बुधवार, 7 अप्रैल 2010

जबसे तुमने किया किनारा

जीवन कालचक्र है। यह निरंतर चलता रहता है। दिन और रात, मिलना  और बिछुड़ना, दुःख और सुख, यश और अपयश इसके पड़ाव  हैं। लेकिन कुछ पल या मित्र ऐसे होते हैं , जिनकी याद भुलाई नहीं जा सकती। जीवन में  कई ऐसे मित्र आये, जिनके बारे में मैं सोचा करता था की यदि इन्हें कुछ हो गया तो मेरे जीवन के पल कैसे काटेंगे। परन्तु जीवन का रथ निर्ममता के साथ दौड़ता  रहता है। उन्हीं बिछुड़े पलों को इंगित करता यह  गीत।

जबसे तुमने किया किनारा, टूट गया मेरा इकतारा
सॉस सांस में कम्पन होती, मिटा भाग्य का आज सितारा

हमने तुमने स्वप्न बुने थे, चाँद सितारे भी अपने थे
साथ रहेंगे साथ चलेंगे इक  दूजे के लिए बने थे

मधुर मिलन की बंशी बजती, खुशियाँ दरवाजे पर झरतीं
सोना सा लगता था वह दिन उपवन में जब भी तुम मिलतीं

सूरज भी हमसे जलता  था, चंदा भी नित नित गलता  था
फूलों की मुस्कानें रोतीं, भंवरा हाथों को मलता था

मैंने तुमसे प्रीत बढाई , तुम भी मंद मंद मुस्काई
अम्बर धरती लगे झूमने , रजनीगंधा भी इठलाई

बिखर गए वे सपने सारे, बदल  गए नदिया के धारे
अलगावों के बादल छाये बदल  गए अब मीत हमारे

रूपसि तेरा रहा पुजारी, लेकिन तुम निकली पाषाणी
होम दिया अपने को तुम पर, रूपनगर की ओ महरानी

तुमने अपने पथ को मोड़ा, गैरों से अब रिश्ता जोड़ा
प्यार नहीं नफ़रत पियूँगा, यादों में तेरी जियूँगा

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