गुरुवार, 29 जुलाई 2010

बच्चे के हाथ में पिस्तौल

देश में एक बार फिर स्कूल में एक बच्चे ने दूसरे बच्चे पर गोली चला दी। हमलावर कक्षा नौ का छात्र है, जिस पर गोली चलायी गयी, वह कक्षा आठ का छात्र है। दिल्ली के एक पब्लिक स्कूल में बच्चों के दो गुटों में मामूली सा झगड़ा हुआ और उसने पिस्तौल निकाली, गोली चला दी। वह तो संयोग अच्छा रहा कि गोली दूसरे बच्चे के जिस्म को खुरचती हुई निकल गयी, अन्यथा उसकी जान चली जाती। बच्चे का कहना है कि उसे पिस्तौल रास्ते में गिरी हुई मिल गयी। निश्चित रूप से वह झूठ बोल रहा है। जो स्कूल में गोली चला सकता है, उससे सच बोलने की उम्मीद नहीं की जा सकती। वह पिस्तौल घर से ले आया होगा, पहले से ही उसका ऐसा इरादा रहा होगा। झगड़ा भी पुराना होगा, इसीलिए तयशुदा तरीके से वह पूरी तैयारी के साथ आया रहा होगा।

इस तरह की घटनाएं यद्यपि विदेशों की तरह हमारे देश में अभी आम नहीं हैं, कभी-कभी हो जाती हैं लेकिन केवल इसलिए इसकी गंभीरता कम करके नहीं आँकी जानी चाहिए। बच्चों में अराजकता, अवज्ञा बढ़ रही है। बच्चे कई बार छोटे-छोटे अपराध करते भी पकड़े जाने लगे हैं। देश के कई इलाकों में इस तरह की घटनाएं हुई हैं, जब बच्चों को मोटरसाइकिलें उठाते पकड़ा गया है, चेनस्नेचिंग करते धरा गया है। इस तरह की प्रवृत्ति आखिर बच्चों में क्यों पैदा हो रही है? क्या यह मात्र संयोग है या कतिपय घरों के माहौल का असर? ये मनोवैज्ञानिक प्रश्न है और इसका अध्ययन बहुत जरूरी है।

स्कूल जाने वाले बच्चों को भी कुछ मां-बाप उनकी जरूरत से ज्यादा पैसे पाकेट खर्च के नाम पर देते हैं। कई बार जब उनकी जेब में किसी कारणवश कम पैसा होता है और उनकी आवश्यकता बड़ी होती है तो वे यह सोचकर दुस्साहस कर बैठते हैं कि एक ही बार तो कर रहे हैं। ऐसे मामलों में अगर वे पकड़े गये तो उनकी जिंदगी गलत दिशा अख्तियार कर लेती है और अगर नहीं पकड़े गये, अपने इरादे में कामयाब हो गये तो वह प्रयोग दुहराने की हिम्मत पैदा हो जाती है। ऐसे अभिभावक, जो केवल अपनी पैसे की ताकत से बच्चों को खुश रखने की कोशिश करते हैं, सचमुच उनके पास अपनी व्यस्तता में से बच्चों के लिए समय निकाल पाना या तो संभव नहीं होता या वे उसकी जरूरत नहीं समझते। यही गलती बच्चों को अपने ढंग से हर मामले में निर्णय करने की प्रवृत्ति पैदा करती है और जब कभी उन्हें किसी दूसरे के फैसले पर चलना होता है, वे उसे स्वीकार नहीं कर पाते।

ऐसे बच्चे उद्दंड हो जाते हैं और यह उद्दंडता अपराध की पहली सीढ़ी है। इस तरह के उद्दंड बच्चे दोस्त बनाने में बहुत माहिर होते हैं और स्कूलों में और बच्चों को भी गंदा करते हैं, गलत रास्ते पर चलने को प्रेरित करते हैं। विदेशों में तो यह अराजकता काफी गंभीर रूप ले चुकी है। अमेरिका में हर महीने स्कूल में गोलीबारी की कोई न कोई घटना हो ही जाती है। उनका जीवन-दर्शन और रहन-सहन का तरीका जिस तरह का है, उसमें इन घटनाओं पर बहुत ध्यान नहीं दिया जाता। वहां बंदूकों की खरीद पर कोई पाबंदी नहीं है। परंतु भारत जैसे देश में, जहां इस तरह के हथियारों पर न केवल लाइसेंस की बंदिश है, बल्कि जहां नैतिकता और शांति का जीवन शैली में खास महत्व है, इस तरह की घटनाएं चिंता पैदा करने वाली हैं।

1 टिप्पणी:

  1. ऐसे बच्चे उद्दंड हो जाते हैं और यह उद्दंडता अपराध की पहली सीढ़ी है। इस तरह के उद्दंड बच्चे दोस्त बनाने में बहुत माहिर होते हैं और स्कूलों में और बच्चों को भी गंदा करते हैं, गलत रास्ते पर चलने को प्रेरित करते हैं। विदेशों में तो यह अराजकता काफी गंभीर रूप ले चुकी है। अमेरिका में हर महीने स्कूल में गोलीबारी की कोई न कोई घटना हो ही जाती है। उनका जीवन-दर्शन और रहन-सहन का तरीका जिस तरह का है, उसमें इन घटनाओं पर बहुत ध्यान नहीं दिया जाता। वहां बंदूकों की खरीद पर कोई पाबंदी नहीं है। परंतु भारत जैसे देश में, जहां इस तरह के हथियारों पर न केवल लाइसेंस की बंदिश है, बल्कि जहां नैतिकता और शांति का जीवन शैली में खास महत्व है, इस तरह की घटनाएं चिंता पैदा करने वाली हैं।
    ...Chintansheel lekh..
    samay rahate har Maa-Baap ko bachho par dhyan dena jaruri hai... aajkal ka mahaul sach mein chitajanak banta jaa raha hai..
    Saarthak lekh ke liye dhanyavaad

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