शनिवार, 17 अप्रैल 2010

बिना दाम, नहीं कोई काम

बदलाव आना चाहिए। सभी लोग चाहते हैं कि व्यवस्था में बदलाव आना चाहिए। देश ने आजादी के बाद लोकतांत्रिक प्रणाली स्वीकार की। कहते हैं लोकतंत्र में जनता के लिए, जनता का शासन होता है। लेकिन भारतीय लोकतंत्र में ऐसा दिखता नहीं। जनता को प्रतिनिधि चुनने की आजादी है लेकिन अगर चुना हुआ प्रतिनिधि बाद में जनता की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है तो भी वह उसे मजबूर नहीं कर सकती कि वह अपना पद छोड़कर हट जाये। कोई ऐसी व्यवस्था भी नहीं है कि वह अपने प्रतिनिधि की शिकायत करे और उस पर उचित कार्रवाई हो। इसलिए जो एक बार सांसद या विधायक चुन लिया गया, वह पांच साल तक अपनी मनमानी करने को आजाद हो जाता है। जनता सिर्फ इतना कर सकती है कि उसे दूसरी बार न चुने।

कहने को तंत्र लोक का है लेकिन लोक की चिंता करता कौन है? सांसदोंपर सवाल पूछने के लिए पैसा लेने के, मतविभाजन की परिस्थितियों में बिकने के भी आरोप लगाये जाते हैं। मंत्रियों तक के चाल-चलन पर सवाल उठते रहते हैं। जब कभी राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ की बात होती है, दिल दहल जाता है। राज्यों की विधानसभाओं से लेकर संसद तक में ऐसे लोगों की अच्छी-खासी मौजूदगी है, जिन पर हत्या, बलात्कार और डकैती तक के गंभीरतम आरोप हैं। बड़ी से छोटी सभी पार्टियों में ऐसे बाहुबलियों की उपस्थिति देखी जा सकती है। अब तो कहा जाने लगा है कि राजनीति साफ-सुथरे लोगों का काम नहीं है। अगर आप नैतिक हैं, इमानदार हैं तो आप चुनाव कैसे लड़ेंगे, इतना पैसा कहां से लायेंगे? और अगर आप साहस करके धन जुटाना भी चाहते हैं तो कौन देगा आप को इतनी रकम? जाहिर है, वही लोग जो बाद में आप से अपने स्वार्थ पूरे करना चाहेंगे। क्या आप धन के लिए उन्हें ऐसा आश्वासन दे पायेंगे कि जो भी अल्लम-गल्लम वे चाहेंगे, उसके लिए आप मर मिटेंगे? नहीं तो आप के लिए वहां कोई जगह नहीं है। ऐसे में राजनीति के रास्ते उन लोगों के लिए साफ खुले हुए हैं, जो बेइमान हैं, भ्रष्ट हैं क्योंकि उन्हीं रास्तों से जल्दी और ज्यादा पैसा आता है।

नौकरशाही भी भ्रष्ट होने के लिए अभिशप्त है। वह राजनीतिक दबाव में काम करती है। यह उसकी नियति है। इसे स्वीकार न करने वाले को हमेशा अपना बोरिया-बिस्तर बांधे रहना पड़ता है। कभी-कभी कुछ लोग हिम्मत करते भी हैं लेकिन या तो टूट जाते हैं या उदास मन से किसी कोने में बैठकर अपने अवकाश ग्रहण करने के दिन गिनते रहते हैं। राजनीतिक आदर्शों और सिद्धांतों के अभाव में अवसरवादियों की बड़ी जमात खड़ी हो गयी है। जाति, संप्रदाय, भाषा और क्षेत्र के नाम पर उगते जा रहे छोटे-छोटे राजनीतिक दलों ने स्वेच्छाचारिता का पाखंड फैला रखा है। इनमें से कई गाहे-बगाहे सत्ता के पायदान तक भी पहुंच जाते हैं। वे पूरी प्रशासनिक मशीनरी को अपने मंतव्य की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करते हैं। इन्हीं हालातों में कोई नोटों की माला पहनकर गौरवान्वित महसूस करता है तो कोई अपने गांव में हवाई पट्टी बनवाकर आत्ममुग्ध हो जाता है। कोई सरकारी खजाने का हजारों करोड़ अपने खातों में हस्तांतरित कर लेता है तो कोई चारे-चरवाहे के नाम पर माल गटक लेता है। अधिकारी इन सारे नेक कामों में राजनीतिज्ञों की मदद करते हैं। उनके पास कोई चारा नहीं।

इस राजनीतिक अराजकता में जनता क्या करे? अपनी समस्याएं कैसे निपटाये? उसकी सीधे कोई नहीं सुनता। थक-हारकर वह भी बहती गंगा में हाथ धोने लगती है। हर काम में रिश्वत। बिना दाम नहीं कोई काम। सामान्य तौर पर देखने से लगता है कि देश ने आजादी के बाद काफी तरक्की की है। लेकिन यह भी किसी से छिपा नहीं है कि बेइमानी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, मिलावटखोरी बड़े पैमाने पर बढ़ी है। गरीब और अमीर की खांई चौड़ी हुई है। चूंकि मौजूदा व्यवस्था में पैसा खर्च करने पर कठिन, असाध्य, असंभव और अवैध काम भी बहुत आसानी से हो जाते हैं, इसलिए जिनके पास पैसा है, वे और पैसा बना रहे हैं। गरीब की तो रोटी की समस्या ही हल नहीं हो पाती, फिर वह कैसे पैसे कमाने की सोचे।

ध्यान से देखें तो यह बहुत अमानवीय लगेगा। जो दिन भर मेहनत करता है, वह सबसे ज्यादा साधनहीन है, जो किंचित मेहनत नहीं करता, उस पर धन बरस रहा है। कहीं तो व्यवस्था में कोई खोट है, कोई बड़ी कमी है। इंदिराजी से लेकर अब तक सभी प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था का चेहरा मानवीय बनाने की बात करते आये हैं, लेकिन उसकी क्रूरता में कोई कमी नहीं आयी है। ऊपर से दिखायी भले न पड़े लेकिन भीतर ही भीतर देश की बड़ी आबादी में गहरी हताशा है, गुस्सा है और बौखलाहट है। कभी यह एक साथ उभरा तो उस आंधी को कोई सरकार रोक नहीं पायेगी।

1 टिप्पणी:

  1. BHUT HI SARTHK WIWECHNA AUR BLOGING KA SAHI MAYNE MAIN PRYOG KE LIYE DHERON SUBH KAMNAYE.AASHA HAI IS SE AUR BLOGAR BHI PRERNA LENGE AUR BLOGING KO DESH AUR SAMAJ KE BHALAEE KE BAICHARIK KRANTI KE LIYE PRYOG KRENGE.AAP APNE WICHARON KO HAMARE BLOG POST " DESH KE SANSAD MAIN DO MAHINE JANTA KE PRSHN KAL KE LIYE AARKSHIT HONA CHAHIYE PAR BHI WYAKT KARNE KA PRYAS KAREN.

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