सपने हमेशा नींद में आते हैं। तभी जब आप सो रहे होते हैं। जब आप सपने देख रहे होते हैं तब आप को यह नहीं लगता कि आप नींद में हैं। सपने जब तक चलते हैं बिल्कुल सच्चे लगते हैं। अगर आप जगें नहीं तो आप को पता ही नहीं चलेगा कि आप सपने देख रहे हैं। नींद से बाहर आते ही सपने टूट जाते हैं। कुछ लोगों को जागते हुए भी सपने देखने की आदत होती है। है न हैरत की बात, कोई जागते हुए कैसे सपने देख सकता है? अगर वह ऐसा करता है तो वह बेशक जगा हुआ नहीं है, वह जागते हुए भी सो रहा है।
सपने अच्छे भी होते हैं और बुरे भी। अच्छे सपनों से निकलने के बाद मन खुश रहता है। जागने के बाद भी वे बुरी तरह याद आते हैं, झकझोरते हैं। मसलन कोई अपनी प्रिया से मिलना चाहता है मगर मिल नहीं पाता। घबराता है, डरता है। कोई देख लेगा तो क्या होगा। उसके मां-बाप ने देख लिया तो मुश्किल हो सकती है। तरह-तरह के खयाल आते हैं। हिम्मत करके, बच-बचाकर उससे कुछ कहे और वही नाराज हो जाय तो? पर सपने में वह उससे मिल सकता है, उससे बातें कर सकता है, अपने मन की बात कह सकता है, उसे अपने घर आने का न्योता दे सकता है या शाम को बगीचे में अमलतास के पेड़ के नीचे बैठने को बुला सकता है। सपने में हो सकता है, उसकी प्रियतमा अपने सबसे अच्छे कपड़े पहन कर आये, मुस्कराये, अपने मन की बात कह डाले। हो सकता है, सपने में वह प्रेम का प्रस्ताव स्वीकार कर ले। और अगर यह सब कुछ न भी हो तो भी क्या फर्क पड़ता है। सपना तो सपना ही है, देखने में क्या जाता है।
बुरे सपने पसीने-पसीने कर देते हैं। नींद में कुछ भी हो सकता है। हो सकता है आप सड़क पर जा रहे हों और खेत में से पगलाया हाथी आ जाये, आप को दौड़ा ले। हो सकता है आप ऐसे जंगल में पहुंच जायें, जहां आप के चारों तरफ शेर ही शेर नजर आ रहे हों। गुर्राते हुए, आप की तरफ बढ़ते हुए। हो सकता है, आप अपनी छत से नीचे लुढ़क जायें और जहां आप गिरें, वहां सांपों का कुनबा फन फैलाये डोल रहा हो। ज्यादा से ज्यादा आप चीख सकते हैं, पूरी ताकत से भाग सकते हैं। संभव है आप की चीख ही न निकले, आप भागना चाहकर भी भाग न सकें, पांव उठें ही नहीं। नींद टूटने के बाद भी ऐसे सपनों का खौफ कुछ देर तक बना रहता है। जागते ही तुरंत आप भयानक सपनों से बाहर नहीं निकल सकते।
पर सचाई यह है कि न तो अच्छे सपने सच होते हैं, न बुरे। कहते हैं कि सपने जिंदगी में जरूरी होते हैं। बिना सपनों के कोई उड़ नहीं सकता, ऊंचाई नहीं छू सकता। सलाह दी जाती है कि ऊपर उठने के लिए सितारों के सपने देखो। थोड़ी सी सचाई इस बात में है। पर अगर सपने ही देखते रह गये तो जहां हो, वहीं बने रहोगे। मुंगेरीलाल के हसीन सपनों में फंस गये तो निकलना मुश्किल होगा। सपनों के साथ चलना सपने देखने से कहीं ज्यादा जरूरी है। जीवन में एक सपना रच सको तो बेहतर है। कम से कम सपनों में डूब जाने से तो अच्छा है ही। एक मंजिल हो तो एक रास्ता भी होना ही चाहिए। नहीं हो तो बनाया जाना चाहिए। मंजिल ही सपना है, जीवन का सपना। सपना देखा तो उसके सौंदर्य में पागल नहीं होना। यही खतरनाक है। उसे पाने के लिए बढ़ जाना ही कर्म है, कर्तव्य है।
जो सपने में डूब जाते हैं, वे स्वप्नजीवी होते हैं, जो सपने को हासिल कर लेते हैं, वे स्वप्नदर्शी होते हैं। और वे सबसे बड़े होते हैं, जो सपनों से मुक्त हो जाते हैं, जिन्हें सपने नहीं आते। जाहिर है, वे हमेशा जगे रहते हैं, वे कभी नहीं सोते। वे सोते हुए भी जागते रहते हैं। इसीलिए कहा है, जो सोवत है, सो खोवत है, जो जागत है, सो पावत है। आप से ही कह रहा हूं, भोर हमेशा आप के इंतजार में है, बस आप को जागना भर है। उठिये, जागिये।
सपनों को लेकर अच्छी पोस्ट लिखी है। अच्छा ही कहा है कि सपना देखना से बेहतर सपनों के साथ चलना है। आपका ये पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा। महत्वपूर्ण पोस्ट है। धन्यवाद।
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