गुरुवार, 22 जुलाई 2010

विधानसभाएं बन रही हैं जंग- ए- मैदान!

इस बार ‘परचम’ पटना ने लहराया है। यहां विधायिका खुलकर बेशर्मी पर उतर आई। यहां तक कि विधानसभा के माननीय स्पीकर पर चप्पल फेंकी गई। कई ‘माननीयों’ को घसीट-घसीटकर मार्शलों को विधानभवन से बाहर करना पड़ा क्योंकि ये लोग विरोध के नशे में आपा खो बैठे थे। सत्ता पक्ष के लोगों का सिर तोड़ने पर उतारू थे। जवाब में सत्ताधारी भी कानून हाथ में लेने से हिचके नहीं। सबने मिलकर खूब नंगा नाच किया।  इस खेल में सबसे ज्यादा आक्रामक राजद के विधायक रहे। इन लोगों ने विरोध के नाम पर विधायिका की मर्यादाओं को जमकर ठेंगा दिखाया। तंग आकर विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने 66 विधायकों को तीन दिन के लिए निलंबित कर दिया है। राजद प्रमुख लालू यादव का कहना है कि नीतीश सरकार अरबों रुपये के घोटाले को दबा रही है। इसी से उनके विधायक गुस्से में हैं। पूरे देश ने टीवी चैनलों की तस्वीरों में यह देखा है कि कैसे ‘माननीय’ एक-दूसरे पर माइक चलाते रहे और सदन में कुर्सी-मेजों को हथियार बनाते रहे। ऐसा भी नहीं है कि पहली बार विधायिका के इतिहास में मर्यादा का ‘चीर हरण’ हुआ हो। पिछले दो दशकों से देश के कई राज्यों में कई बार ऐसे शर्मनाक तमाशे खड़े हो चुके हैं।

उत्तर प्रदेश विधानसभा में 1998 में विधानभवन के अंदर तत्कालीन स्पीकर केसरी नाथ त्रिपाठी का सिर फोड़ दिया गया था। विधायकों ने सदन को जंग-ए-मैदान बना दिया था।  इसके पहले भी 1993 में सपा-बसपा की सरकार के दौर में भाजपा विधायकों ने सदन के अंदर ‘बाहुबल’ दिखाया था। इसी साल उत्तर प्रदेश में बजट सत्र की शुरुआत के  पहले दिन ही सपा के ‘बांके’ विधायकों ने  राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान उन पर कागज की गेंदें फेंकी थीं। इन विधायकों ने चिल्ला-चिल्लाकर महामहिम राज्यपाल को मुख्यमंत्री का एजेंट कहा था। पिछले दिनों कर्नाटक विधानसभा में भी अलग तरह का राजनीतिक ड्रामा देखने को मिला। यहां पूर्व प्रधानमंत्री, एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस के विधायकों ने विरोध के नाम पर जमकर ड्रामेबाजी की। ये लोग सदन के अंदर पीले हेलमेट लगाकर आए थे। वही हेलमेट जो खनन मजदूर काम करते वक्त लगाते हैं। स्पीकर ने कहा था कि वे तमाशा न करें और हेलमेट उतारें लेकिन बात बिगड़ गई थी। दोनों पक्षों में जमकर छीना झपटी हुई थी। विधायकों का निलंबन हुआ।  स्पीकर केजी बोपइया ने दुखी होकर कहा था कि कुछ तो शर्म करो, वोट देने वाली जनता सब देख रही है। आन्ध्र के विधान भवन में भी पिछले वर्ष फरवरी में सदन के अंदर मारपीट की नौबत आ गई थी। बहुचर्चित सत्यम कंपनी के घोटाले को लेकर सदन के अंदर विधायकों ने एक-दूसरे पर माइक और कुर्सियां चलायीं।

पिछले दिनों महालेखाकार (कैग) की रिपोर्ट में बिहार सरकार के खातों को लेकर गंभीर ऐतराज दर्ज कराया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने 2002 से 2008 के बीच भुगतान तो लिए, लेकिन इसके खर्च ब्यौरे दाखिल नहीं किए। इस तरह से 11,412 करोड़ की रकम संदेह के घेरे में है। इसी मामले को लेकर विपक्ष ने हंगामा खड़ा किया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सफाई है कि यह घोटाले का मामला नहीं है।  इस मामले की वे जांच वित्तीय लेखा समिति से करा रहे हैं।  लोक जनशक्ति पार्टी के नेता, राम विलास पासवान का कहना है कि यदि सरकार के मन में कोई चोर नहीं है, तो वह सीबीआई जांच से क्यों भाग रही है? दो दिन से विधानसभा में नारे लग रहे हैं ‘खजाना चोर, गद्दी छोड़’।  सत्ता पक्ष के विधायक कांग्रेस पर निशाना लगा रहे हैं। वे नारे लगाते रहे, ‘ये देखो कांग्रेस का खेल, खा गई चीनी, पी गई तेल’। पहले दिन ही सदन के अंदर कुर्सियां चलीं। टेबल उलटे गए। किसी का कुर्ता फाड़ा गया, तो किया माननीय का पैजामा उतार दिया गया। अगले दिन भी इस हंगामे ने और उग्र रूप धारण किया। कांग्रेस की एक महिला विधायक कुमारी ज्योति तो साक्षात ‘रणचंडी’ की भूमिका में दिखाई पड़ी। उन्होंने सदन के बाहर गमलों से मार्शलों पर हमला किया। 26 जुलाई से संसद का वर्षाकालीन सत्र शुरू होने जा रहा है। विपक्ष महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर बेहद उत्तेजित मुद्रा में है। खतरा  है कि किसी भी दिन पटना-लखनऊ की तरह संसद के अंदर भी माननीय कोई भोंडा तमाशा न खड़ा कर दें।

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