बकौल हजारी प्रसाद द्विवेदी, करने वाला इतिहास निर्माता होता है, सिर्फ सोचने वाला इतिहास के भयंकर रथचक्र के नीचे पिस जाता है। इतिहास का रथ वह हांकता है, जो सोचता है और सोचे को करता भी है।
बुधवार, 28 अप्रैल 2010
देश बेचकर ऐश
क्या हो गया है इस देश को, समझ में नहीं आता। भरोसा नहीं होता कि यह वही देश है, जहां विवेकानंद ने जन्म लिया, जहां रामकृष्ण और रमन जैसे ज्ञानवान संत हुए, जहां गांधी, गोखले, तिलक, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, अश्फाक उल्ला खान और सुभाष चंद्र बोस जैसे उत्कट देशप्रेमियों के चरण पड़े। क्या यह वही देश है, जहां से ज्ञान का प्रकाश सारी दुनिया में फैला? फिर यहां के लोगों में इतना अज्ञान कहां से आ गया, इतनी स्वार्थपरता कहां से आ गयी? इन 50 सालों में ही ऐसा क्या बदल गया कि हम सब इतने लंपट, पाखंडी और बेइमान हो गये?
अभी सबके सामने केतन देसाई का कच्चा चिट्ठा खुला था, पूरा देश दंग रह गया था एक आदमी का विकट धनलोभ देखकर। अब माधुरी गुप्ता की सचाई सामने आयी है। एक ऐसी नंगी सचाई, जो किसी भी हिंदुस्तानी का सर शर्म से झुका कर रख देने वाली है। जिस जमीन की खुशबू से उनकी शख्सियत महंकी, जिस जमीन का अन्न उनकी नसों में खून बनकर दौड़ रहा है, उसी के खिलाफ दुश्मन की साजिश में शामिल होने का साहस वे कैसे कर पायीं, सोचकर माथा ठनकने लगता है। वे पाकिस्तान में भारतीय अफसर की हैसियत से तैनात थीं, अपने देश के हित का खयाल रखने की उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गयी थी, उसके लिए सरकार उन्हें सारी सुविधाएं और अच्छा-खासा वेतन दे रही थी, पर उन्हें और पैसा चाहिए था। इसके लिए उन्होंने अपने देश के साथ दगा करने का फैसला किया, पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का निर्णय किया। कैसे कर पायीं वो? भारत और पाकिस्तान में दुश्मनी है तो यह केवल नादान नेताओं की उल्टी सोच के कारण। जनता कभी दुश्मनी नहीं निभाती। उसके पास अपनी इतनी समस्याएं रहती हैं कि उसे देश के बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिलती। वह ना काहू से दोस्ती, ना काहू से वैर वाली मनस्थिति में रहती है। एक पाकिस्तानी की एक हिंदुस्तानी से क्या दुश्मनी हो सकती है? आजादी के बाद पैदा हुई पीढ़ी तो इस बारे में सोच भी नहीं सकती। षड्यंत्र शासक करते हैं, जाल नेता बिछाते हैं और कभी-कभी अनजाने में जनता भी उसमें फंस जाती है। दोनों देशों के बीच सारी समस्या यह है कि पाकिस्तानी हुक्मरान हमेशा एक हीनता बोध पाले रहे हैं। बड़े भारत के आगे, विकसित होते भारत के आगे, स्थापित होते भारत के आगे पाकिस्तान जिस तरह बौना दिखता है, उससे पाक शासकों के मन में ईर्ष्या और कड़वाहट पैदा होती है। इसी कड़वाहट ने पाकिस्तान को कई बार भारत से लड़ने को भी मजबूर किया पर उसे पराजय हाथ लगी।
बार-बार की शिकस्त ने उसे लड़ाई के रास्ते बदलने को मजबूर कर दिया। उसने आतंकवाद का सहारा लिया, जासूसी के पंजे हमारी सीमाओं में फैलाये, जाली नोटों की खेपें भेजकर हमें तबाह करने का रास्ता अपनाया। इस प्रछन्न युद्ध से भारत को हमेशा नुकसान उठाना पड़ा है। शायद पाकिस्तान भी नहीं सोचता होगा कि इस तरह वह कभी भारत को घुटने टेकने पर मजबूर कर पायेगा लेकिन दर्द तो देता रहेगा, पीड़ा तो पहुंचाता रहेगा। वह इतना ही चाहता है कि भारत रह-रह कर तड़पे, रोये, गुस्साये। कहना न होगा कि वह अपनी इस कोशिश में काफी हद तक सफल है। पर बड़ा दुर्भाग्य यह है कि भारत के दिल में उस्तरे उतारने की उसकी कुटिल चाल में बार-बार हिंदुस्तानी भी शामिल होते रहे हैं। उनमें शायद गंदा खून बह रहा है। बाहर से आने वाले आतंकवादियों की मदद करने वाले इस जमीन पर भी हैं। इस गद्दारी के बदले उनकी जेबें भर जाती हैं। बस यह लालच ही उन्हें इस बेवफाई के लिए मजबूर करता है।
यह बात तो समझ में आती है कि अपनी मुश्किलों से टूटकर कोई गरीब दुश्मन के जाल में आ जाये, धन के मायाजाल में फंस जाये क्योंकि अस्तित्व संकट के ऐसे विकट हालात में उसके लिए सही-गलत का फर्क करना नामुमकिन हो जाता है। लेकिन भारतीय विदेश सेवा का कोई अधिकारी इस तरह के लोभ में आ जाये तो थोड़ी हैरत होती है। सरकार उनका हर तरह से खयाल रखती है और पूरा देश उनसे अपेक्षा करता है कि वे अपने देश का खयाल रखें। ज्यादा पैसा चाहिए तो नौकरी छोड़कर देश में ही कोई और सम्मानपूर्ण नेक धंधा कर लें पर देश के साथ गद्दारी करके ऐश करने का हक उन्हें कैसे दिया जा सकता है।
यह बड़ी समस्या है। इसका इलाज केवल कानून में नहीं है। एक गद्दार को कानून आजीवन कारावास भी दिला दे तो भी दूसरे फिर ऐसा नहीं करेंगे, ऐसा कहना मुश्किल है। सोचने की बात है कि लोगों में देश के प्रति अपनत्व, प्रेम और जवाबदेही का भाव कम क्यों होता जा रहा है। क्या यह अपवाद भर है या फिर हम किसी भयानक अपसांस्कृतिक रुपांतरण के दौर से गुजर रहे हैं, जो हमें किसी भी तरह अधिक से अधिक धन, वैभव और ऐश्वर्य के साधनों के संग्रह को ललचा रहा है। सोचना तो पड़ेगा और सबको मिलकर सोचना पड़ेगा क्योंकि मूल कारण समझ में आये बगैर इलाज नहीं हो सकता।
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samayiki
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सुभाष जी सच कहा आपने आज के इस दौर में अब कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं रहा है । और अब इन सब पर चिंता करने से आगे बढ कर सरकार पर ये दबाव बनाना होगा कि इन लोगों को सख्त सजा दी जाए । और इसके लिए भी सरकार के भरोसे न बैठा जाए आम जनता खुद आगे आए तो बेहतर होगा
जवाब देंहटाएंmana kanoon upaay nahi par pehle wo kuch kare to sahi tab to pata chale ki ham kuch karna chahte bhi hain...
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
Bahut sunder vihleshan kiya hai Subhashji aap ne. Ham ek bhayanak upsanskritik rupantaran ke kathin daur se gujar rahe hai. Ya to is dhara ko palatana padega ya isse ladana padega. teesra koi rasta nahin hai.
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