वीरेन्द्र सेंगर की कलम से
महाभारत के पात्र ललकारते भी हैं, छल कपट के दांव भी आजमाते हैं। कहीं नैतिकता की दुहाई देते हैं, तो कहीं राजधर्म का मर्म समझाते हैं। कुछ इसी तरह का परिदृश्य इन दिनों संसद में है। महंगाई के मुद्दे पर बचने-बचाने और मरने-मारने के दांव चले जा रहे हैं। वे आम आदमी के एजेंडे की दुहाई देकर सत्ता सिंहासन में बैठे थे। अब विपक्ष उन पर विरोध के तीखे बाण छोड़ रहा है। कह रहा है कि आम आदमी तो महंगाई से तबाह हो रहा है जबकि तुम सत्ता सिंहासन का सुख लूट रहे हो। इसी पर राजनीतिक तलवारें खनक रही हैं। सरकार ने भी राजनीतिक ढीठपन के पैंतरे चलने शुरू कर दिए हैं। ना-ना करते हुए राइट और लेफ्ट विंग एक स्वर में बोलने लगे हैं। वे रणनीतिक दूरियां भले कायम रखें, लेकिन अंदर ही अंदर दोनों धड़ों के बीच एक समझदारी बन गई है। भाजपा नेतृत्व वाला मोर्चा गरम है, तो वाम मोर्चा में सरकार के प्रति खासा उबाल देखने को मिल रहा है। सरकार किसी कीमत पर महंगाई के मुद्दे पर सदन में मत विभाजन के लिए तैयार नहीं है जबकि दोनों धड़ों ने कह दिया है कि सरकार जिद पर अड़ी तो राजनीतिक महाभारत और तेज होगा। संसद ठप रहेगी।
महंगाई के मुद्दे पर भाजपा और वाम दलों ने काम रोको प्रस्ताव दिए हैं। सरकार बहस कराने को तो राजी है लेकिन, वोटिंग कराने को नहीं। सीपीएम के वरिष्ठ नेता, सीता राम येचुरी हैरानी का सवाल है कि केंद्र सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है, तो वह विपक्ष के ‘काम रोको’ प्रस्ताव से क्यों भाग रही है? वे कहते हैं कि सरकार खुद नहीं चाहती कि संसद की कार्यवाही चले, यदि ऐसा न होता तो वह अड़ियल रुख नहीं अपनाती। वाम मोर्चे और एनडीए ने राज्य सभा में भी नियम 168 के तहत महंगाई पर बहस करने का प्रस्ताव दिया है। इस नियम के तहत बहस के बाद मतविभाजन का प्रावधान होता है। सरकार को यह प्रस्ताव भी मंजूर नहीं है। सरकार के रणनीतिकार इस कोशिश में हैं कि किसी तरह विपक्षी एकता में ‘सेंध’ लगा दी जाए। इसके लिए ये लोग हर तरह के दांव अजमा रहे हैं।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने मंगलवार को एक बार फिर कोशिश की कि कुछ सेक्यूलर दलों से ‘समझदारी’ बना ली जाए। इसीलिए उन्होंने बसपा के नेता, दारा सिंह से मुलाकात की। राजद सुप्रीमो लालू यादव से भी बात की। सूत्रों के अनुसार, इन दोनों नेताओं ने दो टूक कह दिया कि वे भाजपा के किसी प्रस्ताव के पक्ष में राजनीतिक कारणों से नहीं खड़े हो सकते। यह जरूर है कि वे लोग महंगाई के मुद्दे पर सरकार का विरोध करेंगे। भाजपा वाम मोर्चे के स्थगन प्रस्ताव को भी समर्थन देने को तैयार है। यदि सरकार पर दबाव बनाना है, तो यह समय राजनीतिक ‘छुआ-छूत’ का नहीं है। इस ‘प्रस्ताव’ पर वाम नेताओं ने भाजपा नेतृत्व से साफ-साफ कुछ भी नहीं कहा।
कांग्रेस को सबसे पहले बसपा का ‘साथ’ मिल भी गया है। इस दल के सांसद विजय बहादुर सिंह ने कह दिया है कि उनकी पार्टी महंगाई पर संसद में बहस तो चाहती है, लेकिन वोटिंग पर ज्यादा जोर देने की अहमियत नहीं समझती है। सपा सुप्रीमो, मुलायम सिंह ने भी बसपा के रवैये के बाद कुछ दुविधा के संकेत देने शुरू किए हैं। जबकि, लालू यादव के तेवर गरम दिखे। वे बोले कि अब इस सरकार को ‘रियायत’ देने का मन नहीं करता। ऐसा करने से उनकी ‘आत्मा’ पर जोर पड़ने लगा है। महंगाई के महाभारत के बीच सरकारी गेहूं सड़ने का मामला भी तूल पकड़ गया है। इस मामले में कृषि मंत्री शरद पवार जवाब नहीं दे पा रहे हैं। मंगलवार को तो इस मामले में सवालों से भन्ना गए थे। खीझकर वे मीडिया के लोगों से कह रहे थे कि वे केवल संसद के प्रति जवाबदेह हैं।महंगाई की चर्चा के दौरान ‘सड़ा’ हुआ गेहूं भी सरकार के लिए राजनीतिक ‘बदबू’ बनता जा रहा है।
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