क्या सचमुच पाकिस्तान को होश आ गया है? वह अपनी लंबी और गहरी नींद से उठ गया है? या यह भी एक चाल है, एक बहाना है सारी दुनिया को दिखाने का कि वह आतंकवाद के खिलाफ कितना सचेष्ट है, कितना आक्रामक है? उसने जमात-उद-दावा समेत 23 आतंकवादी संगठनों पर पाबंदी लगा दी है। जिन संगठनों पर पाबंदी लगायी गयी है, उनमें जैशे-मुहम्मद, लश्करे-जांघवी और तश्करे-तैयबा भी शामिल हैं। जमात के मुखिया हाफिज सईद और अन्य प्रतिबंधित संगठनों के सदस्यों पर पाकिस्तान से बाहर जाने पर रोक लगा दी गई है। इस आदेश की एक विडंबना है कि सईद के पाकिस्तान में आने-जाने पर कोई रोक नहीं है। उनके कुछ खातों को जब्त कर लिया गया है। उन्हें हथियारों के लाइसेंस भी नहीं मिलेंगे। भारत अरसे से जमात पर कार्रवाई करने की मांग कर रहा था। इसी जमात के मुखिया मुंबई में हुए प्राणघातक हमले के मुख्य सूत्रधार माने जाते हैं।
पाकिस्तान की नीयत पर कभी पूरी तरह भरोसा कर पाना मुश्किल होता है क्योंकि वह अक्सर कहता कुछ है और करता कुछ है। भारत के तमाम आग्रहों के बावजूद उसने लंबे अरसे से हाफिज सईद को मुक्त छोड़ रखा था। वह पूरे पाकिस्तान में भारत-विरोधी आग उगलने में जुटा रहता है। जब इन बातों की ओर पाकिस्तान का ध्यान दिलाया जाता है तो या तो वह सईद के खिलाफ सुबूत की मांग करता है या कहता है कि जिस तरह भारत में तमाम लोग तरह-तरह के बयान देते रहते हैं, उसी तरह पाकिस्तान में भी। मुल्क में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और किसी को भी अपनी बात कहने से रोका नहीं जा सकता। इस गलीज तर्क के आगे कोई भी क्या कर सकता है? जहां तक सुबूत की बात है, पाकिस्तानी नेताओँ ने मुंबई हमले के बाद जिस तरह इस हत्याकांड में पहले पाकिस्तान का हाथ होने से इंकार किया और फिर स्वीकार किया, वह किसी से छिपा नहीं है। पहले तो उन्होंने यह भी मानने से इंकार कर दिया था कि कसाब पाकिस्तान के फरीदकोट का रहने वाला है लेकिन उन्हीं के एक टीवी चैनल द्वारा उसके पिता का साक्षात्कार प्रसारित किये जाने के बाद पाकिस्तान यह मानने को मजबूर हुआ कि कसाब पाकिस्तानी नागरिक है। झूठ बोलने में पाकिस्तानी नेताओं, मंत्रियों का कोई सानी नहीं है।
प्रतिबंध की यह कार्रवाई भी तब अंजाम दी गयी है जब पाकिस्तान की एक मस्जिद में हाल में एक जबरदस्त धमाका हुआ और 40 लोग मारे गये। तर्क दिया गया है कि इस हमले के बाद जनता में बहुत गुस्सा है, बड़ी नाराजगी है, इसलिए सरकार को यह कदम उठाना पड़ा है। पर गौर करें तो पाकिस्तान की जमीन पर किसी मस्जिद में यह कोई पहला हमला नहीं है। इस तरह के हमले तो वहां आम तौर पर होते ही रहते हैं। जनता की नाराजगी का खयाल पाकिस्तान सरकार को इससे पहले तो कभी नहीं आया। यह अचानक जनता के दर्द की समझ पाक हुक्मरान में कहां से पैदा हो गयी। जब स्वात घाटी में पूरी तरह तालिबान का कब्जा हो गया था, जब महिलाओं की सरेआम पिटाई हो रही थी, जब सिखों से जजिया वसूला जा रहा था, तब यह सरकार कहां सो रही थी? तब जनता के दुख-दर्द खई उसे परवाह क्यों नहीं हुई? यह सब झूठी बातें लगती हैं।
