधानमंत्री के लिए कम सिरदर्द नहीं बने। मसलन पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश अपने काम में दक्ष हैं, ईमानदार हैं और प्रधानमंत्री के विश्वसनीय भी पर अपनी इन खूबियों के बावजूद वे कई तरह के विवादों में हैं। कोयला राज्य मंत्री, श्रीप्रकाश जयसवाल के तमाम अनुरोध के बावजूद रमेश कोयला खदानों के खनन मामलों में आपत्तियां लगा चुके हैं। सड़क परिवहन मंत्री, कमल नाथ भी पिछले तीन महीने से शिकायत कर रहे हैं कि उनकी नई योजनाओं में पर्यावरण मंत्री अड़ंगा लगा देते हैं।
‘दस जनपथ’ के करीबी नेताओं में शुमार स्वास्थ्य मंत्री, गुलाम नबी आजाद की कार्यशैली बहुत प्रभावी नहीं समझी गई है। पीएमओ के तमाम दबावों के बावजूद स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को कभी गंभीरता से नहीं लिया। ग्रामीण विकास मंत्री हैं, सीपी जोशी प्रधानमंत्री के करीबियों में माने जाते हैं। उनके मंत्रालय का कामकाज लगातार आलोचनाओं का शिकार रहा है। पिछले दिनों वे मनरेगा की मजदूरी के मामले में छत्तीसगढ़ सरकार से भिड़ गए थे। पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि शायद ही उनका बाल बांका हो पाए| कांति लाल भूरिया के आदिवासी कल्याण मंत्रालय की उदासीनता के चलते जनजातीय बहुल इलाकों में कई कारणों से नाराजगी बढ़ी है, लोगों का झुकाव नक्सलवादियों के प्रति बढ़ा हैं। पीएमओ को लगता है कि यदि जनजातीय मामलों का मंत्रालय ढंग से कामकाज करता तो आदिवासी इलाकों में नक्सलवादियों का प्रभाव इतने खतरनाक स्तर पर नहीं पहुंचता।
रेल मंत्री, ममता बनर्जी अपने मंत्रालय को बहुत कम समय दे पाती हैं। अधिसंख्य कैबिनेट बैठकों से भी गायब रहती हैं। यूपीए में कांग्रेस के बाद ममता की तृणमूल कांग्रेस के सबसे ज्यादा सांसद हैं। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व ममता पर कोई दबाव बनाने की स्थिति में भी नहीं है। रेल जैसे भारी भरकम मंत्रालय के तमाम जरूरी फैसले महीनों लंबित पड़े रहते हैं। पीएमओ ने अपनी कसौटी में इस मंत्रालय के कामकाज को भी संतोषजनक नहीं माना। लेकिन, शायद ही कोई ममता बनर्जी की तरफ अंगुली उठाने की हिम्मत कर पाए| डीएमके कोटे से एम. अलागिरी रसायन एवं उर्वरक मंत्री हैं। वे डीएमके सुप्रीमो के. करुणानिधि के पुत्र हैं। उनके मंत्रालय का ‘रिपोर्ट कार्ड’ संतोषजनक नहीं बताया जा रहा। केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा पर अरबों के घोटाले के आक्षेप हैं। प्रधानमंत्री कोशिश कर रहे हैं कि सरकार से ए. राजा की विदाई हो जाए। लेकिन, यह तब तक संभव नहीं है, जब तक इसके लिए करुणानिधि राजी न हो जाएं।
manmohan koi pradhanmantri nahi hai vah kisi ko mantrimandal se kaise nikaal sakte hain. haan in logon k aka Obama sahab agar kuch kahein to usko jaroor kar dalenge . obama sahab ne kaha ki petrolium padarthon ki sabsidi khatam kar do manmohan singh ne khatam kar diya. americi agar kahein ki ulta sar k bal khade ho aur svarg dikhega to manmohan singh ulta khade najar aayenge. kya aap mahsoos karte hain ki kendr mein koi sarkar bhi hai
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