दिलचस्प बात यह है कि जिस अमेरिका को भारत अपना सहयोगी देश मानता है, वह अमेरिका भी आतंकवादियों के मामले में दोगली भूमिका में दिखायी पड़ता रहा है। भारत ने तमाम प्रयास कर लिये लेकिन अमेरिका ने तालिबान की तरह उन आतंकवादी संगठनों की नकेल कसने की बात कभी पाकिस्तान से नहीं की, जो कश्मीर में अस्थिरता फैलाने के षड्यंत्र करते रहते हैं। शायद अमेरिका को ये लगता रहा हो कि ये आतंकवादी संगठन पाकिस्तान सरकार की सरपरस्ती में काम करते हैं, पाक सरकार के दोस्त की तरह केवल भारत का सरदर्द हैं, अमेरिका को इससे क्या लेना-देना। लेकिन लगता है कि अमेरिका की इस सोच में थोड़ी तबदीली आयी है। हाल के दिनों में कुछ आतंकवादी विदेशी जमीनों पर पकड़े गये, जो लश्कर से संबद्ध मिले। इसी क्रम में अमेरिका में आतंकवाद के शीर्ष विशेषज्ञ और काउंसिल आॅन फॉरेन रिलेशंस के डेनियल मार्की ने जो चेतावनी दी है, उसे एक गंभीर घटनाक्रम के रूप में लिया जाना चाहिए।
मुंबई हमले के बाद भी लश्कर और जैश पर पाबंदी लगायी गयी थी लेकिन तब लश्कर ने अपना चेहरा बदल लिया। लश्कर का सैनिक संगठन अपने ढंग से आतंकवादी कार्रवाइयों में लगा रहा लेकिन उसके शीर्ष नेताओँ ने जमात-उद-दावा के नये चेहरे के साथ अपने को खुलेआम घूमने और कश्मीर की तथाकथित आजादी की लड़ाई के लिए भाषण देने एवं वसूली जारी रखने को आजाद कर लिया। धीरे-धीरे वह पाबंदी निरर्थक हो गयी। अब जब मार्की ने 26/11 के मुंबई हमले के लिए कसूरवार आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को 'टिक टिक करता टाइम बम' बताने का साहस किया है तब अमेरिका की नींद टूटी है। मार्की ने ओबामा प्रशासन से कहा है कि वह इस पर अपना ध्यान केंद्रित करे, क्योंकि पाकिस्तान इसके खिलाफ कोई ठोस कदम उठाने में नाकाम रहा है। उन्होंने लश्कर को पाकिस्तानी तालिबान से ज्यादा खतरनाक बताया है। असल सच यह है कि पाकिस्तान ने यह कदम भी अमेरिका के दबाव में ही उठाया है। यह अच्छी बात है कि अमेरिका का एक ऐसे बड़े खतरे पर ध्यान गया है, जिसे वह केवल भारत की समस्या मानकर नजरंदाज कर रहा था। लेकिन पाकिस्तान सरकार इस मामले में कुछ कदम उठाये, इसके लिए उसकी नकेल कसे रहनी पड़ेगी।
अगर सचमुच पाकिस्तान इस फैसले पर अमल के लिए मजबूर होता है तो इससे भारत को राहत मिलेगी। पहले से ही कश्मीर में सुरक्षा बलों के अभियान से आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के कर्ता-धर्ता मुश्किल में हैं। बौखलाहट में उन्होंने पाक अधिकृत कश्मीर में मौजूद अपने नेताओं से कहा है कि भारत में जल्द घुसो और कुछ बड़ा करो। आतंकवादियों ने भारी दबाव के कारण अपनी रणनीति भी बदली है। अब वे किसी एक जगह तीन घंटे से ज्यादा नहीं रुकते। वे स्थानीय जनता पर विश्वास भी नहीं करते, चाहे वह मुसलमान ही क्यों न हो। 2009 में लश्कर, जैश और हरकत के 53 आतंकवादी कमांडर मुठभेड़ में मार गिराए गए थे जबकि इस साल 15 मई तक 37 आतंकवादी ढेर कर दिये गये हैं। अगर पाकिस्तान को सद्बुद्धि आ जाय तो कश्मीर में शांति बहाल करने में मदद मिल सकती है। पर एक झूठे पर तुरंत यकीन कर लेना थोड़ा कठिन लगता है।
यह तो खुद पाकिस्तान भी नहीं जानता कि क्या वह सुधर गया है !?
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